भारत में कोरोना वायरस की आड़ में मुसलमानों का आर्थिक दमन, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के पीछे कौन??

पूर्वनियोजित हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाना 20 वीं सदी का सबसे बड़ा षड्यंत्र था। आज भी वे इसका उपयोग करते रहते हैं। (ताज़ा उदाहरण हालही में दिल्ली में हुए सुनियोजित दंगे) लेकिन 21 वीं सदी में आरएसएस ने अपने कुछ कार्यों में बदलाव किया है।

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-नेहाल रिज़वी, कानपुर

मीडिया और संघ का ये मॉडल तो नया है मगर तरीक़ा वही पुराना। संघ की इस चाल को समझने के लिए आपको इस लेख के पूरा पढ़ना होगा और बीते हुए कल की कुछ बातों को फिर से समझना होगा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को एक टीवी कार्यक्रम में कहा कि, तब्लीगी जमातियों के चलते राज्य में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है। कहा- निजामुद्दीन मरकज में जो तब्लीगी गए थे, उन्हें यह बात पता थी कि जो विदेश से आए तब्लीगी हैं वे कोरोना पॉजिटिव हैं। बावजूद इसके उन लोगों ने बीमारी को छिपाई।

हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा बिना नाम लिए कोरोना फैलाने के नाम पर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर कुछ बातें कहीं था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा है, ”अगर कोई क्रोध या डर में कुछ उल्टा-सीधा करता है तो सारे समूह को उसमें लपेट कर उससे दूरी बनना ठीक नहीं है।”

कोरोना वायरस महामारी के समय में देश में मुसलमानों पर हमले और उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश। मीडिया पर कई ऐसे वीडियो देखने को मिले हैं जहां मुसलमान रेहड़ी वालों से फल-सब्ज़ी नहीं ख़रीदने की अपील की जा रही है। यूपी, उत्तराखंड, कर्नाटक, पंजाब सहित कई कोनों से ऐसे मुसलमान-विरोधी वीडियो सामने आ रहे हैं। एक नरेटिव ये भी फैलाया जा रहा है कि ‘मुसलमान कोरोना फैला रहे हैं।’
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RRS) यह एक ब्रह्मणवादियों का, ब्रह्मणवादियों के हित के लिए और ब्रह्मणवादियों द्वारा चलाया जानेवाला एक साम्प्रदायि संगठन है। ब्रह्मणवादियों का झूठा प्रचार है कि यह एक सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रवादी संगठन है। बहुजन और दलित युवाओं को संघ के साथ जोड़ने के लिए यह झूठ प्रचार किया जाता है। पिछले कई सालों से चली आ रही विषमवादी जाति-व्यवस्था को बनाए रखना और सभी जातियों पर ब्रह्मणवादी वर्चस्व बनाए रखना यही इस संगठन का मुख्य उद्देश्य है। इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं और परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग षड्यंत्रों का उपयोग करते हैं।

पूर्वनियोजित हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाना 20 वीं सदी का सबसे बड़ा षड्यंत्र था। आज भी वे इसका उपयोग करते रहते हैं। (ताज़ा उदाहरण हालही में दिल्ली में हुए सुनियोजित दंगे) लेकिन 21 वीं सदी में आरएसएस ने अपने कुछ कार्यों में बदलाव किया है। हिंदू-मुस्लिम दंगे करनावे के अलावा मुस्लिम आतंकवाद का डर लोगों के दिलों -दिमाग़ में भर देने का काम आरएसएस और अन्य ब्रह्मणवादी संगठन करते रहे हैं, जिसमें मौजूदा समय भारतीए मीडिया द्वारा मुस्लमानों को लगातार टारगेट किया जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। साथ ही इस काम में गोपनीय एजेंसियां भी ब्रह्मणवादियों को सहयोग देती रही हैं।

21वीं सदी की शुरूआत में विशेषकर 2002 से 2008 के अंतराल में देश में कई जगहों पर जो बड़े-बड़े बम धमाके हुए, वे सारे आरएसएस के कृत्य हैं। सच कहें तो ऐसे बम धमाके होने के बाद उसकी जांच की एक परंपरा ही बन गई थी। जैसे ही कोई घटना हुई, Intelligence Bureau (IB) उसी दिन किसी मुस्लिम संगठन को दोष देकर उनके ख़िलाफ कार्रवाई करती थी। अगले 2-3 दिनों में देश के अलग-अलग स्थानों से मुस्लिम युवायों को गिरफ्तार किया जाता था। औऱ फिर देश का मीडिया इन खबरों को बड़े ज़ोर शोर से प्रकाशित करती थी।

इसके बाद टीवी पर प्राइम टाइम चलता, समाचार पत्रों में लेख -आलेख आदि में यह एक चर्चा का विषय बना रहता था। उस घटना को इससे पहले कि आप लोग भूलते तब तक और एक नई घटना हो जाती। उसकी भी इसी प्रकार जांच की जाती और फिर मीडिया में नया विषय बना रहता। पिछले 5-6 सालों से इस देश में इसी प्रकार से होता रहा।

इन कार्यकलापों में थोड़ी सी रुकावट उस समय आयी थी, जब 2006 में नादेंड़ बम धमाका हुआ। आरएसएस व बजरंग दल के आतंकी जब बम बना रहे थे उसी समय धमाका हुआ और घटना में 2 की मौत हुई और 4 घायल हो गए। लेकिन मीडिया ने इस घटना का ज़्यादा प्रसारण नहीं किया, परिणामत: लोग उसे जल्दी ही भूल गए। कुछ समय पश्चात फिर पहले जैसे बड़े धमाके होने शुरू हुए। साथ ही शुरू हुआ इन राज्य स्तरीय पुलिस एजेंसियों द्वारा मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार करना। मीडिया ने भी पहले की तरह इन्हीं ख़बरों को अधिक प्रकाशित करना शुरू कर दिया। इस तरह मुस्लिम आतंकवाद का झूठा माहौल फैलाने में आरएसएस धीरे-धीरे कामयाब होने गया।

लेकिन एटीएस चीफ हेमंत करके ने आरएसएस की सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया। सितंबर 2008 में मालेगांव में हुए बम धमाके की जांच करते समय उन्हें कुछ सबूत मिले जिससे स्पष्ट हुआ कि सिर्फ मालेगांव 2008 ही नहीं बल्कि इसके पूर्व जो भी बम धमाके हुए और उनमें भी आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के आतंकवादी बेनक़ाब हुए। मेरी जानकारी के अनुसार संघ परिवार के खिलाफ लगभग 18 मामले लंबित थे। उसमें से 14 सिर्फ संघ परिवार के आरएसएस के खिलाफ थे ….

हेमंत करकरे का मारा जाना भी एक सुनियोजित साजिश थी जिसको मुंबई का एक सहारा मिला और उन्हें मौका मिलते ही मार दिया गया।

स्पष्ट है कि पिछले 90 साल से जो संगठन कथित रूप से देश में सामाजिक, सांस्कृतिक, देशप्रेम की भावना जगाने का कार्य कर रहा है, वह हक़ीकत में देश में आतंक फैलाने वाला एक आतंकवादी संगठन है और वह एक देशव्यापी देशद्रोही साज़िश का सूत्र संचालन कर रहा है।
मौजूदा समय में योगी का जमातियों पर जानबूझकर कोरोना फैलाने का आरोप लगाना। देशभर में सरकारी मशीनरी द्वारा मुसलमानों का दमन करना और संघ का नपा-तुला बयान इसी साज़िश का हिस्सा है। भारतीए मीडिया नें सघ का वही पुराने मॉडल पर काम करना शुरू कर दिया। पूरे देश में वर्तमान समय में मुसलमानों को सबसे ज़्यादा नुकसान मीडिया ने ही पहुंचाया है। आपको इस मॉडल को समझना होगा जिस पर मीडिया काम कर रही है।

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