पहाड़ों पर जमी बर्फ़ तप रही है
जब ठंड बढ़ती है
पहाड़ों पर बर्फ़ गिरती है,
मुसल्ले और टोपियां बर्फ़ सी
नमाज़ियों के साथ ऐंठ जाती हैं
बारूद की ख़ुशबू सूखी हवा में
हर जगह मौजूद मिलती है।
ख़ून मे दहशत ऐसी रवां
कि गोलियों की आवाज़
माँ के पेट में सुनाई देती है।
लहू बहता हुआ बर्फ़ में
बैठ जाता है, बर्फ़
धधक उठती है।
लाल लाल घाटियां खिल जाती हैं!
और आकाश मे बादलों के झुंड गीत गाते हैं -
“फ़ना की कोई दुआ आज मकबूल नहीं है”
अनसुन नारे उबल पड़ते हैं
भेड़िये हर तरफ़ इंसानी लाशों पर
विजय के नृत्य करते हैं और
बर्फ़ गिरती रहती है।
– उसामा हमीद
(लेखक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में शोधार्थी हैं।)