• हिजाब की तरफ से एक खुला खत उन सभी लोगों के नाम जो इसके समर्थक या विरोधी हैं या इस सम्बन्ध में उदासीन अवस्था में रहते हैं।

अभी अभी मालूम हुआ कि आज मेरा दिन है। इसलिए मुझे और मेरे समर्थकों को ये दिन बहोत बहोत मुबारक। आप सब ये सोच रहे होगे कि ये खत लिखने की आज क्या ज़रूरत आ गयी, लेकिन कुछ शिकवे शिकायतें और तारीफें ऐसी हैं जो मैं कई दिन से सबके सामने रखना चाहता था उम्मीद हैं आप सब बेकार में अपनी भावनाएं आहत न करते हुए कुशादाज़र्फ़ी का मुज़ाहिरा करेंगे।

मैं हिजाब विरोधियों से शुरू करूंगा जिनके विरोध और नफरतों के कारण ही पहली फरवरी का ये दिन मेरे नाम पर मनाया जा रहा है। मैं आपकी नफरतों को दरकिनार करते हुए हुए कहना चाहता हूँ कि जब जब आप लोगों द्वारा मेरा मख़ौल उड़ाया गया, जब जब शोषण के प्रतीक के रूप में मीडिया, टीवी या दुसरे जनसंचार माध्यमों का इस्तेमाल करते हुए आप लोंगो ने झूठ फैलाया तब तब ये दुनिया मेरे बारे में जानने को विवश हुए,मेरे नाम पर विमर्श हुआ। टीवी और पूंजीवाद की देन आपकी आधुनिकता, आप लोगो को ऐसा रोशन ख्याल दिलो दिमाग देने में नाकाम है, जिससे कि आप शालीन पोशाक पर सोचते हुए हिजाब पर विमर्श कर सके. शायद मुझे लेकर आपके ये पूर्वाग्रह मेरे एक विशेष धर्म से जुड़े होने के कारण हैं। या फिर आपके ज़हन आउट ऑफ द बॉक्स सोचने में नाकाम हैं।

अब मैं अगर अपने समर्थकों की बात करूं तो कई बार मेरे समर्थक भक्ति की पराकष्ठा पर पहुंच कर इति कर देते हैं। मेरा प्रचार करने के लिए एक औरत की अस्मिता को आप कई बार चोट पहुंचाते हैं। एक औरत की तुलना बिना छिलके के केले, खुली आइसक्रीम, बिना रैपर वाली चॉकलेट जिस पर मक्खियां लगी हैं आदि के साथ करते वक़्त भूल जाते हैं कि औरत कोई बिकने वाला सामान नहीं जो उसकी तुलना इन छोटी चीज़ों से की जाए। दूसरी तरफ कई बार आप भी हिजाब की अवधारणा पर बात करते वक़्त कई शालीन पहनावों का मज़ाक उड़ाते और फतवा देते नज़र आते हैं।
उम्मीद है कि आगे से मुझे लेकर आप सभी रोशन ख्याली का परिचय देंगे।

रचना : हुमा अहमद

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