एलीट भारतीयों को जगाने का टूलकिट है आकार पटेल की नई किताब: दि ऐनार्किस्ट कूकबुक

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एलीट भारतीयों को जगाने का टूलकिट है आकार पटेल की नई किताब: दि ऐनार्किस्ट कूकबुक  

 बुक रिव्यू -जीशान अख्तर कासमी 

लेखक टीम गी ने कहा है: “ऐक्टिविज़म  तंत्र को लोक के काबू में रखता है!” ये हमें समझाता है की लोकतंत्र वोट देने के अधिकार से बहुत आगे की और ज्यादा कीमती चीज है। वोट देने का अधिकार तो सिर्फ इसका आधा हिस्सा है । ऐक्टिविज़म आपका अधिकार है । ये आपकी आजादी का एक हिस्सा है। ऐक्टिविज़म नागरिकों को सत्ता पर लगाम रखने की ताकत और माध्यम प्रदान करता है । 

जब आप अपने विवेक और पसंद के हिसाब से कोई भी काम करते हैं, किसी मसले पर अपनी इच्छा या अपना मत जाहिर करते हैं तो आप उस वक़्त ऐक्टिविज़म कर रहे होते हैं। इस ऐक्टिविज़म को और असरदार बनाने के लिए आपको स्पष्ट और लक्ष्य पर केंद्रित रहने की जरूरत है । (पृष्ठ 53)

आकार पटेल की नई किताब “दि ऐनार्किस्ट कूकबुक” महत्वपूर्ण घटनाओं, सरकारी आंकड़ों और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों के माध्यम से पाठकों के सामने इस बात को स्थापित करती है की कैसे हमारा लोकतंत्र बिल्कुल कमज़ोर पड़ चुका है और फिर इस बात के लिए पाठकों को तैयार करती है की उन्हें कैसे और क्यूँ इसे बचाने के लिए आगे आना चाहिए । 

आकार पटेल इस किताब की मदद से पाठकों को दुनियाभर के हालिया सफल और चर्चित नागरिक संघर्षों से परिचित करवाते हैं , विश्व प्रसिद्ध ऐक्टिविस्ट के जीवन में आए बदलाव पर बात करते हैं , कैसे इन ऐक्टिविस्ट ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया,किस तरह की तैयारी की,कैसे लोगों को संगठित किया,सत्ता पर दबाव बनाने के और जागरूकता फैलाने के लिए किस तरह के नए प्रयोग दुनियाभर में हुए और कैसे इन नए प्रयोगों का इस्तेमाल अलग अलग स्थानों पर नए रूप में किया गया ये सब बताने का एक अच्छा और ईमानदार प्रयास करते हैं । पटेल आपको एक जिम्मेदार और सजग नागरिक या यूं कहें की “एक धारदार ऐक्टिविस्ट” बनाना चाहते हैं। 

किताब को पाँच भागों में बाँटा गया है : 1.घटती आजादी 

                                        2.तैयारी कैसे करें 

                                        3.हालिया सफल जन आंदोलनों से 

                                           क्या सीखा जा सकता है 

                                        4. असैंवैधानिक कानून  

                                        5. अपनी विशेषाधिकार को पहचानो और                                   

                                           बदलाव के लिए इसका इस्तेमाल करो 

किताब की शुरुआत एक बहुत अहम सवाल से होती है : क्या आप एक (डिस)एंगेजेड नागरिक हैं ? जो की पहले चैप्टर का शीर्षक है । इस चैप्टर की शुरुआत भी एक सवाल से होती है : सत्ता से हमारा क्या संबंध है ?

फिर लेखक बिल्कुल स्पष्ट और सरल तरीके से इस किताब के लिखने का असल मकसद पाठक के सामने रख देते हैं । वो लिखते हैं की भारत की केवल तीन प्रतिशत आबादी ही आयकर चुकाने की क्षमता रखती है जिसका मतलब है की यहाँ कोई मिडिल क्लास नहीं है बल्कि मिडिल क्लास ही अपर क्लास है। और ये वर्ग अपनी पेशेवर ज़िंदगी में अंग्रेजी का इस्तेमाल करता है, जिसकी वजह से ये दुनिया के बड़े नेटवर्क से आम भारतीयों के मुकाबले ज्यादा जुड़ा हुआ है । पूरी पुस्तक में पटेल आंकड़ों के आधार पर दो तरह के भारत की मर्माहत तस्वीर पाठकों से साझा करते रहते हैं और एलीट वर्ग जो उनके अनुसार इस किताब का पाठक है उसे ये एहसास दिलाते हैं की एक अरब से ज्यादा लोगों के इस देश में अच्छी स्वास्थ व्यवस्था,अच्छी शिक्षा,अच्छा पोषण सिर्फ मुठ्ठी भर हम जैसे लोगों को ही नसीब हो पाता है और करोड़ों भारतीयों के लिए ये सब महज एक सपना है । 

इस देश की मैन्स्ट्रीम मीडिया चेहरों में उच्च वर्ग के लोगों का वर्चस्व है , न्यायपालिका में भी खास वर्ग का ही प्रतिनिधत्व झलकता है , उच्च पदों वाली सरकारी नौकरियों में भी यही हाल है । 

लेखक का मानना है की असल में भारतीय राजनीति में इसी ऐलीट  वर्ग की पूछ है इसी की मंशा और इच्छा को भांप कर ही राजनीतिक दल अपनी प्रथमिकताएं तय करते हैं। इसीलिए इस वर्ग की जिम्मेदारी है की वो अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर समाज और सत्ता के चाल और चरित्र में परिवर्तन लाने की कोशिश करें । 

पर इसमे एक बड़ी समस्या है ,वो ये की शासन के साथ इस वर्ग का सामना ना के बराबर ही होता है। 

सरकारी राशन दुकान, ब्लॉक कार्यालय,पुलिस थाना, लोकल रेल्वे, सकरकारी स्कूल ,आंगनवाड़ी जहां पर असल भारत संघर्ष करता नजर आता है वहाँ ये सम्पन्न वर्ग शायद ही कभी गया हो।  फिर ये आम भारतीय की समस्या से बिल्कुल अनजान रह जाता है । उससे भारत की असल तस्वीर छिपी रह जाती है । लेखक इस वर्ग के सामने भारत की असल तस्वीर रखने की कोशिश करता है ।    

पटेल भारत के ऐलीट(सम्पन्न) तबके से भारत के बहुसंख्यक आबादी के मुद्दों ,उनकी परेशानियों और सत्ता के साथ इस बड़ी आबादी के रोज के संघर्षों पर एक गंभीर चर्चा करते हैं और फिर ये बताने की कोशिश करते हैं की क्यूँ भारत का ऐलीट समाज अभी तक एक डिस-एंगजेड समाज है।  

एलीट समाज की जीवनशैली को रेखांकित करते हुए पटेल लिखते हैं: “हमारा जीवन शासन से मुख्यतः अछूता ही रहता है । हमारे बच्चे सरकारी स्कूलों और आगांवड़ियों में कभी नहीं गए होंगे। हमारे स्वास्थ की देखभाल दस लाख आशा बहने नहीं बल्कि निजी सेक्टर के अस्पताल और उसके डॉकटर्स करते हैं। देश की दो तिहाई आबादी (80 करोड़ लोग )जिन सरकारी राशन दुकानें से दो रुपये किलो गेंहू और तीन रुपये किलो चावल खरीद कर अपना पेट भरती है वहाँ से अपने लिए अनाज लेने की संभावना बिल्कुल न के बराबर है । हम में से कोई भी उन बीस करोड़ भारतीय में से नहीं है आज भी जो अल्पपोषित हैं। जिन आलीशान फ्लैट्स में हम बड़े शहरों में रहते हैं उनके टॉइलेट्स सरकारी सब्सिडी के पैसों से नहीं बने हैं। हम में से ज्यादातर लोग ट्रेन से सफर करना छोड़ अब प्लेन से आते जाते हैं । इस वजह से रेल सेवा के बिगड़ते हालात से कोई फर्क नहीं पड़ता ( वर्ष 2018 में एक तिहाई ट्रेनों का परिचालन समय से देर हुआ )। जब कोविड-19 की वजह से लगी पाबंदियों में ढील दी गई तो एयरलाइन्स को पूरी क्षमता के साथ के साथ अपनी उड़ानों को उड़ाने की इजाजत मिल गई परंतु 16000 ट्रेनों में से सिर्फ 300 के लग-भग ट्रेनें ही कई महीनों तक चलती रही। वैश्विक आपदा की घड़ी में भी हम- सुखी सम्पन्न लोगों पर सरकार के फैसलों का न के बराबर या बहुत कम ही असर हम पर पड़ा”।  (पृष्ठ 4)

किताब का पहला हिस्सा पाँच चैप्टर पर आधारित है , एक से चार चैप्टर तक किताब पाठक को ये समझा पाने में सफल नजर आती है की कैसे भारतीय एलीट वर्ग पाँच साल एक बार देश की राज व्यवस्था और राजनीति में खुद को एन्गेज करता है और वो है चुनावों के वक़्त। पर फिर पटेल इस प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा कर बताते हैं की क्या हम ऐलीट लोग देश की बहुसंख्यक आबादी के मुकाबले बहुत दूर से इस प्रक्रिया में खुद को शामिल करने की नाकाम कोशिश करते हैं । वो ये सवाल करते हैं की हममे से कितने लोग चुनावों के समय प्रत्याशियों से मिलकर अपनी समस्याएं उनके सामने रखते हैं ?                                                                        किताब हम ऐलीट वर्ग के नजरिए पर भी रोशनी डालती है की हम अपने देश के किन मुद्दों को जरूरी समझते है,चूंकि हम खुद को ग्लोबल मानते हैं इसीलिए हम भारत की विदेशों में छवि,राष्ट्रवाद को ज्यादा जरूरी मसला समझते हैं । हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की पक्की सीट या पड़ोसी शत्रु देशों को घुस के मारने जैसी आक्रामक नीति वाला नेता ज्यादा आकर्षित करता है । कोई नेता कितना शानदार भाषण देता है, किस नेता की आभा कितनी बड़ी है यही हमारे वोट देने के लिए प्रयाप्त आधार है । इससे ज्यादा हमें किसी और चीज से कोई मतलब नहीं होता बल्कि सरकार का परफॉरमेंस हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता है ।    

बाकी के तीन चैप्टर में पटेल बताते हैं की हमारे देश का कानूनी ढांचा आज भी अंग्रेजों के जमाने के उत्पीड़न करने वाले कानूनों से आजाद नहीं हो पाया है । वो राजद्रोह कानून की चर्चा कर बताते हैं की जिस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने और कुचलने के लिए किया था उसी का इस्तेमाल आज भी हमारी सरकारें  नागरिक सवालों को उठाने वाले कार्यकर्ताओं पर कर रही है जो मानवधिकारों का खुला उलँघन है । 

दूसरे चैप्टर में पटेल विशेषकर संविधान में दिए गए मूल अधिकारों को किस तरह नगररिकों से छीना जा रहा है उसकी समीक्षा करते हैं । और सवाल करते हैं की क्या ये अधिकार हमें आज हासिल हैं ? जवाब है नहीं !

आगे वो की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताते हैं की हमारा देश भारत एक ऐरिस्टाक्रेसी बनने की कगाड़ पर खड़ा है । 

EIU की रैंकिंग में भारत  2014 में 27 वें पायदान के मुकाबले 2020 में  51 वें पायदान टक गिर चुका है ।  इसके मानदंडों के अनुसार भारत अब एक त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र है ।     

प्रेस की आजादी के मामले में 2021 की रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में 142 वें स्थान पर है । 

2021 की ही फ्रीडम हाउस नामक संस्था की रेटिंग के अनुसार भारत अब केवल ‘थोड़ा आजाद’ है । 

किताब आगे के पन्नों में लोकतंत्र के कमज़ोर स्तंभों पर भी चर्चा करती है और बहुत ही सावधानीपूर्वक ये दर्शाती है की देश में हर कोई आज सत्ता के आगे नतमस्तक है फिर चाहे वो विधायिका, कार्यपालिका हो या न्यायपालिका। किसी भी लोकतांत्रिक देश में विपक्ष जिन स्रोतों से शक्ति और बल प्राप्त करता है उसे बिल्कुल कमज़ोर कर दिया गया है  यही कारण है की विपक्ष का असर सत्ता पक्ष पर बिल्कुल भी देखने को नहीं  मिलता । और देश के असली मुद्दे और नागरिकों की आजादी के सवाल आसानी दबा दिए जाते हैं। फिर शुरू होता इस पुस्तक का असली काम : ऐलीट को ऐक्टिविस्ट बनाने की उभारना।

ऐसे हालत में भी देश के किसानों और शाहीन बाग की महिलाओं ने देश और संविधान की सुरक्षा की है । शांतिपूर्ण विरोध के नए आयाम पैदा किए ,हजारों नौजवानों को इन संघर्षों से गुजार कर एक कुशल नागरिक और मजबूत ऐक्टिविस्ट बनाया है। 

इस किताब की एक और खास बात है इसका ड्रॉइंग आर्ट जो आपको किताब से ऊबने नहीं देता ।  लगभग सवा दो सौ पन्नों की ये किताब अपनी शैली, संवाद , संवेदना और रिपोर्टिंग स्टाइल डाटा प्रस्तुतीकरण की वजह से अपने आप में युनीक है ।  मेरा मानना है की गैर अंग्रेजी भाषी लोगों का भी एक बड़ा वर्ग है जो इस किताब के टारगेट वर्ग की तरह ही सोचता और समझता है अगर इस किताब को हिन्दी भाषा में उन लोगों को उपलब्ध कर दिया गया तो इसका लाभ जरूर होगा । साथ ही एलीट वर्ग से अलग आज का युवा जो अपने कभी ना खत्म होते सवालों से परेशान है और सत्ता से हिसाब मांगना चाहता है ये किताब ऐसे नए ऐक्टिविस्ट के लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी। 

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