जानिए कौन थे “मैलकम एक्स”

मैलकम एक्स ने अपने भाषणों के ज़रिए अफ़्रीक़ी अमेरिकी लोगों में आत्मविश्वास की लहर पैदा कर दी, जिसके फलस्वरूप उनके उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी। शोषण के विरुद्ध नैरेटिव बनाने में उनका बड़ा योगदान था। ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस और नॉन कॉम्प्रोमाइज़िंग अटिट्यूड ने अफ़्रीक़ी अमेरिकियों के आंदोलन को सैलाब की तरह बना दिया जिसने शोषण पर लगाम लगाई और उनके उत्पीड़न के विरुद्ध मुखर प्रतिरोध जन्म लेने लगा।

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जानिए कौन थे “मैलकम एक्स”

मुहम्मद इक़बाल

“अगर आप सतर्क नहीं हैं तो मीडिया आपको उन लोगों से नफ़रत करना सिखा देगा जो ज़ुल्म और ज़्यादती का शिकार हैं और उन लोगों से मुहब्बत करना सिखा देगा जो ज़ुल्म और ज़्यादती कर रहे हैं।” – “मैलकम एक्स”

58 साल से भी पहले अमेरिका में कहा गया मैलकम एक्स का ये कथन आधी सदी गुज़र जाने के बावजूद आज भारत में भी उतना ही प्रासंगिक हैं। भारत में मीडिया जिस तरह शोषित-वंचित समुदायों, ख़ास तौर पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा करने में व्यस्त है, ये बात किसी से छुपी हुई नहीं है। मीडिया द्वारा चलाए जा रहे प्रोपेगैंडा का परिणाम ये हुआ है कि देश में मुसलमानों की नकारात्मक छवि बन गई है और उन्हें विलेन के तौर पर देखा जाने लगा है जबकि सबसे ज़्यादा शोषित और वंचित समुदाय मुसलमान ख़ुद हैं। शोषित को शोषक बना कर दिखाने में मीडिया के प्रोपेगैंडा की बड़ी भूमिका है। मीडिया की इस भूमिका के बारे में आज से लगभग साठ साल पहले मैलकम एक्स कह चुके थे।

समाज पर इतनी गहरी नज़र रखने वाले और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ मुखर रहने वाले मैलकम एक्स कौन थे? आइए जानते हैं:

मैलकम एक्स का जन्म 19 मई 1925 को अमेरिका के नेब्रास्का प्रान्त के ओमाहा शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम अर्ल लिटिल था जो एक बेप्टिस्ट ईसाई पादरी थे। इसके अलावा वो अफ़्रीक़ी अमेरिकियों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे राष्ट्रवादी नेता मारक्स गैरवे के साथ कार्यकर्ता के रूप में जुड़े हुए थे। इन गतिविधियों की वजह से नस्लवादी गोरे लोगों के द्वारा उन पर हमले किये जाने लगे। इस कारण उन्हें दो बार अपना घर बदलना पड़ा। गोरे लोगों ने मिशिगन स्थित उनके घर को जलाकर राख कर दिया। इस घटना के दो साल बाद उनके पिता की लाश रेल पटरी पर मिली। लोगों का मानना था के उनकी हत्या करने के बाद लाश को पटरी पर डाल दिया गया था।

पिता की मृत्यु के बाद परिवार की ज़िम्मेदारी उनकी माँ, लूइस लिटिल के कंधों पर आ पड़ी। पति को खोने के सदमे के चलते उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया और आख़िरकार उन्हें पागलख़ाने में भेज दिया गया। मां-बाप दोनों की छत्र छाया से वंचित होने के कारण मैलकम एक्स के सभी भाइयों-बहनों को अनाथों जैसा जीवन जीना पड़ा।

इन मुश्किल परिस्थितियों में भी मैलकम एक्स ने अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखी। वह पढ़ाई में बहुत होशियार थे और स्कूल में अव्वल आने वाले बच्चों में से एक थे। लेकिन स्कूल की एक घटना ने उनके जीवन को नया मोड़ दे दिया। एक दफ़ा उनके गोरे शिक्षक ने उनसे पूछा कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? मैलकम ने वकील बनने की ख़्वाहिश जताई। यह सुनते ही टीचर ने कहा कि तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो, लेकिन यह मत भूलो कि तुम एक काले अफ़्रीक़ी हो और इस देश में यूरोपीय गोरे तुम्हें कभी यह मौक़ा नहीं देंगे कि तुम वकील बन सको। तुम हाथ का काम भी जानते हो, तुम्हें बढ़ई बनने के बारे में सोचना चाहिए।

टीचर की इस बात ने मैलकम एक्स को अंदर तक झकझोर दिया और उनकी बातों से हतोत्साहित होने के कारण उनका मन पढ़ाई से उचट गया, अंततः उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। पढ़ाई छोड़ने के बाद वो बुरी संगत में पड़ गए और ग़लत काम में संलग्न रहने लगे। उस दौरान उन्होंने सभी तरह के मवालियों वाले काम किये। इसी दौरान एक घड़ी चोरी करने के इल्ज़ाम में 1946 में अदालत ने उन्हें दस साल की सज़ा सुनाई।

जेल में रहने के दौरान एक ऐसी घटना हुई, जिसने मैलकम के जीवन पर गहरा असर डाला। वहां रहने वाले एक क़ैदी ने उन्हें जेल की लाइब्रेरी में जाकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और यहीं से मैलकम का किताबों से रिश्ता क़ायम हुआ, जो उसके बाद ताउम्र क़ायम रहा।

1948 में उनके भाई फिल्बर्ट ने उन्हें जेल में ख़त लिखा कि वे “Nation of Islam” नामक संस्था से जुड़ गए हैं। ये संगठन एलाइजा मुहम्मद के नेतृत्व में काम कर रहा था। जेल में रहने के दौरान ही मैलकम एक्स ने एलाइजा मुहम्मद से संवाद स्थापित कर लिया और उनके विचारों से प्रभावित हो गए।

छः साल से कुछ ज़्यादा समय जेल में गुज़ारने के बाद मैलकम 1952 में रिहा हुए। इसी साल शिकागों में एक कार्यक्रम में उनकी मुलाकात “Nation of Islam” के संस्थापक इलाइजा मुहम्मद से हुई और वे उनके इस आंदोलन से जुड़ गए। बाद में वह “Nation of Islam” के विभिन्न पदों पर भी रहे। मैलकम की कड़ी मेहनत, करिश्माई व्यक्तित्व, आक्रामक अंदाज़ और बेपनाह इल्म के बदौलत “Nation of Islam” न सिर्फ़ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हो गया। 1953 में “Nation of Islam” के सिर्फ़ चार हज़ार सदस्य थे जो मैलकम एक्स की मेहनत और उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के बदौलत 1963 तक बढ़कर चार लाख तक हो गए।

1963 में जब मैलकम एक्स ने इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं को जाना तब उनका “Nation of Islam” से मतभेद पैदा हो गया। उस दौरान उनकी मुलाक़ात डॉक्टर युसुफ शाहब्वरदी से हुई जिनसे उन्हें इस्लाम का वास्तविक ज्ञान मिला‌। उसके बाद 1964 में उन्होंने हज यात्रा की, जिसके बाद उनके सामने “Nation of Islam” की ग़लती स्पष्ट हो गई। “Nation of Islam” से अलग होने के बाद उन्होंने “Organisation for Afro American Unity” की स्थापना की।

हज के सफ़र का मैलकम एक्स की ज़िन्दगी पर गहरा असर पड़ा। अपनी हज यात्रा का उल्लेख करते हुए वह लिखते हैं कि, “मुझे इससे पहले कभी इतना सम्मानित नहीं किया गया। कौन उस बेपनाह सम्मान पर विश्वास करेगा जो एक अफ़्रीक़ी अमेरिकी को यहां मिला है!”

हज के दौरान इस्लाम की शिक्षाओं और मुसलमानों के बीच बराबरी व भाईचारे को व्यवहारिक रूप में देखकर मैलकम एक्स लिखते हैं कि, “पिछले ग्यारह दिनों तक मुस्लिम दुनिया में रहने के दौरान मैंने उनके साथ एक ही प्लेट में खाना खाया, एक ही गलास में पानी पिया और एक ही क़ालीन पर सोया, जिनकी आंखें नीली से भी नीली थीं और जिनके बाल भूरे से भी भूरे थे और जिनकी त्वचा श्वेत से भी श्वेत थी और बिल्कुल उन्हीं शब्दों, उन्हीं हरकतों में और उन्ही कर्मों में जैसे कि गोरे मुस्लिम करते थे, मैंने वही संजीदगी महसूस की जो मैं नाइजेरिया, सूडान और घाना के काले मुस्लिमों के साथ महसूस करता रहा हूं। हम सब सच्चे भाई थे क्योंकि एक ख़ुदा के विश्वास ने गोरे होने के एहसास को उनके दिमाग़, उनके रवैये और उनके व्यवहार से मिटा दिया था।”

“मैं देख सकता हूं कि शायद अगर गोरे अमेरिकी एक ख़ुदा के अक़ीदे को अपनाएंगे तब शायद वे भी इंसानी एकता की इस हक़ीक़त को क़ुबूल कर पाएंगे और दूसरों के रंगभेद के कारण उनका आकलन करना, उनके जीवन‌ में रुकावट डालना और उन्हें नुकसान पहुंचाना छोड़ देंगे। नस्लवाद ने अमेरिका को लाइलाज कैंसर की तरह पस्त कर रखा है। तथाकथित गोरे अमेरिकी इसाईयों के दिल इस विनाशकारी समस्या के निवारण के लिए ज़्यादा खुले होने चाहिए, शायद ये अमेरिका को आने वाली तबाही से बचा सकता है। बिल्कुल ऐसी ही तबाही जर्मनी में नस्लवादियों द्वारा लायी गयी जिसके नतीजे में जर्मनी ख़ुद जर्मनों के हाथों तबाह हो गया।”

मैलकम एक्स

मैलकम एक्स का मानना था कि गोरे लोग शैतान हैं और उनके साथ रहना नामुमकिन है। वो गोरे और काले लोगों के बीच सह अस्तित्व की अवधारणा के विरोधी थे लेकिन हज के सफ़र ने उनकी इस सोच को बदल दिया और वो इस नतीजे पर पहुंचे कि गोरों और कालों के बीच सह अस्तित्व की गुंजाइश है और इसका हल इस्लाम में है। वो इस्लाम के बंधुत्व और समानता के विचारों से बहुत प्रभावित थे। मैलकम एक्स लिखते हैं कि, “पूरी मुस्लिम दुनिया के अपने सफ़र के दौरान मैं उन लोगों से मिला, बात की, यहां तक कि उनके साथ खाना खाया जिन्हें अमेरिका में गोरा माना जाएगा। लेकिन उनके दिमाग़ से श्वेत मानसिकता को इस्लाम धर्म द्वारा मिटा दिया गया था। मैंने सभी रंग और नस्लों द्वारा दूसरे रंग और नस्ल की परवाह किये बिना ऐसा निष्कपट और सच्चा भाईचारा व्यवहार में लाते हुए कभी नहीं देखा। शायद आप मुझसे ऐसी बातें सुनकर हैरान हो गये होंगे लेकिन इस तीर्थयात्रा में जो मैंने देखा, जो अनुभव किया, उसने मुझे मजबूर किया कि मैं अपने पिछले सोचने के तरीक़ों को फिर से तय करूं और अपने कुछ पुराने निष्कर्ष एक तरफ़ किनारे रख दूं। ये मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं था। मेरे दृढ़ निश्चय के बावजूद मैं हमेशा एक ऐसा आदमी रहा हूं जो तथ्यों का सामना करने की कोशिश करता है और अपने नये अनुभव और नयी जानकरी की रौशनी में जीवन की सच्चाई को स्वीकार करता है। इस पवित्र भूमि पर गुज़ारा गया प्रत्येक लम्हा मुझे उस बात को गहराई से समझने में सक्षम बनाता जा रहा है जोकि अमेरिका के कालों और गोरों के बीच में हो रहा है। अमेरिकी अश्वेतों को नस्लीय दुश्मनी के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। वो सिर्फ़ उस नस्लवाद की प्रतिक्रिया दे रहे हैं जो अमेरिकी गोरों द्वारा चार सौ साल से जान बूझ कर किया जा रहा है, लेकिन जैसा कि नस्लवाद अमेरिका को आत्महत्या की तरफ़ ले जा रहा है, मैं अपने अनुभव के आधार पर ये विश्वास करता हूं कि गौरे नौजवान जो कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं, उनमें से कुछ सच्चाई की राह पर चलेंगे। नस्लवाद अमेरिका को जिस अवश्यंभावी तबाही की ओर ले जा रहा है, उससे सिर्फ़ यही चीज़ बचा सकती है।”

“Nation of Islam” से अलग होने और सच्चे इस्लाम धर्म से अवगत होने के बाद उन्हें जान से मार देने की धमकियां मिलने लगीं और उनके घर पर रात के समय पूरे परिवार पर जानलेवा हमला भी किया गया। 21 फ़रवरी 1965 के दिन न्यूयॉर्क के मैनहटन स्थित डुबोन बॉलरूम (Audubon Ballroom) के हॉल में अपना भाषण शुरू करते ही हमलावरों ने उन पर गोलियां चलाईं और उन्हें अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया।

मैलकम एक्स ने अपने भाषणों के ज़रिए अफ़्रीक़ी अमेरिकी लोगों में आत्मविश्वास की लहर पैदा कर दी, जिसके फलस्वरूप उनके उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी। शोषण के विरुद्ध नैरेटिव बनाने में उनका बड़ा योगदान था। ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस और नॉन कॉम्प्रोमाइज़िंग अटिट्यूड ने अफ़्रीक़ी अमेरिकियों के आंदोलन को सैलाब की तरह बना दिया जिसने शोषण पर लगाम लगाई और उनके उत्पीड़न के विरुद्ध मुखर प्रतिरोध जन्म लेने लगा। मैलकम एक्स ने पूंजीवादी और नस्लवादी अमेरिका के गढ़ में शोषितों और वंचितों के हित में जिस नैरेटिव को खड़ा किया, वो अभूतपूर्व है।

मशहूर बॉक्सर मुहम्मद अली के जीवन पर मैलकम एक्स का गहरा असर था।‌ मुहम्मद अली को इस्लाम क़ुबूल करने की प्रेरणा देने वाले मैलकम एक्स ही थे। स्पोर्ट्स रेज़िस्टेंस (Sports Resistance) का जनक मैलकम एक्स को कहा जा सकता है अर्थात् खिलाड़ियों द्वारा किसी बड़े मानवीय कॉज़ (Humanitarian Cause) के लिए प्रतिरोध जताना, ये काम सबसे पहले बॉक्सर मुहम्मद अली ने किया था जिन्होंने अपने कैरियर के चरम पर होने के बावजूद, मानवीय आधार पर वियतनाम युद्ध में जाने से इंकार कर दिया था। इस स्पोर्ट्स प्रतिरोध का श्रेय मैलकम एक्स को जाता है।

March 1964 – Miami: Black Muslim leader Malcolm X (2R), teasingly leaning on shoulder of tux-clad Cassius Clay (now Muhammad Ali) (L), who is sitting at soda fountain counter, surrounded by jubilant fans after he beat Sonny Liston for the heavyweight championship of the world. (Photo by Bob Gomel/Getty Images)

पश्चिम में ब्लैक पैंथर आंदोलन और सत्तर के दशक में भारत में शुरु हुआ दलित पैंथर आंदोलन मैल्कम एक्स के विचारों और उनके व्यक्तित्व से ही प्रभावित था।

मैलकम एक्स की आत्मकथा को पिछली सदी की सबसे प्रभावशाली किताबों में से एक माना जाता है। टाइम मैगज़ीन ने इसे अब तक की दस सबसे महत्वपूर्ण सच्ची घटनाओं पर आधारित किताबों की लिस्ट में शामिल किया है। मैलकम एक्स के जीवन पर 1992 में बनने वाली फ़िल्म पहली नॉन डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म है जिसे मक्का-मदीना में फ़िल्माने की इजाज़त दी गई थी, जिसमें हज के दौरान उनके प्रवास के दृश्य को फ़िल्माया गया।

मैलकम एक्स 1964 में हज यात्रा के लिए मक्का गए थे। हज यात्रा के एक साल बाद अमेरिका में एक भाषण समारोह के दौरान 21 फ़रवरी 1965 के दिन 39 साल की अल्पायु में उनकी हत्या कर दी गयी‌।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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