कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना ओबीसी वोटों के लिए भाजपा की बेचैनी को दर्शाता है

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-समी अहमद

पटना | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार शाम को घोषणा की है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़ी जाति के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. यह भी एक इत्तेफाक है कि उन्हें भारत रत्न उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर देने की घोषणा की गई है क्योंकि उनकी आधिकारिक जन्मतिथि 24 जनवरी 1924 है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, “मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है.”

एक्स पर उनके बयान के बाद एक लेख आया जिसे अगले दिन लगभग सभी अखबारों ने छापा. यह मोदी और भाजपा की खुद को कर्पूरी ठाकुर का महान अनुयायी साबित करने की तैयारी को दर्शाता है.

हालांकि, एक लोकप्रिय नेता, कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री के रूप में पूरे पांच साल का कार्यकाल नहीं मिल सका. लेकिन बेहद साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर उनका मुख्यमंत्री पद तक पहुंचना काफी प्रतीकात्मक माना जाता है. वह 1978 में अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण लागू करने वाले पहले मुख्यमंत्री थे.

उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा से पहले ही बिहार में कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर दावा करने की होड़ मच गई थी. राजद प्रमुख लालू प्रसाद और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार दोनों गर्व से कर्पूरी ठाकुर को अपना गुरु घोषित करते हैं.

पटना में बीजेपी की राज्य इकाई कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने के लिए एक समारोह का आयोजन कर रही है. राजद और जदयू ने आज पटना में कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाई.

चूंकि लोकसभा चुनाव करीब है, इसलिए इस घोषणा को खासकर बिहार में पिछड़ी जातियों (ओबीसी और ईबीसी दोनों) वोटों को लुभाने के लिए एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया जा रहा है. यह मास्टरस्ट्रोक है या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन यह नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की पिछड़ी राजनीति को काउंटर करने की एक कोशिश ज़रूर है.

विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा के पास मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी स्वतंत्रता सेनानी या समाजवादी शख्सियत की कमी है, इसलिए वह ऐसी शख्सियतों को साधने की कोशिश करती है. इससे पहले बीजेपी ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह को भी हथियाने की कोशिश की थी.

गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कई वर्षों से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे. लेकिन भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इसकी घोषणा करने के लिए अपने दूसरे कार्यकाल के खत्म होने का इंतज़ार किया और अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद राम लहर पर सवार होकर इसकी घोषणा की.

विश्लेषकों का कहना है कि राम मंदिर की लहर को लेकर कोई संदेह नहीं है लेकिन बीजेपी को इस बात का यकीन नहीं है कि यह चुनावी जीत के लिए पर्याप्त होगी या नहीं.

2019 में, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए ने बिहार की 40 सीटों में से 39 लोकसभा सीटें जीती थीं, जब नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए में थी. किशनगंज की एक सीट पर कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने जीत दर्ज की थी.

चूंकि नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा हैं, इसलिए भाजपा बिहार में घबराई हुई लग रही है, जबकि उसके खेमे में पशुपति कुमार पारस, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे छोटे दल के नेता हैं.

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का एक कारण पिछले साल बिहार सरकार द्वारा कराया गया जाति सर्वेक्षण भी माना जाता है. गौरतलब है कि नाई परिवार से आने वाले कर्पूरी नई गढ़ी गई श्रेणी ईबीसी या ‘अति पिछड़ा वर्ग’ से थे.

जाति सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार की आबादी में सबसे ज्यादा 37 फीसदी हिस्सा ईबीसी का है. यह सभी राजनीतिक दलों को ईबीसी वोटों के पीछे जाने के लिए मजबूर करता है. बीजेपी के लिए ईबीसी वोट हासिल करना आसान था क्योंकि नीतीश कुमार उनके साथ थे, लेकिन चूंकि उन्होंने अपनी राहें अलग कर ली हैं, इसलिए बीजेपी ईबीसी वोटों को लुभाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है. यह निश्चित है कि भाजपा आक्रामक तरीके से ओबीसी और ईबीसी के असली चैंपियन के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश करेगी.

यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के इस कदम का राजद और जद (यू) कैसे मुकाबला करते हैं. बिहार के मुख्यमंत्री और बीजेपी के पूर्व सहयोगी नीतीश कुमार ने इस घोषणा के लिए केंद्र और प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया. नीतीश के अगले कदम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं क्योंकि वह केंद्र सरकार के प्रति काफी नरम नज़र आ रहे हैं.

राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने एक्स पर लिखा कि, भारत रत्न पुरस्कार उनके ‘राजनीतिक और वैचारिक गुरु’ को बहुत पहले ही प्रदान किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा, “हमने संसद से सड़क तक लड़ाई लड़ी लेकिन केंद्र सरकार तब जागी जब बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया और आरक्षण की सीमा बढ़ा दी.”

राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा कि, भारतीय जनसंघ जो बाद में भाजपा बनी, ने 1967 में कर्पूरी को मुख्यमंत्री बनने के लिए समर्थन नहीं देने की साज़िश रची थी.

साभार: इंडिया टुमारो

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