रेप क्राइम, स्त्री विमर्श और फांसी- आखिर हल क्या है?

बड़ी-बड़ी एन जी ओ के जरिए स्त्री विमर्ष विषय पर चर्चाएं कराई जाती हैं। रोज़ नए उपायों पर गौर किया जाता है। ढ़ेरों योजनाएं बनाई और चलाई जाती हैं। अबतक कई सरकारी कमिटियां समाजिक संस्थाएं एन जी ओ बनाई गई हैं। इनकी मान मर्यादा को बहाल करने के लिए कई आंदोलन चलाए जाते हैं। आखिर इतना सबकुछ करने से हासिल किया हुआ?

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देर है अंधेर नहीं ये कहावत तो आपने सुनी होंगी आख़िरकार 7 साल की लंबी न्यायिक प्रकृया के बाद 20 मार्च 2020 सुबह 5 : 30am निर्भया के चार दोषियों को फांसी हो ही गयी।

16 दिसम्बर 2012 की वो भयानक रात शायद ही कोई भूल पाये जब निर्भया रेप केस सुन देश दहल गया था, बेटी बहनों की सुरक्षा व जागरूकता हेतु समस्त भारतवर्ष सड़को पर उतरा था। यह हकीकत है निर्भया की जिसने अपनी आखरी सांस तक देश की हर एक लड़की को अपने लिए लड़ना सिखाया था। यह सच्चाई है उस निर्भया की जिसके साथ रेप कर दोषियों ने दरिंदगी की सभी सीमाएं लांघ दी थी, ऐसी हालत में उसने कहा था “माँ मैं जीना चाहती हूँ” जब तकलीफ बढ़ने लगी तो उसने अपने डॉक्टर से कहा “मैं अब आँखे बंद करना चाहती हूँ” वो कहती थी “मुझे सोने मत दो, मुझे ऐसा लगता है जैसे वो दरिंदे मुझ पर हमला कर रहे है… मैं नहाना चाहती हूँ मुझे खुद में से उन दरिंदो की बदबू आती है… माँ खिड़की दरवाज़ों के ये शीशे तोड़ दो मैं खुद को नही देख सकती” और फिर आख़िरकार इंसाफ की इस लड़ाई में जद्दोजहद करती निर्भया ने अपने माँ से आखिरी बार ये कहते हुये “माँ इन दरिंदों को छोड़ना मत और मुझे इंसाफ दिलाना” कहकर हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गई।

दोषियों ने पाई सज़ा निर्भया को मिला इंसाफ के बाद निर्भया के पिता ने कहा कि “आज न्याय का दिन है, महिलाओं के लिये सुरक्षा का दिन है, अब सरकार भी जग चुकी है, केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली है, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा के लिये एक गाइडलाइन बनाई जाने की कोशिश की जाएगी। इस याचिका की सुनवाई 23 मार्च को होनी है”।

14 अगस्त, 2004 और 20 मार्च 2020 के बीच गुजरे 15 साल

यही वो तारीख है जब किसी रेपिस्ट को आखिरी बार फांसी की सजा दी गई थी। नाबालिग छात्रा का रेप कर उसकी हत्या करने के जुर्म में धनंजय चटर्जी को फांसी दी गई थी। उन्हें 14 वर्षीय किशोरी हेतल पारिख के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करने के आरोप में फांसी की सजा दी गयी थी। ये वो वक़्त था जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री और एपीजे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति थे। धनंजय को कोलकाता के अलीपुर जेल में फांसी दी गई थी। लगभग 14 साल की लंबी न्यायिक प्रकृया के बाद हेतल पारिख के मामले में धनंजय चटर्जी को फांसी दी गई थी। इस बात को 15 साल हो गए हैं। तब से लेकर आज तक देश में 4 लाख से अधिक रेप हो गए हैं, लेकिन लगता है कि कुछ बदला नहीं है और इन 15 साल में किसी दूसरे रेपिस्ट को फांसी नहीं हुई है।

आखिर ऐसा क्यों?

दुनिया भर की औरतों के मुद्दे विशेष पर आधारित ‘द वार-द वीमेन-देयर वॉडिज’ शीर्षक वाली इस पुस्तक को विश्व के चार महादेशों की 12 महिलाओं ने मिल कर लिखा है। अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और यूरोप के अलग-अलग देशों में किस तरह महिलाएं प्रताड़ना की शिकार हैं, इसकी जानकारी इस पुस्तक में दी गयी है। इस पुस्तक की लॉचिंग पांच मई 2019 को हुई है। रोजिना खानम ने बताया कि इस पुस्तक में हर देश में महिलाओं के साथ होने वाली प्रताड़ना के बारे में जानकारी है। पहली बार विश्व स्तर पर महिलाओं की स्थिति के बारे में लोग जान पायेंगे। अलग-अलग देशों की लेखिकाओं में पटना की रोजिना इस पुस्तक की लेखिकाओं में एशिया महादेश की ओर से शामिल हैं। रोजिना खानम ने खास तौर पर बिहार में महिलाओं की दशा को इसमें उजागर किया है। बिहार में महिलाएं अपने इंपावरमेंट के लिए किस प्रकार संघर्ष कर रही हैं, इसकी पूरी जानकारी दी गयी है। रोजिना खानम ने प्रेस से सम्बोधित करते हुए कहा कि यूरोप की बात करें या अमेरिका की, हर देश में महिलाओं की स्थिति एक जैसी है। आगे उन्होंने कहा कि हां, यह जरूर है कि हर देश में वहां के रहन-सहन के अनुसार महिलाएं प्रताड़ना की शिकार हो रही हैं।

बहरहाल इस रिसर्च किताब में आने से एक बात तो स्पस्ट है इस किताब को लिखने वाली महिलाओं में एक इस बात को मान रही हैं कि यूरोपीय देशों में भी महिलाओं की स्थिति एशियन देशों से बहुत अच्छी नहीं है।

अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर स्टीवन पिंकर हिंसा और शांति जैसे संवेदनशील विषयों पर काम करने वाले विलक्षण विद्वान हैं।

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक-

भारतीय पत्रकार सृजन मित्रा दास ने उनसे दिल्ली गैंग रेप और न्यूटाउन शूटिंग कांड के मौके पर महिलाओं के प्रति हो रहे घरेलू और यौन उत्पीड़न सम्बंधित घटनाओं पर कई प्रश्न पूछते हैं। अपनी किताब ‘द बेटर एंगल्स ऑफ अवर नेचर’ का हवाला देते हुए कहते हैं कि मनुष्य की पांच मनोवैज्ञानिक अवस्थाएं हैं । ये अवस्थाएं ही किसी इंसान को हिंसक काम करने की तरफ धकेलती हैं। मनोवैज्ञानिक अवस्था के अलावा इस तरह की घटनाओं के बढ़ने के दो कारण सुझाते हैं। पहला ये कि इस तरह की विकृत घटनाएं ऐसे समाज में ज्यादा घटती हैं जहां कन्या भ्रूण हत्या का प्रचलन हो, दूसरा ज्यादातर गरीब और हाशिये पर रहने वाले लोग ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं।

दुनिया के प्रगतिशील और विकसित देशों में रेप क्राइम-

ये भी देखा गया है कि इस तरह की घटनाएं अमेरिका जैसे प्रगतिशील देशों में भी खुलेआम घटती हैं। विकासशील देशों की तुलना में ये दर बहुत कम नहीं है।

खैर ये तो उन देशों का हाल है। जहाँ के लोग दुनियां भर में पढ़े लिखे बुद्धिमान और श्रेष्ठ माने जाते हैं। इनके लीविंग स्टेंडर्ड को पूरी दुनिया के लोग कॉपी कर आदर्श मॉडल के तौर पर पेश भी करते हैं। इन देशों के हालात को देखकर आप खुद से भी सवाल क्रिएट करें। इस पर बहुत रिपोर्ट्स और डाटा गूगल पर मौजूद हैं। वहाँ की कई जर्नल्स ने इन रिपोर्ट को कवर किया है।

कुछ प्रश्न हैं-

क्या उन देशों में खास कर योरप के देशों में औरतों की समस्याएं खत्म हो गई या इन मुल्कों में नई और उससे भी गम्भीर समस्याओं को जन्म दे दिया? भारत में योरोपीय कल्चर को थोपने से पहले वहाँ की आजाद औरतों की कहानियों का अब तक ठोस विश्लेषण किया गया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम आजादी की वैश्विक आंधी के तूफ़ान में बहे जा रहे हैं? क्या 50 प्रतिशत आरक्षण सरकारी या गैरसरकारी तौर पर दे देना इसका सबसे बड़ा हल है? ये कुछ ऐसे सवाल है जिसपर पलटना हम मुनासिब नहीं समझते। क्योंकि अगर पलट गए तो स्त्री विमर्श के सारे मुद्दे ही खत्म हो जाएंगे।

फेमिनिस्ट आंदोलन और स्त्री विमर्श-

फिर फेमिनिस्ट आंदोलन का क्या होगा। जिनके उठाए गए मुद्दों पर सरकारें बनती और बिगड़ती है। इन मुद्दों पर वर्तमान सरकार अरबों की योजनाएं बनाती हैं।

बड़ी-बड़ी एन जी ओ के जरिए स्त्री विमर्ष विषय पर चर्चाएं कराई जाती हैं। रोज़ नए उपायों पर गौर किया जाता है। ढ़ेरों योजनाएं बनाई और चलाई जाती हैं। अबतक कई सरकारी कमिटियां समाजिक संस्थाएं एन जी ओ बनाई गई हैं। इनकी मान मर्यादा को बहाल करने के लिए कई आंदोलन चलाए जाते हैं। आखिर इतना सबकुछ करने से हासिल किया हुआ? निर्भया कांड के बाद ऐसा लगा कि लैंगिक लूटखसोट के दंगे पर काबू पा लिया जाएगा। सरकार ने कड़े फ़ैसला लिए। इन दंगो के खिलाफ कड़े कानून बनाए गए। लेकिन रिजल्ट लाहसिल रहा। एक के बाद एक घटनाओं ने भारतीय जनमानस को झिंझोड़ता रहा। हालात इतने बद से बदतर हो गए कि रेपिस्ट के धर्म और जाति को भी घसीटना शुरू किया। हिंदुत्ववादी वादी तंजीमें रेपिस्टों के समर्थन में जुलूस निकाले। सोशल मीडिया पर रेपिस्टों के बचाव में कैम्पेन चलाया।

मैं उन एनजीओ के बारे में बात कर रहा हूँ जिन्हें खुद महिलाओं ने चलाया है। अपनी तरक्की और विकास के नाम पर। क्या ऐसा करने के बाद भी महिलाएं सशक्त हो पाई? कहीं ऐसा तो नहीं कि महिलाएं तरक्की और प्रगतिशीलता के नाम पर अपनी ही एनजीओ द्वारा प्रताड़ित हो रही हैं?

आपको शायद पता हो छोड़िए इनको मुजफ्फरपुर में समाज कल्याण विभाग द्वारा समाज कल्याण मंत्री के पति महोदय के निगरानी में चलने वाला नारी निकेतन केंद्र की हालत की किसको खबर नहीं है। इसके अलावा आशा किरण शेल्टर होम की है। इस शेल्टर से 4 महिलाएं संदिग्ध परिस्थियों में लापता हो गई थीं। इसी शेल्टर होम से अगस्त 2019 विषम परिस्थितियों में 2 महिलाओं की मौत हुई थी। जबकी कई गम्भीर बीमारी के हालात में बिना मेडिकल ट्रीटमेंट में पकड़ी गई। सूत्रों के मुताबिक वो एक भोजपुरी फिल्म की अभिनेत्री थी जिनके संचालन में इस नारी निकेतन का मामला चल रहा था। इस नारी निकेतन के संरक्षक के तौर पर बड़े नेता जी भी थे लेकिन नेतृत्व का कमान महिला अभिनेत्री के हाथों थी।

देश का बौद्धिक वर्ग और स्त्री विमर्श-

इन सबसे आगे बढिए एक बड़ी जिम्मेदारी देश के बौद्धिक वर्गों ने अपने कंधों पर लिया। यह आम लोगों के मनोविज्ञान को समझकर उसकी मानसिकता को बदलने का था। इनकी कोशिशों से बौद्धिक वर्ग को जागरूक करने के लिए नॉवेल, कहानी कविताओं को जन्म दिया गया। फ़िल्म डेकोमेंट्री का निर्माण हुआ। विनोद दुआ(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार), एम जे अकबर(राज्यसभा सांसद), तरुण तेजपाल(तहलका हिन्दी के पूर्व संपादक),  नाना पाटेकर(बालीवूड अभिनेता),  नागा अर्जुन(देश के जाने-माने कवि व साहित्यकार), चिन्मयानंद(पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री), कुलदीप सिंह सेंगर(बीजेपी विधायक) आदि ने अपने राजनीतिक एवं सामाजिक प्रवचनों के दौरान स्त्री विमर्श पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से लंबे भाषण सुने होंगे।

देश की लोकसभा और विधानसभा में बैठे 30 फीसदी नेताओं का आपराधिक रिकार्ड है, जिनमें ज़्यादातर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध किए जाने के मामले दर्ज हैं। कुछ नेता तो ऐसे हैं जिनपर सीधे रेप के ही मामले चल रहे हैं। जैसे और भी कई बड़े नामचीन वॉलीवुड हस्तियां लेखक पत्रकार नोविलिस्ट हस्तीयां हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने टीवी स्टूडियो में बैठ कर औरतों के मसले पर लुभावने लेक्चर दिए हैं। बल्कि ये साहब स्त्री को औरत ही नहीं मानते हैं। ये गणमान्य लोग तो मर्द औरत की बराबरी पर बात रखते हैं और ये मानते हैं कि सिर्फ शारिरिक बनावट की भिन्नता के आधार पर लैंगिक भेद नहीं कर सकते हैं।  लेकिन क्या इनके खुद के हुदूद में काम करने वाली महिलाएं सुरक्षित रही हैं? क्या आज भी इनके बड़े बड़े कारपोरेट दफ्तरों में महिलाओं के साथ कॉस्टल काउच के तरह इस्तेमाल नहीं किया जाता है? इन मनोवैज्ञानिकों कामकाज का पड़ताल करने से तो ऐसा ही लगता है कि इनके लिए भी ये मुद्दे बौद्धिक लूट खसोट के अलावा कुछ नयापन नहीं है। चूंकि बाजारवादी विकास की राजनीति ने औरतों को आर्थिक रूप में सशक्त तो बनाया लेकिन समाजिक तौर पर वहां भी सेक्स ट्यूब से ज़्यादा कुछ नहीं समझा गया है।

ये कुछ सवाल हैं जिसपर गौर किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। हमसभी मिलकर इस वैश्विक मसले पर स्त्री को स्त्री ही मानकर स्त्री विमर्श करें। ताकि उनके मसले को उनके जरिए ही हल किया जा सके।

 

शाहिद सुमन

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