मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी की मृत्यु: इस्लामी जगत के लिए एक बड़ी क्षति

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Sayed Jalaluddin Umri

मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी का उल्लेख इस्लामी दुनिया में उन प्रमुख विद्वानों में होता है जिन्होंने विभिन्न पहलुओं से इस्लाम की महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान की है। और इस्लाम की समझ एवं व्याख्या के लिए मूल्यवान साहित्य तैयार किया है। इस्लाम की दावत ,अक़ाएद, व्यवहार और राजनीति पर आप की साहित्यिक रचना एक उपाधि की हैसियत रखती है।

मौलाना ने दक्षिण भारत के प्रख्यात इस्लामिक दर्स गाह जामिया दारुस्सलाम उमराबाद से 1954 में फजीलत की डिग्री प्राप्त की, मद्रास विश्वविद्यालय से फारसी में मुंशी फाजिल और अलीगढ़ विश्वविद्यालय से बी o ए o पास किया। जामिया उमराबाद से उत्तीर्ण होने के बाद आप फौरन मरकज़ जमात ए इस्लामी हिंद रामपुर आ गए। आपने वहां के विद्वानों से स्वतंत्र रूप से लाभान्वित हुए। फिर 1956 में जमात के लेखन विभाग से जुड़ गए। यह विभाग 1970 में रामपुर से अलीगढ़ हस्तांतरित हो गया और एक दशक के बाद उसे एक स्वतंत्र सोसाइटी “इदारा तहक़ीक़ व तस्नीफ़” के रूप में गठित कर दिया गया। मौलाना उसके शुरुआत से 2001 ईस्वी तक सचिव रहे, उसके बाद वर्तमान तक अध्यक्ष थे।आप त्रैमासिक पत्रिका तहकीकात इस्लामी के संस्थापक संपादक भी रहे।यह पत्रिका अपने जीवन का 40 वर्ष पूर्ण कर चुका है। इस अंतराल में आपने 5 वर्ष (1986 से 1990) जमात इस्लामी हिंद की मासिक पत्रिका जिंदगी नौ दिल्ली के संपादक के कार्य को भी संभाला।

मौलाना उमरी देश की विधिक धार्मिक,मिल्ली, दावती और तहरीकी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं। मौलाना लंबे समय तक जमात इस्लामी हिंद के प्रवक्ता समिति एवं सलाहकार समिति के सम्मानित सदस्य रहे हैं। आप 1990 से मार्च 2007 तक जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष रहे ,उसके बाद मार्च 2019 तक अध्यक्ष रहे। वर्तमान कार्यकाल में वह जमात के शरिया काउंसिल के चेयरमैन थे। भारत में मुसलमानों के व्यक्तिगत कानून के संरक्षण एवं बचाव के लिए सक्रिय ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के उपाध्यक्ष, उत्तर भारत के मशहूर धार्मिक दर्स गाह जामिया-तुल-फ़लाह के कुलपति और सिराजुल उलूम निस्वान कॉलेज अलीगढ़ के सरपरस्त आला रहे। इसके अतिरिक्त विभिन्न शिक्षण संस्थाओं से भी आपका संबंध रहा है।

मौलाना उमरी को छात्र जीवन से ही लेख लिखने में दिलचस्पी रही आपका स्वभाव अनुसंधानात्मक रहा है। विभिन्न विषय पर आप के लगभग चार दर्जन किताबें हैं। उनमें तजल्लीयात कुरान, औराक़-ए-सीरत, मारूफ-व-मुनकर, ग़ैर मुस्लिमों से ताल्लुक़ात और उनके हुक़ुक़, खुदा और रसूल का तसव्वुर इस्लामी तालीमात में, अहकाम हिज़रत व जिहाद, इंसान और उसके मसाएल, सेहत व मर्ज़ और इस्लामी तालीमात, इस्लाम और मुश्किलात हयात, इस्लाम की दावत,इस्लाम का शुराई निज़ाम, इस्लाम में खिदमते ख़ल्क़ का तसव्वुर, इन्फाक़ फी सबिलिल्लाह, इस्लाम इंसानी हुक़ुक़ का पासबाँ, कमज़ोर और मज़लूम इस्लाम के साये में, ग़ैर इस्लामी रियासत और मुसलमान, तहक़ीक़ाते इस्लामी के फिक़ही मबाहिस जैसी महत्वपूर्ण किताबें हैं। इस्लाम की सामाजिक व्यवस्था मौलाना की दिलचस्पी का अहम विषय रहा है।औरत इस्लामी मुआशरे में, मुसलमान औरत के हुक़ुक़ और उनपर एतेरेज़ात का जायज़ा, औरत और इस्लाम, मुसलमान ख़्वातीन की जिम्मेदारियां और इस्लाम का ऑइली निज़ाम जैसी रचना इसका बेहरीन प्रमाण देती है। आप की विभिन्न पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में है। इसके इलावा विभिन्न बौद्धिक व विचारात्मक विषय पर लेख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

मौलान के विभिन्न रचनाओं का अनुवाद अरबी, अंग्रेजी, तुर्की, हिंदी, मलयालम, कन्नड़, तेलगु, मराठी, गुजराती, बंगला और तमिल भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

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