क्या बाबरी विध्वंस महज एक धार्मिक नरसंहार था?

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बाबरी मस्जिद का विध्वंस केवल धार्मिक भावनाओं का पालन करने वाला कार्य नहीं था, बल्कि यह भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक पहचान स्थापित करने के लिए एक सुव्यवस्थित योजना थी। दरअसल यह जनता पार्टी के आंतरिक मतभेदों के उजागर होने के बाद भारतीय जनता पार्टी, 1980 में गठित जनसंघ की उत्तराधिकारी पार्टी है। शुरू में भाजपा का कोई पारंपरिक वोट बैंक नहीं था, इसलिए 1984 के लोकसभा चुनाव में उसे केवल 2 सीटों पर जीत मिली। बीजेपी ने इस झटके को सबक के रूप में लिया और अपनी नीति को पुनः संशोधित किया। उसी दौरान लालकृष्ण आडवाणी को अपना पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया बाद में भाजपा ने वाजपेयी की उदारवादी विचारधारा को कट्टरपंथी हिंदू राष्ट्रवादी में बदलकर सामना किया।
स्वर्गीय अशोक सिंघल ने 1984 में बाबरी मस्जिद में राम की मूर्ति को स्थापित करने के लिए ‘राम जानकी यात्रा’ शुरू की। यह सब राम के नाम पर हिंदू लोगों की भीड़ जुटाने और संघठित करने के बारे में था, हालांकि उस समय इस यात्रा को अयोध्या के स्थानीय लोगों ने रोक दिया था क्योंकि उन्होंने सिंघल को स्पष्ट कह दिया था कि वे क्षेत्र में किसी भी तरह के सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं।
राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वीएचपी के सहयोग से 1986 में पूजा के लिए बाबरी मस्जिद के द्वार खोले और 1989 में शिलान्यास किया, उसी समय ठीक मस्जिद के स्थान पर मंदिर बनाने की मांग को राजनीतिक मान्यता दी गई। सितंबर 1990 में आडवाणी ने बाबरी मस्जिद को स्थानांतरित करने और ठीक उसी स्थान पर राम मंदिर के पुनर्निर्माण के पक्ष में जनमत जुटाने के लिए रथयात्रा की शुरूआत की। 1990 और 1992 के कारासेवा के नतीजों ने आखिरकार दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया, बल्कि यह घृणित कार्य उन आतंकवादियों द्वारा अंजाम दिया गया, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को एक कट्टरपंथी दौर में स्थानांतरित करके छोड़ दिया।
भाजपा को बाद के चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का साथ मिला जो बदस्तूर आज भी जारी है। बीजेपी की चरम हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा एकमात्र उपकरण है जिसका उपयोग वह वोट बैंक के लिए हमेशा से करता आया है। क्योंकि हम वर्तमान में चल रही घटनाओं से देख सकते हैं कि भारत में पूर्व से स्थापित सामाजिक ताना-बाना को कैसे ख़त्म किया जा रहा है। राजनीतिक लाभ के लिए चुनाव के समय गोमांस जैसे मुद्दे उठाये जाते हैं। बाबरी मस्जिद विध्वंस छात्रों और पाठकों के लिए सांप्रदायिक राजनीति और भारत में चरम हिंदू राजनीति का बेंच मार्क बन जाता है।

A Hoda

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