क्या आपको कुनन-पोशपोरा याद है?

साल 2014 में 23 फ़रवरी को 'कश्मीरी विमिन रेज़िस्टेंस डे' का नाम दिया गया।

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क्या आपको कुनन-पोशपोरा याद है?

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आज (23 फ़रवरी) के दिन भारत-प्रशासित कश्मीर में कुपवाड़ा ज़िले के दो नज़दीकी गाँव – कुनन और पोशपोरा में घटित सबसे भयानक तथा कलंकित जुर्म को 32 बरस पूरे हो गए हैं। सन् 1991 में आज ही की रात पूरे दक्षिण एशिया के इतिहास में दर्ज हुए कथित सामूहिक बलात्कार एवं यातना के सबसे बड़े मामले को भारतीय सैन्य बल द्वारा अंजाम दिया गया था। तब से लेकर आज तक इस हादसे पर बहसें हुईं, जाँच कमेटियाँ भी बैठीं, मुक़दमा दायर किया गया मगर सबका अंजाम ठंडे बस्ते में धूल खाना रहा।

सन् 2013, दिल्ली में निर्भया मामले को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद कश्मीरी महिलाओं ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल की तो इस केस को दोबारा खोला गया। इसके बाद हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार को पीड़ितों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़, राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। तर्क दिया गया कि चूंकि आरोप सेना के ख़िलाफ़ है तो मुआवज़े का आदेश राज्य सरकार को देना उचित नहीं है।

केंद्र ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष याचिका दायर की, जिसमें पीड़ितों को मुआवज़े का भुगतान करने के जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश और कुपवाड़ा ज़िला न्यायालय द्वारा इस मामले की पुनर्जांच के आदेश को चुनौती दी गई। कोर्ट ने पुनर्जांच और मुआवज़े के भुगतान पर रोक लगा दी। यहां तक ​​कि राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) द्वारा पारित आदेश पर भी रोक लगा दी गई, जिसने पुनर्जांच और मुआवज़े के भुगतान की भी सिफ़ारिश की थी।

मौजूदा समय में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट को मिलाकर 2014 के बाद से इस मामले में कुल 5 याचिकाएँ दाख़िल की जा चुकी हैं। इनमें से 3 याचिकाएँ भारतीय सेना की तरफ़ से हैं। मामला अब भी कोर्ट में है और इस बीच 6 कथित पीड़िताएँ दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं। विश्वभर में तमाम मीडिया हाउसों द्वारा इस ख़बर को कवर किया गया, अपराध को संज्ञान में भी लिया जा चुका मगर इंसाफ़ की आस को अब तीन दशक हो गए हैं। इंसाफ़ अब तक बाक़ी है।

साल 2014 में 23 फ़रवरी को ‘कश्मीरी विमिन रेज़िस्टेंस डे’ का नाम दिया गया।

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