पर्यावरण सुधारों के लिए बड़े पैमाने पर भागीदारी की आवश्यकता है

पारिस्थितिकीय तंत्र को नुक़्सान पहुंचाने वाली जीवन-पद्धति की वजह से हमें आज कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पर्यावरण सुधार शायद ही हमारी राजनीतिक बहसों का हिस्सा बनता हो। हमारे पास जाति और पंथ, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक पहचान आदि के बारे में राजनीति करने का समय है लेकिन पर्यावरणीय सुधारों के संबंध में हमारी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है।

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पर्यावरण सुधारों के लिए बड़े पैमाने पर भागीदारी की आवश्यकता है

– डॉ. अब्दुल रशीद अगवान

पर्यावरण संकट वर्तमान समय का सबसे बड़ा संकट है। यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि मनुष्य का अस्तित्व और पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता। दुनिया की अधिकांश सरकारें इसे कम करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।

आम लोग इस बात से चिंतित हैं कि वे जलवायु परिवर्तन के रूप में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जैसे कि प्रमुख शहरों में घातक प्रदूषण की प्रबलता, जल-चक्र का विघटन, पीने के पानी की कमी, मिट्टी की उर्वरता में कमी, समुद्र तल में वृद्धि, कई प्रजातियों का विलुप्त होना, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, आदि।

पिछली कुछ शताब्दियों के दौरान औद्योगिक क्रांति और जनसंख्या में वृद्धि के बाद ये समस्याएं धीरे-धीरे सामने आई हैं। उद्योगों ने पहले स्थानीय स्तर पर और फिर विश्व स्तर पर प्रदूषण को बढ़ाने में योगदान दिया है। वनों की कटाई से प्रदूषण के स्तर में और वृद्धि हुई क्योंकि पृथ्वी की हरी चादर बड़े पैमाने पर कार्बन सिंक के रूप में प्रदूषण को कम कर सकती थी। प्रदूषण के कारण ग्रीन हाउस प्रभाव और ओज़ोन की कमी के कारण पृथ्वी गर्म हो रही है जिससे जल चक्र और पारिस्थितिक तंत्र का विघटन, ध्रुवीय और ग्लेशियर बर्फ़ का पिघलना, मिट्टी की उर्वरता में कमी, नई महामारी की बीमारियों और प्रदूषण से होने वाली मौतों का उद्भव, प्रजातियों का विलुप्त होना, आदि समस्याएं सामने हैं।

ग़ैर विघटनीय पदार्थों (जैसे प्लास्टिक) के भारी उपयोग ने दुनिया के प्रमुख शहरों में ठोस कचरा प्रबंधन की चुनौती पेश की है। इन सभी समस्याओं के हल के लिए पर्यावरण संबंधी सही नीतियों और कार्यक्रमों की ज़रूरत है। इसके अलावा इसमें आम लोगों की जागृत भीगीदारी भी आवश्यक है क्योंकि पर्यावरणीय संकट के लिए बड़ी हद तक भोगवादी संस्कृति भी ज़िम्मेदार है।

हालांकि प्रदूषण अब एक घरेलू शब्द बन चुका है मगर जो लोग इसके निवारण के लिए सक्रिय हैं उनकी संख्या अभी भी नगण्य है। ऐसा मूल रूप से तीन कारणों से है।

सबसे पहले, लोग पर्यावरण को एक तकनीकी क्षेत्र समझते हैं जहां केवल विशेषज्ञों की भूमिका और प्रभाव है। दूसरे, पर्यावरणीय सुधारों को सरकार की ज़िम्मेदारी माना जाता है। और अंत में, लोगों को लगता है कि वे पहले से ही कुछ अन्य बड़े मुद्दों के बोझ तले दबे हुए हैं जो उनके सामूहिक सरोकारों की प्राथमिकता को तय करते हैं जैसे कि चुनावी राजनीति, सामाजिक सामंजस्य, आर्थिक उन्नति, शैक्षणिक विकास, धार्मिक दायित्व, आदि और पर्यावरणीय मुद्दे शायद ही उनके एजेंडे में आते हों।

हमें यह समझना चाहिए कि पर्यावरण हमारे बड़े घर की तरह है। जैसे हम अपने घर की देखभाल के लिए बहुत कुछ करने को बाध्य हैं, पर्यावरणीय घर अपनी सेहत और निरंतरता के लिए इसी तरह एक गहन देखभाल चाहता है। जिस तरह हमारे पास एक अच्छे और उचित घर के बिना कोई जगह नहीं है, उसी तरह अनुकूल वातावरण के बिना हमारा कोई भविष्य नहीं है।

पर्यावरण हमारे आस-पास की चीज़ों का एक समुच्चय है जैसे मिट्टी, खेत, जानवर, पेड़, हवा, जल-स्रोत, ऊर्जा के साधन, परिवहन, बारिश, पहाड़, और सबसे महत्वपूर्ण, मनुष्य। स्वस्थ पर्यावरण स्वस्थ जीवन का पोषण करता है और प्रदूषित पर्यावरण जीवन में तनाव लाता है।

पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र के विशेषज्ञों की तुलना में पर्यावरण से जुड़ा हमारा रोज़मर्रा का जीवन हमें हमारे पर्यावरण को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है। वे हमें वास्तविकताओं, प्रक्रियाओं और पर्यावरण के मुद्दों के बारे में आवश्यक जानकारी देते हैं लेकिन, चूंकि हम पर्यावरण का हिस्सा हैं, इसीलिए हम अपने जीवन के अधिकांश समय में पर्यावरण का सामना करते हैं और उसे क़रीब से महसूस करते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि आप अपने गृहनगर को राजधानी में बैठे विशेषज्ञ से बेहतर जानते हैं।

पर्यावरण की तकनीकी को समझने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, लेकिन यह अकेले उनका मैदान नहीं है। यह सही है कि पर्यावरण और उसके पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण सरकार की ज़िम्मेदारी है, लेकिन पर्यावरणीय मुद्दों की गंभीरता को देखकर लोगों की सक्रिय भागीदारी के बिना वह इसमें सफल नहीं हो सकती। यह भी एक सच्चाई है कि कोई भी सरकार केवल लोगों की आकांक्षा का प्रतिबिंब होती है। यदि लोग पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूक, सक्रिय और सशक्त हैं तो निश्चित रूप से उन पर काम करने के लिए पर्याप्त संवेदनशील सरकार का चुनाव होगा।

अब यह सर्वमान्य तथ्य है कि पर्यावरण के क्षरण के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं से आज बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं, प्रति वर्ष ६० लाख से ज़्यादा। पारिस्थितिक तंत्र को नुक़्सान पहुंचाने वाली जीवनपद्धति की वजह से हमें आज कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पर्यावरण सुधार शायद ही हमारी राजनीतिक बहसों का हिस्सा बनता हो। हमारे पास जाति और पंथ, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक पहचान आदि के बारे में राजनीति करने का समय है लेकिन पर्यावरणीय सुधारों के संबंध में हमारी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है। हमारे पास जाति और पंथ, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक पहचान आदि के बारे में राजनीति करने का समय है लेकिन पर्यावरणीय सुधारों के संबंध में हमारी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है।

हालांकि, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव अस्तित्व के मुद्दे को जनता के आम एजेंडे में प्रमुखता से आना चाहिए। इसका बड़ा कारण यह है कि पर्यावरणीय क्षरण हमारे समय में मुद्दों की जननी है। यह शिक्षा प्राप्ति, आर्थिक कल्याण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, खाद्य आपूर्ति, जीडीपी, और सबसे महत्वपूर्ण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को प्रभावित करता है। यह एक धार्मिक दायित्व भी है क्योंकि ज़्यादातर धर्मों की शिक्षाएं पर्यावरण की पवित्रता और इसे बनाए रखने वाली प्रणाली पर ज़ोर देती हैं। इस्लाम विशेष रूप से पर्यावरण पर ज़ोर देते हुए एक सेहतमंद समाज के लिए व्यापक सिद्धांतों को निर्धारित करता है। यह भी एक स्पष्ट तथ्य है कि अधिकांश पर्यावरण संबंधी समस्याएं निर्बाध मानव उपभोग का परिणाम है और यह केवल जनता है जो उपभोग के इन तरीक़ों को बदलकर पर्यावरणीय स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित कर सकती है।

उपरोक्त समझ के मद्देनज़र यह समय की आवश्यकता है कि वांछित पर्यावरणीय सुधारों के प्रति जागरूकता, शिक्षा और सक्रियता के लिए हर जगह व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इसके बिना जीवन की निरंतरता हमेशा ख़तरे में रहेगी। यह महसूस किया जाना चाहिए कि सरकार और जनता दोनों मिलकर वर्तमान समय में पर्यावरण संबंधी मुद्दों का हल निकाल सकते हैं जैसे कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन, प्रजातियों का विलुप्त होना, वनों और पेड़ों की कटाई, जल स्रोतों का सिकुड़ना, वर्षा की अनिश्चितता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, आदि।

इसके लिए जनता की जागरूकता और सरकारी प्रतिबद्धताएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। राजनीतिक और साथ ही सामाजिक एजेंडे पर पर्यावरण संबंधी मुद्दों को लाकर सरकारी प्रतिबद्धताओं को सुनिश्चित किया जा सकता है। इन दो वर्गों के बीच, पर्यावरण कार्यकर्ताओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका है जो एक तरफ़ जनता को जागृत कर सकें तो दूसरी ओर सरकार के साथ संबंधित मुद्दों पर तालमेल पैदा कर सकें। हालांकि, हमारे समाज में ऐसे कार्यकर्ता बहुत कम है, मगर वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिए हर जगह उनकी प्रभावी सक्रियता ही एकमात्र तरीक़ा है। इसलिए, पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जितना संभव हो उतना प्रभावी ढंग से तैयार करने, प्रशिक्षित करने और एकत्रित करने की आवश्यकता है।

(लेखक जाने-माने पर्यावरण विशेषज्ञ और लेखक हैं। ‘इस्लाम एण्ड दि इन्व़ाइरन्‌मेंट’ उनकी एक प्रसिद्ध किताब है। वर्तमान में वे दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ पॉलिसी स्टडीज़ के अध्यक्ष हैं।)

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