लक्षद्वीप का विकास वहां के लोगों की ज़मीनें छीनने से नहीं होगा – वजाहत हबीबुल्लाह

बीते शुक्रवार (4 जून 2021) छात्र विमर्श ने एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया। इस चर्चा में लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक वजाहत हबीबुल्लाह और एसआईओ के राष्ट्रीय सचिव निहाल किडियूर बतौर अतिथि वक्ता शामिल हुए।

0
1181

लोकतंत्र मतलब “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन”। स्कूल की किताबों में पढ़ाया जाने वाला यह जुमला आज सिर्फ़ किताबों में पढ़ने या कहने-सुनने के लिए स्कूल व कॉलेजों तक ही सीमित होकर रह गया है। पिछले कुछ समय से‌ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले देश में इस जुमले का कोई महत्व बाक़ी नहीं रहा।

सीएए, यूएपीए जैसे संविधान विरोधी क़ानूनों से धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाने के बाद मौजूदा सरकार की नज़र अब भारत की मुख्य भूमि से दूर अरब सागर में भारत के आख़िरी हिस्से के रूप में पहचाने जाने वाले ख़ूबसूरत व शांत प्रदेश लक्षद्वीप पर है।

ऐसा प्रतीत होता है कि विकास के नाम पर वहां रहने वाले लोगों की विशिष्ट संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को निशाना बनाया जा रहा है। कुछ हफ़्ते पहले तक भारत की मुख्य भूमि पर बसने वाली आबादी लक्षद्वीप के मामले से बिल्कुल अनभिज्ञ थी। मुख्यधारा की मीडिया में इस विषय पर कोई बात नहीं हो रही थी। सोशल मीडिया के माध्यम से मुख्य भूमि पर बसने वाले निवासियों को लक्षद्वीप के मामले की जानकारी मिलनी शुरू हुई और उसके बाद बहुत से संगठनों द्वारा अलग-अलग स्तर पर इस संबंध में बात की जाने लगी है।

इसी कड़ी में बीते शुक्रवार (4 जून 2021) छात्र विमर्श ने एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया। इस चर्चा में लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक वजाहत हबीबुल्लाह और एसआईओ के राष्ट्रीय सचिव निहाल किडियूर बतौर अतिथि वक्ता शामिल हुए।

निहाल किडियूर ने चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि वर्तमान में लक्षद्वीप के विषय पर बहुत तरह की चर्चा हो रही है। कोई पर्यावरण संकट तो कोई जनसांख्यिकी में होने वाले बदलाव पर बात कर रहा है और कोई लक्षद्वीप में बीजेपी के विकास मॉडल को लागू किए जाने पर अपने विचार व्यक्त कर रहा है। इन सभी विषयों को समझने के लिए और बीजेपी द्वारा लक्षद्वीप में लागू किए गए विकास मॉडल पर लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक के विचारों को जानने के लिए निहाल किडियूर ने वजाहत हबीबुल्लाह साहब को आमंत्रित किया।

पूर्व प्रशासक वजाहत हबीबुल्लाह ने लक्षद्वीप में बीते हुए अपने वक़्त को याद करते हुए कहा कि, “लक्षद्वीप के प्रशासक के रूप में गुज़रा वक़्त मेरे जीवन का बेहतरीन वक़्त था। मैं बतौर प्रशासक वहां तीन वर्ष तक रहा किंतु वहां के लोगों से मेरा रिश्ता अभी भी वैसा ही है।”

सरकार द्वारा लक्षद्वीप के लिए पारित किए गए नये क़ानूनों से संबंधित प्रश्न पर उन्होंने कहा कि, “यह समझना बहुत कठिन है कि इन क़ानूनों को लाने की ज़रूरत क्या थी?”

प्रशासक पटेल द्वारा लागू किए गए प्रिवेंशन ऑफ़ एंटी-सोशल ऐक्टिविटीज़ ऐक्ट (PASA) पर अपनी बात रखते हुए वजाहत साहब ने कहा कि, “अगर हम NCRB की रिपोर्ट को देखें तो पूरे भारत में केवल लक्षद्वीप ऐसा राज्य है जहां अपराध दर सबसे कम है लेकिन अगर मैं अपने अनुभव की बात करूं तो वहां क्राइम है ही नहीं।”

मालदीव की तरह लक्षद्वीप का विकास करने के तर्क पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि, “1988 में श्रीलंका से आए कुछ आतंकवादियों ने मालदीव पर क़ब्ज़ा कर लिया था। भारत सरकार ने अपनी नौसेना और वायुसेना के ज़रिए मालदीव को आतंकवादियों के चंगुल से आज़ाद कराया था। क्या सरकार लक्षद्वीप को भी ऐसा ही बनाना चाहती है? जहां तक लक्षद्वीप की सुरक्षा का सवाल है तो लक्षद्वीप की वास्तविक सुरक्षा वहां के निवासियों से है।”

प्रफ़ुल्ल पटेल द्वारा पंचायत चुनाव संबंधी क़ानूनों में बदलाव किए जाने के प्रस्ताव पर उन्होंने कहा कि, “लक्षद्वीप की प्रजनन दर पूरे भारत में सबसे कम है। वहां की घटती हुए जनसंख्या एक चिंताजनक विषय है। ये प्रस्ताव साफ़ दर्शाता है कि पटेल साहब वहां की वास्तविक स्थिति से बिल्कुल अपरिचित हैं, इसलिए उनका चुनाव क़ानूनों में बदलाव का प्रस्ताव घटती हुई जनसंख्या के परिपेक्ष्य में अतार्किक है। सरकार को एक विशेष संस्कृति वाली आबादी को उनकी संस्कृति को बरकरार रखने के लिए उनकी जनसंख्या को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। भारत की मुख्य भूमि से दूर समुद्र के बीच भी हमारे लोग मौजूद हैं इसको अपनी ताक़त समझना चाहिए और सरकार को उन लोगों का हर तरह से ध्यान रखना चाहिए।”

उन्होंने लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेगुलेशन (LDAR) को ग़ैर-क़ानूनी और संविधान के विरुद्ध बताया और कहा कि, “लक्षद्वीप में निवास करने वाले लोग क़बाइली हैं। उनका विशेष समाज व संस्कृति है। उनकी बहुत सी परंपराएं पूरे भारत में कहीं और देखने को नहीं मिलती। इसलिए इनकी संस्कृति व परंपराओं की रक्षा करना भारतीय संविधान का कर्तव्य है और आज तक संविधान ने इनकी संस्कृति और अधिकारों की सुरक्षित रखा है। इस पर भारत सरकार को गर्व होना चाहिए। इसके विपरीत यह सरकार उनके जीवन को बर्बाद  करना चाहती है और उनकी सांस्कृतिक विशेषता को भी ख़त्म करना चाहती है।”

वजाहत साहब ने प्रश्न उठाए कि तरक़्क़ी का मतलब क्या है? क्या स्वच्छ वातावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छ जल, सौर ऊर्जा और अस्पताल तरक़्क़ी के पैमाने पर पूरे नहीं उतरते? यह तरक़्क़ी नहीं है तो तरक़्क़ी क्या है? उन्होंने कहा कि, “तरक़्क़ी का मतलब उनकी ज़मीन छीनकर उनके जीवन को बर्बाद करना नहीं बल्कि उनके व्यवसाय के तरीक़े को बेहतर बनाने के लिए अवसर प्रदान किया जाना है। लक्षद्वीप के मुख्य व्यवसाय मत्स्य पालन के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिससे वहां के लोग अपने काम को बेहतर तरीक़े से कर सकें। एक लोकतांत्रिक प्रणाली में तरक़्क़ी का सिर्फ़ एक मतलब है‌ और वह है “जनता के जीवन में सुधार लाना”।

लक्षद्वीप को जन्नत की संज्ञा देते हुए हबीबुल्लाह साहब ने कहा कि, “शाहजहां ने अपने दीवान-ए-ख़ास में कश्मीर के लिए लिखवाया था – गर फ़िरदौस बर रू ए ज़मीं अस्त, हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त। (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं हैं) मेरा मानना है कि अगर शाहजहां या मुमताज़ महल लक्षद्वीप गए होते तो वो ये शब्द उसके लिए बोलते।”

सरकार को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि, “उस जन्नत (लक्षद्वीप) को जिन लोगों ने अपना अर्श-ए-मकीं बनाया है, उसे उनकी जन्नत बने रहने दें। आप उनकी जन्नत को बर्बाद न करें।”

छात्र विमर्श द्वारा आयोजित इस चर्चा की रिकॉर्डिंग हमारे यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है। सुनने के लिए यहां क्लिक करें।

रिपोर्ट: तूबा हयात ख़ान, सिमरा अंसारी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here