बिना न्याय के शांति नहीं: अमेरिका में अश्वेत समुदाय का नस्लभेद के खिलाफ संघर्ष जारी

कुछ दिनों पहले एक ब्लैक अमेरिकन की हत्या पुलिसकर्मियों द्वारा सड़कों पर कर दी गई थी वीडियो के वायरल होने के बाद लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया । दुनिया इस चल रहे विरोध से जो सबक ले सकती है वह इस प्रकार है

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बिना न्याय के शांति नहीं : कोई भी राष्ट्र या राज्य न्याय के बिना लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता है और यदि मशीनरी भ्रष्ट हो जाती है तो लोग सड़कों पर निकल आते हैं और न्याय के लिए लड़ते हैं। यह विरोध यह भी दर्शाता है कि जिस तंत्र के लिए अमेरिकी गर्व महसूस करते थे, वह ध्वस्त होने लगा है और अपने ही लोगों को न्याय देने की स्थिति में नहीं है। इसलिए जब लोगों को लगता है कि न्याय सिद्ध करने में यह व्यवस्था अपर्याप्त है, तो वे सड़क पर आ गए और इसी कारण से, यूएसए में कई शहरों में मार्च हो रहे हैं।
एकजुटता अन्याय से लड़ने का तरीका है: हाल ही में हमने बहुत सी क्लिप देखीं, जिसमे व्हाइट प्रोटेस्टर्स ब्लैक अमेरिकन के साथ कन्धा से कन्धा मिला कर प्रोटेस्ट कर रहे है और उन्हें पुलिस के उत्पीड़न से बचा रहे है । गोरे अमेरिकियों द्वारा काले अमेरिकियों के साथ एकजुटता हर विरोध में देखी जा सकती है। अकेला व्यक्ति लंबे समय तक खड़ा नहीं रह सकता है लेकिन एक साथ चीजों को बदला जा सकता है और न्याय स्थापित जा सकता है।
प्रदर्शनकारियों का समर्थन करने वाली सरकारी मशीनरी: बहुत सारे वीडियो में यह भी देखा जा सकता है कि बहुत सारे सरकारी कर्मचारी या तो पुलिस या बस ड्राइवर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कुछ भी करने से इनकार कर देते है और अपने देश राष्ट्रपति तक को चुप रहने की बात सबके सामने करते है |
ग्लोबल सॉलिडैरिटी: इस मुद्दे पर इतने बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय संगठन का ध्यान गया और उनमे कई भारतीयों भी शामिल है जिन्होंने इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया है .
लेकिन यह सब देखने के बाद जब मैं कुछ महीनों पहले कश्मीर और सीएए एनआरसी और एनपीआर के लिए जो विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, उसके बारे में सोचने की कोशिश करता हूं, तो कुछ इस तरह की चीज़े याद आती है |
खुद के लोगों के लिए कोई एकजुटता नहीं: वे लोग जो ब्लैक अमेरिकन के समर्थन में वीडियो अपलोड कर रहे हैं और पोस्ट कर रहे हैं, कश्मीर मुद्दे पर या तो चुप थे या तो सरकार के साथ खड़े थे क्योंकि हमारे लिए सॉलिडैरिटी समय , प्रिविलेज और कंट्री देख कर देने का पुराना रिवाज़ है । एक राज्य के सभी अधिकारों को ख़तम कर दिया गया और लोगों को महीनो तक बंद रखा गया लेकिन हमने कभी उनके साथ खड़े होने की हिम्मत नहीं दिखाई । लोग इतने दिनों तक सड़कों पर थे और अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन देश के बहुसंख्यक वर्ग से कोई आवाज़ साथ नहीं आई ।
भ्रष्ट और विरोधी मशीनरी: जामिया पुलिस हमला, जेएनयू हमला, दिल्ली हिंसा सभी भ्रष्ट या आंशिक सरकारी मशीनरी के कारण थे, जिस पर कभी भी सवाल नहीं उठाया गया । पुलिस ने लोगों को खुलेआम तब तक पीटा जब तक वे मर नहीं गए और अब वही पुलिस ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर रही हैं जो NRC CAA विरोध को लीड रहे थे ।
तो इससे पता चलता है कि दो अलग-अलग देशों में 2 विरोध प्रदर्शनों के लगभग समान कारण मगर दृष्टिकोण में कई चीजें असामान्य हैं।
भारत के लोकतंत्र को अब भी एक लंबा रास्ता तय करना है ……

नदीम ख़ान

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