आज हमारे अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन का पांचवां दिन था। दिनभर सैकड़ों छात्रों की भीड़ प्रदर्शन स्थल (बाब ए सैय्यद) पर जुटी रही। छात्राएं शामिल हुईं तो यह भीड़ हज़ारों में भी तब्दील हुई। विरोध प्रदर्शन ज़बरदस्त तरह से लगातार पांचवें दिन भी जारी है। विद्यार्थियों के उत्साह और हिम्मत में कमी नहीं आई है। हमारे समर्थन में विभिन्न देशों से, विभिन्न विश्वविद्यालयों से लगातार लोग आ रहे हैं जिनके लिए सम्भव है, वे दूर-दराज़ के इलाक़ों से कैम्पस में आकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। हमारे हौसले और भी बुलंद हो जाते हैं जब ऐसे ‘अनाम’ लोग हमारे साथ आते हैं, जिनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं कि ये लोग कौन हैं? विश्विद्यालय से इनका क्या सम्बन्ध है? लेकिन उनके द्वारा हज़ारों की संख्या में मौजूद विद्यार्थियों के लिए खाने और पानी की व्यवस्था कर दी जाती है। यह विरोध प्रदर्शन आंदोलन का रूप ले चुका है और अलीगढ़ की सरज़मीन ही नहीं, पूरा विश्व इस आंदोलन का गवाह बन रहा है।लेकिन इसके साथ-साथ इस आंदोलन को तोड़ने के लिए लगातार कोशिशें की जा रहीं हैं। वे लोग किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं, इस आंदोलन को तोड़ने के लिए। अब, धीरे-धीरे विद्यार्थियों के मतभेद भी सामने आ रहे हैं। मेरे भी छात्रसंघ पदाधिकारियों, शिक्षकों और विश्विद्यालय प्रशासन से भी मतभेद हैं लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि मैं इस आंदोलन का हिस्सा नहीं हूं या मैं इस आंदोलन से पीछे हट रहा हूं। मतभेद किसी को भी हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि वह विद्यार्थी आंदोलन को कमज़ोर कर रहा है। हम सभी पूरी मज़बूती के साथ खड़े हैं और आख़िर तक खड़े रहेंगे। मैं अपने विचार रख रहा हूं, यह आवश्यक नहीं है कि कोई इनसे सहमति ही रखे।
१. जिस दिन यह प्रकरण शुरू हुआ था, उसी दिन छात्रसंघ पदाधिकारियों को अपने कैबिनेट सदस्यों की कुछ समितियां गठित कर देनी चाहिए थीं, जिनके संरक्षक छात्रसंघ पदाधिकारी स्वयं होते। इन समितियों के कार्यों में साथ देने के लिए, विश्वविद्यालय के अन्य विद्यार्थियों को भी जोड़ा जा सकता था।
२. एक समिति को मीडिया का काम संभालने की ज़िम्मेदारी दे दी जाती। प्रेस विज्ञप्ति तैयार करने से लेकर चैनल वालों को बयान देने तक का काम इस समिति के सदस्यों का होता। साथ ही यह समिति लोकल अख़बारों में प्रकाशित हो रहीं फ़ेक न्यूज़ का खंडन करने का काम भी करती। मीडिया के लोगों के लिए अलग बैठने की व्यवस्था की जाती, जहां आपकी मीडिया सेल हर समय मौजूद रहती। जो भी अख़बार या चैनल आपके आंदोलन को लेकर फ़ेक न्यूज़ फैलाते, उसका शांतिपूर्ण ढंग से boycott किया जाता और कोई भी विद्यार्थी उस चैनल या अख़बार को बयान नहीं देता।
३. दूसरी समिति को क़ानूनी प्रक्रिया पर काम करने के लिए निर्देशित किया जाता। हर एक काग़ज़ी कार्यवाही को पूरा करना, लोकल पुलिस और प्रॉक्टर और कुलपति से सम्पर्क बनाना, लिखित में उनके बयान लेना, जिन सुरक्षाकर्मियों और विद्यार्थियों पर हमला हुआ है उनका लिखित एवं हस्ताक्षर सहित बयान दिलवाना और उच्च न्यायालय तक जाना, यह सब इस समिति की निगरानी में होता। इस समिति में विधि विभाग के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का योगदान भी लिया जाता।
४. तीसरी समिति का काम विरोध प्रदर्शन के तरीके पर ध्यान देना होना चाहिए था। विरोध प्रदर्शन की शक्ल क्या होगी? उसकी समय सीमा क्या होगी? क्या सिर्फ़ नारेबाज़ी और राजनीतिक भाषणबाज़ी ही विरोध दर्ज कराने का एकमात्र तरीका है? हमें ख़ुद सोचना चाहिए कि उन्होंने हमारे ऊपर हमला क्यों किया? सबसे बुनियादी वजह यह है कि उन्हें यह बात खलती है कि अल्पसंख्यक समुदायों के पैंतीस हज़ार युवा एकसाथ शिक्षा हासिल कर रहे हैं। वे हमें अनपढ़ और जाहिल भीड़ में बदल देना चाहते हैं जिसे जिधर चाहे हांक दिया जाए। जैसा कि वे अपने समाज के युवाओं के साथ कर भी रहे हैं ताकि हम पढ़-लिख कर उनसे कोई सवाल न कर सकें। इसका विरोध करने का सबसे अच्छा और कारगर तरीका क्या होगा? उनके मुंह पर सबसे बड़ा तमाचा होता अगर पहले ही दिन, उसी दिन, हामिद अंसारी साहब का सम्बोधन होता। नहीं हो सका।
आगे परीक्षाएं हैं और रमज़ान भी। क्या होगा? समय से परीक्षाएं कराइए ताकि उन्हें अच्छी तरह एहसास हो जाए कि छः गुंडों से डरकर हम अपने academic session पर कोई असर नहीं होने देंगे। वे लोग घुट-घुटकर मर जाएंगे अगर इसी बाब ए सैय्यद पर बैरियर सहित एक मंच लगेगा, प्रोफ़ेसर्स आएंगे और रोज़ाना एक-दो घंटे Muslim Identity Politics, Nationalism, History Of RSS’s Facism, Role Of Muslims In Freedom Movement, Current Indian Political Scenario And Role Of Minorities आदि विषयों पर ‘तथ्यात्मक’ लेक्चर्स देंगे। इस चीज़ को लेकर विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ को भी क़दम उठाने होंगे। आपने हमारे साथ खड़े रहने का वादा किया, कलेक्ट्रेट तक मार्च किया, बहुत अच्छी बात है। हम आपके आभारी हैं लेकिन इस ताल्लुक से भी आपको सोचना होगा। आज सुबह छात्रसंघ अध्यक्ष ने सभी स्पीकर्स को ‘The Idea Of University : Shakha vs Sanstha’ विषय पर बात रखने के लिए कहा, बहुत अच्छा लगा लेकिन किसी भी स्पीकर ने इस विषय पर एक वाक्य भी नहीं बोला। ये ऐसे नहीं होगा, आपको पूर्व नियोजन करना ही होगा। आप कैम्पस में ऐसे लोगों को बुलाइए जो कुछ Productive और Constructive समर्थन दे सकें। हमें अपने व्यक्तिगत हित परे रखने होंगे। अगर हम वास्तव में इस विश्वविद्यालय की अस्मिता को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं तो हमें यह भूलना होगा कि टिकट कौन सी पार्टी दे सकती है? हमें अगले छात्रसंघ चुनाव में लड़ने की बात दिमाग़ से निकाल कर संघर्षरत् होना होगा। हमें यह भी समझना होगा कि समर्थन देने का मतलब माइक पर बोलना नहीं होता। एक आम विद्यार्थी जो कड़ी धूप में छः से आठ घंटे बैठ रहा है, वह भी समर्थन दे रहा है। आप चुपचाप भीड़ के बीच बैठकर, बिना माइक छीने, भी समर्थन दे सकते हैं।
५. आख़िरी बात, आंदोलन सिर्फ़ जज़्बाती तक़रीरों और नारों के बल पर नहीं चलते, आंदोलन के लिए mobilization बहुत आवश्यक है जोकि हमारे पास मौजूद है लेकिन उस mob को भरोसे में लेना सबसे बड़ी चीज़ है। विद्यार्थी आपको अपनी उपस्थिति दे सकते हैं लेकिन बदले में आप उन्हें भरोसा दीजिए। विपक्षी दलों के नेताओं को बुलाइए लेकिन उनसे साफ़ कह दीजिए कि आगामी चुनावों को लेकर अपनी रणनीति बाब ए सैय्यद में दाख़िल होने से पहले ही रख दें और वापस जाते समय उठा लें, अन्यथा कैम्पस में न आएं। यह बात उन लोगों के लिए भी है जो इस विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं और अपने दलों और संगठनों का हित सामने रखकर काम कर रहे हैं। यह समय ढोलक बजाने और नारा ए तकबीर के लिए लड़ने का नहीं है। यह लाल, नीले और हरे की लड़ाई नहीं है। यह आपके विश्वविद्यालय और आपके समुदाय की अस्मिता की लड़ाई है। याद रखिए, अगर विश्वविद्यालय नहीं बचेगा तो न आपका समुदाय बचेगा और न आपके लाल-नीले-हरे सलाम।
अभी भी समय है, एकजुट होकर इस विश्वविद्यालय की अस्मिता को बचा लीजिए वर्ना कुछ काम नहीं आएंगे आपके नारे और भाषण।