कोरोना-संक्रमण से बचाव के लिए क्या साबुन अनुपस्थित होने पर मिट्टी अथवा राख से हाथ धो सकते हैं?

"सैनिटाइज़र पानी का विकल्प नहीं है, धुलाई के लिए मार्केट की अपनी चालबाज़ी है। पानी जहाँ न हो, वहाँ सैनिटाइज़र प्रयोग किया जा सकता है। पर लोग सोचते हैं कि जो सफ़ाई पानी न कर सकेगा, वह सैनिटाइज़र कर देगा।"

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“कोरोना-संक्रमण से बचाव के लिए क्या साबुन अनुपस्थित होने पर मिट्टी अथवा राख से हाथ धो सकते हैं ?” एक ग्रामीण रोगी प्रश्न करता है।

“राख , मिट्टी अथवा रेत खुरदुरेपन के कारण हाथों से गन्दगी छुड़ाने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं। साथ ही लकड़ी की राख में पोटैशियम कार्बोनेट होता है, जिसके कारण वह क्षारीय होती है। कई बार हाथ धोने के लिए इस्तेमाल होने वाली मिट्टी में भी कैल्शियम कार्बोनेट होने के कारण क्षारीयता मौजूद होती है। किन्तु मिट्टी-राख-रेत में अनेक कीटाणु (जीवाणु व विषाणु दोनों) अथवा  हानिकारक रसायन भी मौजूद हो सकते हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर इन पदार्थों से हाथों को धोने की सलाह नहीं दी जा सकती। मिट्टी-राख-रेत की गुणवत्ता हर जगह की अलग है, एक-जैसी नहीं।”

“प्रयास करें कि साबुन-पानी से ही हाथ धोएँ। साबुन न मिले, तो केवल पानी से ही धोएँ। किन्तु ठीक से धोएँ। लगातार बीस सेकेण्ड तक धोएँ। उँगलियाँ-हथेलियाँ-आगे-पीछे-कलाइयाँ सभी कुछ रगड़कर। फिर अपनी निजी तौलिया या रुमाल से ही पोछें। जहाँ-तहाँ पोछने से धोये गये हाथ फिर संक्रमित हो सकते हैं।”

“फिर सैनिटाइज़र की ज़रूरत कहाँ है?” अगले शहरी मरीज़ का प्रश्न है।

“सैनिटाइज़र पानी का विकल्प नहीं है, धुलाई के लिए मार्केट की अपनी चालबाज़ी है। पानी जहाँ न हो, वहाँ सैनिटाइज़र प्रयोग किया जा सकता है। पर लोग सोचते हैं कि जो सफ़ाई पानी न कर सकेगा, वह सैनिटाइज़र कर देगा।”

“लोग पानी से बड़ा स्वच्छक सैनिटाइज़र क्यों मानते हैं?”

“क्योंकि रसायनों की अपनी सनसनी होती है। नया नाम मार्केट में आया है, बेहतर काम करता होगा। जल जल है, हज़ारों-हज़ार साल से है। लोगों से कहो कि ठीक से पानी से हाथ धोएँ , वे इसमें कुछ नया नहीं पाते। उन्हें क्लोरहेक्सिडीन लुभाता है, वे बीटाडीन की बात को ध्यान से सुनते हैं। इस चक्कर में वे सबसे महत्त्वपूर्ण काम भूल जाते हैं।”

“क्या?”

“हाथों को ‘किससे’ धोना है से अधिक आवश्यक यह जानना है कि हाथों को ‘कैसे’ धोना है। ठीक से हाथ न धोकर वे झटपट सैनिटाइज़र चुपड़ कर जल्दी से संक्रमण-मुक्त होना चाहते हैं।”

“मतलब यहाँ भी जल्दबाज़ी?”

“समस्या यही है। जिसके पास जेब में पैसे हैं, वह समय खर्चना ही नहीं चाहता। उसे हर काम जल्दी करना है। हाथों की सफ़ाई भी। मास्क-सैनिटाइज़र के धनखर्चू कर्मकाण्डों पर उसका ध्यान अधिक है, हाथों को ढंग से धोने और आसपास व चेहरा न छूने पर कम।”

Dr. Skand Shukla

 (Skand Shukla पेशे से डॉक्टर हैं, ये इनके अपने विचार हैं)

एक कंपनी एक खास केमिकल कंपोज़िशन का हैंड सेनेटाइजर बनाती है। वह कुछ रिसर्चरों को मनाती है कि वह उसपर रिसर्च करें। रिसर्च करने वाले उसके बदले में कुछ लाख या करोड़ रुपये मांगते हैं। वह कंपनी उन्हें वह खर्च मुहैया करवा देती है। रिसर्च तैयार हो जाती है। अगर रिसर्च सकारात्मक होती है तो उसे मीडिया को मनाकर प्रचारित और प्रसारित किया जाता है और नकारात्मक होती है तो उसे दफना दिया जाता है।

इस काम में बहुत ख़र्च होता है और फिर कमाई भी कई गुना कर ली जाती है। जो हम देख ही रहें हैं।

अब आते हैं कुदरती सेनेटाइजर नींबू और गर्म पानी के बारे में। आप ही बताइए इस बेचारे पर कौन रिसर्च करेगा, खर्च कौन उठाएगा और उसे प्रचारित करके किस कंपनी को लाभ होगा और कौन मीडिया को एड देगा? दुर्भाग्य से प्राकृतिक, हर जगह और हर व्यक्ति की पहुंच वाला नींबू और गर्म पानी का कोई मायबाप नहीं है।

साबुनों में ‘100 नींबुओं की शक्ति’ से कीटाणुओं का सफाया करने वाले लोग अब क्यों नींबू की शक्ति पर भरोसा नहीं कर रहें?

नींबू पीजिए और नींबू-गर्म पानी से हाथ धोइये। शरीर के अंदर-बाहर दोनों ही सफाई के लिए सदियों से चला आ रहा एक भरोसेमंद फार्मूला।

~डॉ अबरार मुल्तानी
लेखक- ज़िन्दगी इतनी सस्ती क्यों?

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