छात्र संगठन SIO की शिक्षा यात्रा

जामिया मिल्लिया इस्लामिया से शुरू होकर ये यात्रा हमदर्द यूनिवर्सिटी , दिल्ली यूनिवर्सिटी होते हुवे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय पहुंची. इन जगहों पर संगठन द्वारा नुककड़ नाटक, छात्र रैली और पर्तिरोध सभाएं आयोजित की गई. ये शिक्षा यात्रा SIO के राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है जो संगठन ने शिक्षा और शिक्षण संस्थानों के आंतरिक उपनिवेशवाद के विरुद्ध शुरू किया है. जिसका शीर्षक "शिक्षा के आंतरिक उपनिवेशीकरण का विरोध; पिछडों के अधिकारों की मांग” है.

0
1236

पिछले वर्षों से सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र एवं शिक्षा नीतियों में किये गए कई परिवर्तनों के विरुद्ध छात्र संगठन SIO (स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इंडिया) ने शिक्षा यात्रा का आयोजन किया है . जो 25 अगस्त को जयपुर शहर से शुरू हुई है. ये यात्रा भारत के विभिन्न उत्तर भारतीय राज्यों के विश्वविद्यालयों में जाकर अपना सन्देश फेलाएगी और छात्रों को सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों के विरुद्ध जागरूक करेगी.

29 अगस्त को ये यात्रा दिल्ली पहुंची और देश के चार विख्यात विश्विद्यालयों में संगठन के पदाधिकारियों ने विजिट कर छात्रों के समक्ष अपनी बातें रखी. जामिया मिल्लिया इस्लामिया से शुरू होकर ये यात्रा हमदर्द यूनिवर्सिटी , दिल्ली यूनिवर्सिटी होते हुवे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय पहुंची. इन जगहों पर संगठन द्वारा नुककड़ नाटक, छात्र रैली और पर्तिरोध सभाएं आयोजित की गई. ये शिक्षा यात्रा SIO के राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है जो संगठन ने शिक्षा और शिक्षण संस्थानों के आंतरिक उपनिवेशवाद के विरुद्ध शुरू किया है. जिसका शीर्षक शिक्षा के आंतरिक उपनिवेशीकरण का विरोध; पिछडों के अधिकारों की मांग” है.

 

अभियान का लक्ष्य :

इस अभियान का लक्ष्य उन भेदभावपूर्ण दृष्टिकोणों को उजागर करना है, जो सरकारें भारत के विभिन्न कमज़ोर वर्गों के ख़िलाफ़ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनाती हैं, उस भारत में जहां शैक्षणिक संस्थानों को ‘राष्ट्र के मंदिर’ होने का गौरव प्राप्त है। यह भेदभाव शैक्षणिक नीतियों द्वारा परवान चढ़ाई जा रही व्यवस्थित हिंसा के विभिन्न रूपों से स्पष्ट है। रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या ने इस हिंसा का ख़ुलासा किया जो देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों द्वारा संरचनात्मक रूप से आत्मसात की जा रही थी। समान हिंसा, जो ब्राह्मणवाद का प्रतीक है, विद्यार्थियों द्वारा संस्थागत भेदभाव को ख़त्म करने हेतु ‘रोहित एक्ट’ की मांग के समय दोहराई गई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के छात्रों के साथ झगड़े के बाद जेएनयू छात्र ‘नजीब अहमद’ का लापता होना, बिहार के कटिहार में मेडिकल पीजी छात्र ‘डॉक्टर फ़ैयाज़’ की हत्या आदि कई घटनाएं इससे सम्बन्धित हैं। दुर्भाग्यवश, सरकार ने इस तरह की हिंसा को रोकने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।

पृष्ठभूमि :

राज्य मशीनरी की सुस्ती के अलावा, सरकार विभिन्न माध्यमों द्वारा अधिक भेदभावपूर्ण रवैया अपना रही है। यद्यपि मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों और ओबीसी जातियों की स्थिति कमज़ोर है लेकिन सरकार उन्हें उनकी कमज़ोरियों के बंधनों से बाहर निकलने के अवसरों को छीन रही है। कई सांख्यिकीय आंकड़े इसे साबित करते हैं। MHRD द्वारा आयोजित उच्च शिक्षा पर आधारित सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में मुस्लिम विद्यार्थियों का अनुपात उनकी 14 प्रतिशत आबादी के मुकाबले केवल 4.9 प्रतिशत था। यह एक स्पष्ट सबूत है कि मुस्लिम समुदाय को उच्च शिक्षा में उनके उचित प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने में गंभीर बाधाएं हैं। जब आधिकारिक दस्तावेज़ मुसलमानों की पिछड़ी स्थिति साबित करते हैं, इसके बावजूद सरकार इसे हल करने के उपायों के सम्बन्ध में नहीं सोच रही है। बल्कि, अल्पसंख्यक छात्रों के लिए MANF फैलोशिप को ख़त्म करने के लिए सरकार ने भौंडे नियमों के साथ आना शुरू कर दिया है। एकमात्र वित्तीय सहायता है जो अल्पसंख्यक छात्रों को उनकी शिक्षा पूरी करने में मदद करती है। । यह यूजीसी नेट की लिखित परीक्षा में उनकी योग्यता के बावजूद अल्पसंख्यक समुदायों के शोधार्थियों के लिए थी और पूरी तरह से स्नातकोत्तर के अंकों पर आधारित थी। नई अधिसूचना के अनुसार अब फैलोशिप की उपलब्धता के लिए नेट की अर्हता प्राप्त करना अनिवार्य है। इसके परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा क्षेत्र से अधिक अल्पसंख्यक छात्रों को बाहर किया जाएगा और यह उच्च शिक्षा में विशेष रूप से शोध में मुस्लिम समुदाय समेत अल्पसंख्यकों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को और अधिक ख़राब कर देगा।

अभियान की मांगें :

1- MANF फैलोशिप  (अवरोध) को रद्द करें; फैलोशिप के लिए बजट आवंटन में वृद्धि।

2- एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ व्यवस्थित हिंसा को रोकने के लिए रोहित अधिनियम को लागू करें।

3- उच्च शिक्षा में प्रत्येक समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए विशेष पैकेज की व्यवस्था करें।

4- एमसीडीज़ की शैक्षणिक असमानता को खत्म करें।

5- शिक्षा का भगवाकरण बंद करें।

6- यूजीसी और इसकी सभी शक्तियों को बहाल करें।

7- शिक्षा में सरकारी सेवा सुनिश्चित करें; शिक्षा में वित्तीय स्वायत्तता निरस्त करें।

8- यूजीसी विनियमन के परिणामस्वरूप पीएचडी और एम फिल सीट कटौती ख़त्म करें।

शिक्षा पर आधारित अध्ययन बड़े पैमाने पर इसके उद्देश्य अथवा पहुंच पर केंद्रित हैं।  भारतीय संविधान के पिता डॉक्टर अम्बेडकर ने उपर्युक्त कथन में पहुंच के पहलू पर ज़ोर दिया है। उन्हें स्वयं भी औपचारिक शिक्षा के समय कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था। केवल उच्च जाति ही शिक्षा के अवसरों की हक़दार थी। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय इस उपनिवेशवाद व जातिवाद के ख़िलाफ़ लड़ने में बिताया था। यह सचमुच आंतरिक शक्तियों व समुदायों का औपनिवेशिक कार्य है। लोगों के विशेष शक्तिशाली समूह द्वारा एक योजनाबद्ध षड़यंत्र सार्वजनिक संपत्तियों को उपनिवेशित करने के लिए अच्छी तरह अमल में लाया जा रहा है। यह समय की मांग है कि उपनिवेशवाद के ऐसे रूपों के ख़िलाफ़ निरन्तर संघर्ष किया जाए जो समाज के कुछ वर्गों को अलग-अलग माध्यम अपनाकर शिक्षा के क्षेत्र से वंचित कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here