कविता-इंसान…

0
992

 

जिसमें होता है विवेक
बुद्धि, बोलने की क्षमता
सोचने की शक्ति।

क्या वाकई वह अलग है
जानवर से?

नहीं,
विवेक मर गया है
उसका!
बुद्धि का ज्यादा और
गलत इस्तेमाल करने लगा है वह!
उल्टा और घटिया सोच
रखने लगा है वो

सिर्फ नाम का इंसान
रह गया है वह

जो निरीह बेजुबान
जानवरों को मार डालता है
भोजन में पटाखे डाल कर।

ऐसी हरकत
जानवर भी नहीं करते

कहते हैं जानवर पर भरोसा
नहीं कर सकते
लेकिन..
अब जानवर ही
भरोसा नहीं करेंगे
इस इंसान रूपी
खोखले ढांचे पर

जो हकीकत में है
हकदार,
जानवर कहलाने का

और खो दिया है हक
इंसान कहलाने का

-ज़फर अहमद, मधेपुरा, बिहार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here