नफ़रत के ख़िलाफ़ हिंदू समाज को भी आना होगा मुसलमानों के साथ

हिंसा करने वाले तत्व जिस चीज़ को अपने लिए ताक़त बना रहे हैं और अपराध करके जहां जा कर छुप रहे हैं, वह धार्मिक और सामाजिक आश्रय ही है। ऐसे में उस धर्म और समाज के सम्मानित, शांतिप्रिय और सौहार्द में विश्वास रखने वाले लोगों का कर्त्तव्य है कि वे अपनी चुप्पी तोड़ते हुए धार्मिक और सामाजिक मंचों पर इस तरह की घटनाओं और इन घटनाओं को अंजाम देने वालों की न सिर्फ़ निंदा करें बल्कि जो पीड़ित हैं उन्हें न्याय दिलाने का आह्वान भी करें।

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नफ़रत के ख़िलाफ़ हिंदू समाज को भी आना होगा मुसलमानों के साथ

मुत्तलिब मिर्ज़ा

हाल ही में हुई भरतपुर के नासिर और जुनैद की नृशंस भीड़ हत्या कोई आकस्मिक हो जाने वाली घटना नहीं है। पिछले कुछ सालों में देश भर में ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई हैं।‌ इस तरह की घटनाएं न सिर्फ़ निंदनीय और शर्मनाक हैं बल्कि मानव समाज को कलंकित और आतंकित करने वाली भी हैं।‌ इन्हें सिर्फ़ एक घटना समझना मामले का अतिसरलिकरण होगा, क्योंकि इन सभी घटनाओं के पीछे कोई निजी रंजिश या दुश्मनी नहीं है, बल्कि घृणा है।‌ एक विशेष समुदाय से घृणा, विशेष धर्म से घृणा, और सोची-समझी साज़िश के साथ तैयार किया गया ऐसा माहौल है जिसने लोगों के मन व मस्तिष्क में नफ़रत का ऐसा ज़हर भरा है कि उनके लिए मानव हत्या और विशेषतः मुस्लिम समुदाय से आने वाले युवाओं की लिंचिंग या नृशंस भीड़ हत्या आसान काम हो गया है।

इन घटनाओं का एक और शर्मनाक पहलू यह है कि हत्या और लिंचिंग की कई घटनाओं के बाद हत्यारों के पक्ष में रैलियां और सभाएं भी कई जगहों पर होने लगी हैं। नासिर और जुनैद की हत्या के मुख्य आरोपी मोहित उर्फ़ मोनू मानेसर के समर्थन में भी “हिन्दू महापंचायत” हुई और पुलिस को धमकी दी गई कि हिम्मत है तो वे मोनू मानेसर को गिरफ़्तार करके दिखाएं। इसी तरह कुछ सालों पहले राजस्थान के राजसमंद में शम्भू नाम के एक व्यक्ति ने अफ़राज़ुल की हत्या की थी और वीडियो बना कर उसे वायरल किया गया था। राजसमंद के हिंदुत्व अतिवादी संगठनों ने उस वक़्त वहां रामनवमी के जुलूस में शम्भू की झांकी निकाली थी।

हाल ही में यूपी के बजरंग मुनि ने कहा कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए मुसलमानों का नरसंहार करना होगा। ऐसे बयान पहले भी दिए जाते रहे हैं। 2020 में दिल्ली में मुस्लिम विरोधी दंगों की मुख्य वजह वहां के बीजेपी सांसदों के भड़काऊ भाषण थे। यूपी, हरियाणा और अन्य राज्यों में धर्म संसद के नाम पर जो सांप्रदायिकता और आतंक का ज़हर फैलाया गया है, वह न जनता से छुपा है न सत्ता से।

ये घटनाएं बता रही हैं कि धर्मरक्षकों और गौरक्षकों के नाम पर नरभक्षकों की एक भीड़ है जो मानव समाज में दनदनाती फिर रही है और इन भक्षकों को संरक्षण सत्ता और समाज दोनों जगह से मिल रहा है। लोग कहते हैं कि मोनू मानेसर और बजरंग मुनि जैसे कुछ ही लोग हैं। सवाल ये है कि वे कैसे लोग हैं जो इन घटनाओं को आसानी से पचा कर सुकून की नींद सो जाते हैं? जिन्हें इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उनके धर्म का नाम ले कर हत्यारों और बलात्कारियों को संरक्षण दिया जा रहा है!

हमें यह बात मालूम है कि सरकार से ये उम्मीद रखना कि वह इस तरह की आतंकी घटनाओं को रोकेगी या इस तरह के बाबाओं या मुनियों पर कोई कार्रवाई करेगी, गंजों की बस्ती में कंघे बिकने की उम्मीद लगाने जैसा है। क्योंकि सत्ता के समर्थन और संरक्षण से ही नरभक्षकों की यह भीड़ तैयार हुई है। लेकिन भारतीय समाज, इस समाज में एक साथ रहने वाले हिन्दू, मुस्लिम और विभिन्न धर्मों के लोगों की यह ज़िम्मेदारी है और उन्हीं से उम्मीद भी है कि वे अपनी आत्मा को पूरी तरह मरने नहीं देंगे। अपने अंतःकरण को लकवाग्रस्त नहीं होंने देंगे। यह समय है कि वे साबित करें कि न सिर्फ़ हत्यारे बल्कि उनका समर्थन करने वाले भी देश, धर्म, समाज और मानवता के लिए नासूर हैं।

देश में उत्पन्न हुई इन परिस्तिथियों में सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यहां के बहुसंख्यक समाज की ही है। हिंसा करने वाले तत्व जिस चीज़ को अपने लिए ताक़त बना रहे हैं और अपराध करके जहां जा कर छुप रहे हैं, वह धार्मिक और सामाजिक आश्रय ही है। धर्म और समाज को नफ़रत के बाज़ार को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में उस धर्म और समाज के सम्मानित, शांतिप्रिय और सौहार्द में विश्वास रखने वाले लोगों का कर्त्तव्य है कि वे अपनी चुप्पी तोड़ते हुए धार्मिक और सामाजिक मंचों पर इस तरह की घटनाओं और इन घटनाओं को अंजाम देने वालों की न सिर्फ़ निंदा करें बल्कि जो पीड़ित हैं उन्हें न्याय दिलाने का आह्वान करें।

साथ ही, मुस्लिम समुदाय के लोगों का तो यह कर्त्तव्य है ही कि वे न्याय और शांति की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के सिपाही हों।, लेकिन यह लड़ाई सफल हो, इसके लिए हिन्दू समुदाय का भी न्याय के लिए उठना‌ और संघर्ष करना आवश्यक है। हर बड़े शहर, क़स्बों और छोटे-छोटे गांवों तक यह संदेश पहुंचाने की ज़रूरत है कि साम्प्रदायिक वैमनस्य देश के लिए, देश के विकास के लिए और यहां रहने वाले इंसानों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। उन असामजिक संगठनों का परिचय करवाना भी आवश्यक है जो देश को नफ़रत की आग में झोंक रहे हैं और सामाजिक अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं । इसके लिए ज़रूरी है कि समाज में रहने वाले लोगों के बीच से अजनबियत की दीवार हटाई जाए। एक दूसरे के प्रति दिलों में जो डर मौजूद है उसे ख़त्म किया जाए।‌ सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा जो अफ़वाहें फैलाई जाती हैं उन्हें समझने की प्रक्रिया समझाई जाए।‌ धार्मिक सौहार्द की बैठकों के लिए धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया जाए।‌ हिन्दू, मस्जिदों का भ्रमण करें और देखें कि मस्जिद हिंदुओं को मारने के लिए हथियार रखने की जगह नहीं है बल्कि एक पवित्र जगह है जहां ईश्वर की उपासना होती है। विभिन्न त्योहारों, उत्सवों और धार्मिक आयोजनों को एक दूसरे के निकट आने का माध्यम बनाया जाए, न कि इन्हीं के नाम पर एक दूसरे के गिरेबान चाक किए जाएं, तभी हम इस बढ़ती हुई नफ़रत की आंधी को रोक पाने में सफल हो सकेंगे।

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