राष्ट्रीय शिक्षा नीति संवैधानिक, विकेंद्रीकृत एवं ग़ैर व्यापारिक होनी चाहिए

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वर्तमान समय में भारतीय शिक्षा प्रणाली असमानता, गुणवत्ता व निम्न स्तर एवं लुप्त हो रहे मानवीय मूल्य जैसी समस्याओं से जूझ रही है, जिस कारण समाज की शांति एवं मानवीय मूल्य प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक है एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था स्थापित हो जो संवैधानिक मूल्यों को बरक़रार रखने में सहायक बने तथा ऐसी शिक्षा का प्रसार हो जिससे सामाजिक असमानता दूर हो एवं शिक्षा सुलभ और आसान हो जिससे समाज का हर बच्चा आसानी से शिक्षा हासिल कर सके। हमें एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की ज़रुरत है जो गहन विमर्श एवं शोध को बढ़ावा दे, जो मानव जीवन को विकसित करने एवं मानवीय मूल्यों को बरक़रार रखने हेतु परिचर्चा एवं मंथन को प्रोत्साहित करे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2019 एक अस्पष्ट एवं विरोधाभासी नीति है, जो संवैधानिक मूल्यों को खंडित करते हुए शिक्षा के व्यवसायीकरण को बढ़ावा देती है। जिसका बहिष्कार होना चाहिए और इस पर पुनः विश्लेषण होना चाहिए। इसी उद्देश्य के लिए स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गनाइज़ेशन (एसआईओ) एवं सेण्टर फ़ॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (सीईआरटी) ने मिलकर “राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2019, विश्लेषण एवं सिफ़ारिशें” विषय पर एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विश्लेषण किया गया है तथा कुछ महत्वपूर्ण विषयों सबंधित सिफ़ारिशें की गयी हैं।

केंद्रीयकरण – संवैधानिक मूल्यों का उल्घंन्न :

१. राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2019 में वैदिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने की बात की गयी है जिसकी प्राचीन काल में सीमित लोगों तक ही पहुंच थी और जो जातिवादी व्यवस्था में लिप्त थी। जबकि ऐसी शिक्षा नीति होनी चाहिए जो कि गौरवशाली भारतीय संस्कृति का बचाव कर सके और शिक्षा की पहुंच एक समान रुप से सभी वर्गों तक हो सके। यदि नीति भारतीय ज्ञान प्रणाली को प्रोत्साहित करने का इरादा रखती है तो उसे देश की विविध संस्कृति, परंपराओं, धर्मों एवं समुदायों को अपनी ज्ञानात्मक प्रणाली में शामिल करना चाहिए।

२. शिक्षा का अधिकार अधिनियम पूर्ण रुप से लागू होना चाहिए।

३. इस शिक्षा नीति के मसौदे में संस्कृत एवं हिंदी भाषा का समर्थन किया गया है और इसे सभी नागरिकों पर थोपने का प्रयास किया गया है जो कि संविधान का सरासर उलंघन्न है। संविधान के अनुच्छेद 29(1), 350ए एवं 350बी के अनुसार दो भाषा सूत्र दिया गया है जिसमें एक मातृ भाषा एवं अंग्रेंज़ी है, उसके अलावा एक वैकल्पिक भाषा का प्रावधान है जो कि छात्र अपने अनुसार चुन सकें। धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व की भाषाओं को पढ़ाने के लिए संस्थानों हेतु यह अनिवार्य है कि अगर पांच छात्र एक भाषा को पढ़ने वाले हैं तो वह उस भाषा के पढ़ने के लिए उचित व्यवस्था करें।

४. प्रस्तावित केंद्रीयकृत निकाय जैसे RSA, NTA, NRF आदि, भारतीय संघ के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है। ऐसे केंद्रीय निकाय जब एक आदेश पर अनिवार्य रूप से कार्य करेंगे तो वे राजनीतिक पार्टियों के लाभ का शिकार बनकर रह जाएंगे।

५. एक ऐसे मसौदे की आवश्यकता है जो एक विकसित गाइडलाइन बनाए ताकि आकंड़ो से संबधित कोई ग़लत इस्तेमाल न हो सके। इस ड्रॉफ्ट में गोपनीयता के मुद्दों या डेटा हैंडलिंग एवं सुरक्षा से जुड़े कानूनों और मानकों की स्पष्टता का अभाव है जिसके लिए आवश्यक है कि एक व्यापक डेटा संकलन से पहले ठोस गाइडलाइंस होनी चाहिएं। इस शिक्षा नीति के अनुसार URG छात्रों पर राज्यों द्वारा नज़र रखी जाएगी जबकि यह निजता के अधिकार का हनन है। इसलिए ऐसा कोई भी नियम नहीं लागू होना चाहिए। मूल्यांकन के लिए संस्थानों द्वारा पैरामीटर निर्धारित किये जाने चाहिए और किसी भी छात्र का विशेष डेटा या सूचना एकत्रित करने का अधिकार संस्थानों पर नहीं होना चाहिए और न ही उनकी सूचनाएं लीक होनी चाहिए।

व्यवसायीकरण :

१. इस मसौदे में गहन रुप से व्यवसायीकरण को प्रोत्साहित करने की बात की गयी है, जो कि शिक्षा के क्षेत्र में बाज़ार मॉडल लागू करने का प्रयास है। शिक्षा के व्यवसायीकरण के साथ ही भ्रष्टाचार भी बढ़ने लगेगा और इस प्रकार शिक्षा आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाएगी। पहले से ही निजी स्कूल तमाम तरह की सुविधाओं के रूप में अभिभावकों से एक मोटी रकम वसूल करते हैं। यदि बाज़ारवाद हावी हो गया तो इस प्रकार के शोषण और बढ़ जाएगा।

२. यह ड्रॉफ्ट शिक्षा की समानता के नाम पर धोखा देता है, विशेष रुप से उच्च शिक्षा के संबध में। शिक्षा के क्षेत्र में भारत में वैसे भी असमानता से इतिहास भरा पड़ा है। सभी सुविधाओं के साथ शिक्षा की पहुंच हर वर्ग तक हो और बढ़ती असमानता को दूर होना चाहिए तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित होनी चाहिए। समाजिक न्याय एवं संवाद, चर्चा-परिचर्चा का स्वस्थ्य माहौल होना चाहिए।

३. यह नीति अध्यापक एवं अन्य सहायक स्टाफ़ को लेकर ख़ामोश है। इनके लिए कोई चर्चा नहीं की गयी। बहुत से टीचर और स्टॉफ ऐसे हैं जिनका शोषण किया जाता है, सरकारी अध्यापकों से अन्य काम लिए जाते हैं। जबकि अध्यापक एवं सहायक अध्यापक से लेकर शिक्षा क्षेत्र में लगे प्रत्येक व्यक्ति के साथ लोकतांत्रिक व्यवहार होना चाहिए और उनका शोषण बंद होना चाहिए।

सुलभता एवं समानता :

१. बच्चों के मुद्दों को लेकर यह नीति निराश करती है, देश में हो रहे बच्चों के साथ शोषण, बाल तस्करी, बाल श्रम जैसे गंभीर मुद्दों को इस मसौदे में नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। इसके अलावा शरणार्थी बच्चे, ऐसे बच्चे जो अपनी क़ैदी मांओं के साथ जेल में जीवन गुज़ारने को मजबूर हैं उन सबकी शिक्षा और भविष्य को लेकर इस नीति ने मौन धारण कर लिया है। जबकि सभी बच्चों को एकसमान शिक्षा प्राप्त होनी चाहिए।

२. अल्पसंख्यक छात्रों को उनकी क्षमता और आवश्यकता के अनुसार छात्रवृत्ति प्रदान की जानी चाहिए। बढ़ती हुई मुद्रास्फीति के युग में सरकार को छात्रवृत्ति बजट में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए तथा छात्रवृति के आवेदन और उसको हासिल करने की जटिल प्रक्रिया को सुलभ बनाना चाहिए।

३. सीबीएसई-यूजीसी नेट के लिए नये अधिनियम की आवश्यकता है। मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप जो अल्पसंख्यकों के लिए है और राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप जो एससी-एसटी वर्ग के विद्यार्थियों के लिए है, की पहुंच में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोगों को लाभ मिल सके।

४. नेशनल कमीशन फॉर मॉइनारिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, पार्लियामेंट एक्ट के अनुसार एक वैधानिक संस्था है जिसे मज़बूत होना चाहिए तथा समानता के साथ इसकी पहुंच अन्य लोगों तक होना चाहिए। इसके अधीन मदरसा बोर्ड संचालित होते हैं जिन्हें राज्य स्तर पर शक्तिशाली होना चाहिए तथा उन्हें केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा सभी प्रकार की सहायता उपलब्ध की जानी चाहिए। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मदरसा छात्रों की पहुंच बढ़ाने के लिए ऐसे कोर्स डिज़ाइन किये जाएं जिससे वे आसानी से शिक्षा हासिल कर सकें। सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में अरबी एवं इस्लामिक स्टडीज़ कोर्स कॉमन रुप से संचालित किये जाने चाहिए।

५. यह शिक्षा नीति का मसौदा संशोधित होना चाहिए और शिक्षा में आरक्षण को लेकर रुख़ स्पष्ट किया जाना चाहिए। आरक्षण को निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी विस्तारित किया जाना चाहिए। इसके अलावा 10 प्रतिशत मुस्लिम और 5 प्रतिशत दूसरे अल्पसंख्यकों के लिए सभी संस्थानों में सीटें आरक्षित होनी चाहिएं। आरक्षण का विस्तार आईआईटी और आईआईएम समेत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में एक समान रूप से होना चाहिए।

६. जब यह मसौदा नैतिक शिक्षा और स्कूल परिसरों एवं सभी शैक्षिक संस्थानों के संवेंदीकरण की बात करता है तो यह देश भर के पाठ्यक्रम में घृणा और पूर्वाग्रही सामग्री के आवर्ती पैटर्न को सीधे इंगित करने में विफल साबित होता है। इसलिए आवश्यक है कि व्यापक तौर पर एक निष्पक्ष प्रतिनिधित्व द्वारा प्रभावशाली पाठ्यक्रम तैयार किया जाए और जाति, धर्म एवं विभाजनकारी टिप्पणियों को पाठ्य-पुस्तकों में स्थान न मिले। यह ख़तरनाक है जिसे तुरंत और निर्णायक रूप से निपटाया जाना चाहिए। इतिहास से बार-बार छेड़छाड़ के कारण समाज में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण सभी पाठ्यक्रम एवं पाठ्यसामग्री का निर्माण बहुत ही ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए।

७. रोहित अधिनियम के नाम से, संसद द्वारा एक क़ानून बनाया जाना चाहिए जो शिक्षण संस्थानों में व्यवस्थित और संस्थागत भेदभाव को रोकने का काम करे और अल्पसंख्यकों एवं दूसरे समुदायों के छात्रों के साथ हो रहे शोषण पर लगाम कसने का कार्य करे जिससे अल्पसंख्यकों एवं एससी-एसटी वर्ग के साथ हो रही हिंसा को संज्ञेय अपराध का दर्जा मिले।

निम्नलिखित गणमान्य व्यक्तियों द्वारा यह प्रेस रिलीज़ एवं रिपोर्ट तैयार की गयी –

• मुहम्मद बशीर, पूर्व शिक्षा मंत्री, केरला सरकार
• सैय्यद अज़हरुद्दीन, राष्ट्रीय सचिव, एसआईओ ऑफ इंडिया
• प्रोफेसर मधु प्रसाद, आरटीई कार्यकर्ता
• श्री अम्बरीश राय, आरटीई कार्यकर्ता
• श्यामोली सिंह, छात्र एक्टिविस्ट, जेएनयू
• ज़ैनब अमाल, छात्र एक्टिविस्ट, डीयू
• रमीस इके, छात्र एक्टिविस्ट, जेएमआई
• सैय्यद अहमद मुज़क्किर, डॉयरेक्टर, सीईआरटी

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