ऑनलाइन शिक्षा: चुनौतियां एवं संभावनाएं

वर्तमान परिस्थितियों में ऑनलाइन शिक्षण एक विकल्प के रूप में हमारे सामने है और अब इसे लगभग कक्षा शिक्षण का एक पर्याय समझा जाने लगा है। इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान परिस्थितियों में ऑनलाइन शिक्षण का सहारा लेना अपरिहार्य है लेकिन वहीं शिक्षाविदों के लिए यह विचारणीय तथ्य है कि क्या इसे कक्षा शिक्षण का पर्याय समझा जा सकता है?

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ऑनलाइन शिक्षा: चुनौतियां एवं संभावनाएं

अब्दुल हक़ ख़ान

दुनिया के सारे शिक्षाविद् शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण साधन मानते हैं, इसीलिए हर दौर में, हर देश के शासकों और सरकारों ने इस साधन का उपयोग अपनी विचारधारा के अनुरूप समाज को ढालने के लिए किया‌ है।

समाज का निर्माण वहां रहने वाले नागरिकों के व्यक्तित्व निर्माण से जुड़ा हुआ है और व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है। गांधी जी के अनुसार, “शिक्षा से मेरा तात्पर्य मनुष्य के शरीर, आत्मा और मस्तिष्क के सर्वोत्तम अंश की अभिव्यक्ति से है।” यानि व्यक्ति के अन्दर जो कुछ भी बेहतर है, उसको सामने लाना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य है। यदि शिक्षा के इस उद्देश्य को हासिल किया जा सके तो समाज का एक बेहतर रूप सामने आ सकता है। यही कारण है कि चिन्तकों और विचारकों के अलग-अलग जीवन दर्शन के साथ-साथ शिक्षा दर्शन भी सामने आए हैं। विभिन्न दर्शनों के अनुरूप शिक्षा तकनीकें भी विकसित हुई हैं।

‘अधिगम’ शिक्षा तकनीक की महत्वपूर्ण शब्दावली है। सामान्य भाषा में अधिगम का अर्थ ‘सीखना’ (learning) होता है। यह प्रक्रिया शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग है और इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग शिक्षण विधियां हैं। वही शिक्षक सफल शिक्षक कहलाता जो अधिगम प्रक्रिया में नित नये साधनों का प्रयोग करता है और विभिन्न शिक्षण तकनीकों से स्वयं को अपडेट रखता है।

वर्तमान परिस्थितियों में ऑनलाइन शिक्षण एक विकल्प के रूप में हमारे सामने है और अब इसे लगभग कक्षा शिक्षण का एक पर्याय समझा जाने लगा है। इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान परिस्थितियों में ऑनलाइन शिक्षण का सहारा लेना अपरिहार्य है लेकिन वहीं शिक्षाविदों के लिए यह विचारणीय तथ्य है कि क्या इसे कक्षा शिक्षण का पर्याय समझा जा सकता है?

सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाले क्रांतिकारी परिर्वतन ने ऑनलाइन शिक्षण के क्षेत्र में मार्ग प्रशस्त किया है। शिक्षण में दृश्य-श्रव्य (Audio-Visual) माध्यमों को पहले से ही उपयोग में लाया जाता रहा है परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इसे और प्रभावशाली बनाया जा सकता है। ऑनलाइन शिक्षण के लाभ भी बहुत गिनाए जाते हैं। उनमें सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि किसी भी विषय के जाने-माने विशेषज्ञ से सीधे संवाद किया जा सकता है। मेरे विचार से विषय वस्तु को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि विद्यार्थी अच्छे शिक्षकों के सम्पर्क में रहें। यह अलग बात है कि कितनी जनसंख्या इस प्रक्रिया से लाभ ले सकती है! वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह शिक्षण संस्थाओं या प्रबंधन की ज़िम्मेदारी है कि वे इस प्रकार की व्यवस्थाएं करें। छोटी कक्षाओं में सीधे संवाद की स्थिति निर्मित होना मुश्किल काम है परन्तु बड़ी कक्षाओं में व्याख्याएं करना अपेक्षाकृत आसान है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए तो बहुत आवश्यक है। देश में इस दिशा में बहुत से प्रयास सफल भी हो रहे हैं। विगत दो दशकों में शिक्षण टेक्नोलॉजी का शिक्षण में प्रयोग का विकास स्वाभाविक गति से हो रहा था लेकिन पिछले वर्ष से उत्पन्न हुई परिस्थितियों में इसकी आवश्यकता के कारण इस दिशा में प्रयास तीव्र हुए हैं। परन्तु जिस अधिक मात्रा में भौतिक एवं मानव संसाधनों की आवश्यकता है उसे पूरा करने में अभी और समय लगेगा। भौतिक संसाधनों का विकास और उपलब्धता तो शीघ्र हो सकती है, परन्तु ऑनलाइन कक्षाओं के लिए विशेषज्ञों को तैयार करना समय चाहता है।

एक शिक्षक के तौर पर मैं जानता हूं कि अधिगम की प्रक्रिया और संप्रेषण में सूक्ष्म शिक्षण (micro teaching) का बहुत महत्व है। सूक्ष्म शिक्षण में महारत हासिल करने के लिए शिक्षक को बहुत अधिक मेहनत,‌ तैयारी और साधना की आवश्यकता होती है। “मैं जो समझ रहा हूं उसे दूसरे को समझाना” यह दुनिया के सबसे कठिन कामों में से एक है। परम्परागत शिक्षण में जबकि शिक्षक और विद्यार्थी आमने-सामने हों, तब भी शिक्षण की सफलता इस बात पर निर्भर है कि शिक्षक में विषय-ज्ञान, शिक्षण-विधियों की समझ, बाल मनोविज्ञान का ज्ञान, सूक्ष्म शिक्षण में कुशलता किस मात्रा तक है। परिस्थितियां यह बताती हैं कि विभिन्न कारणों से अभी भी अधिकांश शिक्षक इन विधाओं में पारंगत नहीं हो सके हैं। इस दिशा में होने वाले प्रशिक्षण महज़ औपचारिकताएं बनकर रह गये हैं। यही कारण है कि शासकीय और अशासकीय विद्यालयों में ऑनलाइन शिक्षण में अधिगम प्रक्रिया अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पा रही है। व्यक्तिगत भिन्नता और रुचि के कारण सामान्य शिक्षण में यह आवश्यक नहीं कि विद्यार्थी विषय-वस्तु में समान रूप से रुचि ले रहे हों। उस समय शिक्षक Eye Contact और अन्य मनोवैज्ञानिक तरीक़ों से कक्षा अनुशासन पर नियंत्रण कर विषय को रोचक बना सकता है। परन्तु ऑनलाइन शिक्षण में इस प्रक्रिया में शिक्षक असहज अनुभव करता है, ख़ास तौर पर तब समस्या और जटिल हो जाती है जब शिक्षक को पर्याप्त प्रशिक्षण की सुविधा भी न हो।

शिक्षण संस्थानों में ऑनलाइन शिक्षण को  प्रभावी बनाने के लिए यथोचित मॉनिटरिंग एक अच्छा साधन है। विभिन्न प्रकार के ऐप्स इस सिलसिले में मददगार साबित हो सकते हैं। ऑनलाइन शिक्षण का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि अच्छी पाठ योजनाओं की रिकार्डिंग कर उन्हें सहेजा जा सकता है और भविष्य में कभी भी उपयोग किया जा सकता है। इस सिलसिले में एक नवाचारी क़दम मध्यप्रदेश शासन ने उठाया है और हो सकता है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के प्रयोग हो रहे हों। गत वर्ष से इसके तहत विद्यार्थियों को उनकी कक्षाओं के व्हाट्सएप समूहों में विषय सामग्री प्रतिदिन भेजी जाती रही है, फिर क्लास टीचर्स कोई भी पांच विद्यार्थियों से फ़ोन पर बात कर उनकी प्रतिक्रियाएं नोट कर एक निर्धारित फ़ार्मेट में अपने प्रिंसिपल को भेजते हैं। स्कूल प्रिसिंपल उनमें से कुछ विद्यार्थियों से बात कर अपने उच्च अधिकारी को ऑनलाइन पोर्टल पर जानकारी दर्ज कराता है और फिर राज्य स्तर के अधिकारी उनकी क्रॉस चेकिंग करते हैं। यह सब बताने का उद्देश्य यह है कि इस प्रकार के और भी सशक्त मॉनिटरिंग सिस्टम ऑनलाइन शिक्षण को प्रभावी बना सकते हैं।

संसाधनों का अभाव ऑनलाइन शिक्षण की प्रक्रिया में एक बाधा है। संसाधन उपलब्ध होने पर उनके उपयोग के बारे में जानकारी भी आवश्यक है। आई.सी.टी. के नाम पर कुछ हद तक इस दिशा में शिक्षण संस्थाओं में काम किया गया है और उस पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण भी हुए हैं लेकिन जैसा कि पहले बताया गया कि ये प्रशिक्षण औपचारिकताएं ही सिद्ध हुए हैं और वर्तमान आपातकालीन स्थिति में ICT at School जैसी महत्वकांक्षी योजनाओं से संबंधित संसाधन अनुपयोगी सिद्ध हो चुके हैं।

इस समय ‘आपदा में अवसर की तलाश’ की प्रक्रिया में व्यवसायिक संस्थानों ने बहुत हद तक सफलता प्राप्त की है। ‘ई लर्निंग’ के नाम पर बहुत से ऐप बाज़ार में उपलब्ध हो गए हैं। उनमें से बेहतर का चुनाव हर शिक्षक के लिए चुनौती है। हर स्तर के पाठ्यक्रम से संबंधित विषय-वस्तु और उन्हें विद्यार्थियों तक पहुंचाने के तरीक़े बाज़ार में उपलब्ध हैं। उचित मार्गदर्शन का अभाव और उसके नतीजे में सही मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को न चुन पाना घातक हो सकता है। शिक्षा प्रशासन में विशेषज्ञों का अभाव उसे और घातक बना सकता है। यह कहना ग़लत न होगा कि इन उपलब्ध संसाधनों का उपयोग समाज के ख़ुशहाल तबक़े तक ही सीमित है। समाज के हाशिए पर रहने वाला तबक़ा उसे अभी दूर की कौड़ी समझता है और यह वास्तविकता भी है कि ये संसाधन उसकी पहुंच से अभी काफ़ी दूर हैं।

ऑनलाइन शिक्षण की प्रक्रिया का लाभ अशासकीय संस्थानों ने भी ख़ूब उठाया है। वे इसे मोटी फ़ीस वसूलने का जरिया बना रहे हैं। शिक्षा प्रशासन के दफ़्तरों में उनकी इस मनमानी के कारण शिकायतों का ढेर है। परिणामस्वरूप विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों में तनाव और अवसाद लगातार बढ़ रहा है।

शैक्षिक जगत में मूल्यांकन की प्रक्रिया आम तौर पर भी विवाद का विषय रही है। ऑनलाइन शिक्षण की प्रक्रिया में विद्यार्थियों की शिक्षण उपलब्धि का आकलन कठिन कार्य है। यही कारण है कि वर्तमान परिस्थिति में मूल्यांकन का कोई उचित तरीक़ा शिक्षा समाज के सामने से नहीं आ पाया है। आपातकालीन परिस्थिति होने के कारण, कम समय में समुचित अध्यापन नहीं हो पाया और वर्तमान शैक्षणिक उपलब्धियों का प्रदर्शन करने के लिए विद्यार्थियों के पुराने नोट्स के आधार पर परीक्षाओं की तैयारी करनी पड़ी। यह सब इस कारण से हो रहा है कि ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से अभी तक कोई उचित टूल विद्यार्थियों का समुचित मूल्यांकन नही कर सका। यह प्रक्रिया आने वाले समय के लिए कितनी घातक है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।

आइये अब विचार करें कि ऑनलाइन शिक्षण को किस प्रकार प्रभावी और लाभदायक बनाया जा सकता है। और यह महत्वपूर्ण साधन हमारे लिए किस प्रकार लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इसके लिए सबसे पहला काम है शिक्षक को तैयार करना और उसे सूचना प्रौद्योगिकी के लिए आवश्यक प्रशिक्षण देना। एक अच्छी तरह प्रशिक्षित शिक्षक सीमित संसाधनों में भी ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से अच्छे शैक्षणिक वातावरण का निर्माण कर सकता है। यदि शिक्षक दक्ष नहीं है तो अच्छे से अच्छे भौतिक संसाधनों की मौजूदगी में भी उचित परिणाम नहीं मिल पाएंगे।

एक और महत्वपूर्ण कार्य है शिक्षण संस्थानों को व Well Equipped बनाना। इसके लिए आवश्यक सामग्री में जहां महत्वपूर्ण उपकरण की आवश्यकता है, वहीं तेज़ और प्रभावी इन्टरनेट भी ज़रूरी है। व्यवहारिक तौर पर देखने में आया है कि इन संसाधनों के अभाव में सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

ऑनलाइन शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों का एक से अधिक संस्थाओं में उपयोग में किसी प्रकार के शासकीय बंधन का न होना भी ज़रूरी है। क्योंकि हम पहले भी लिख चुके हैं कि हर क्षेत्र के जाने-माने विषय विशेषज्ञों का इसके माध्यम से विद्यार्थियों के साथ सीधा संवाद स्थापित किया जा सकता है।

इसके बाद बारी आती है लगातार मॉनिटरिंग की। सतत और व्यापक मॉनिटरिंग के बिना ऑनलाइन शिक्षण से अच्छे परिणामों की उम्मीद कम है। मॉनिटरिंग का यह कार्य अकेले शिक्षक के वश का नहीं है बल्कि पूरे शैक्षिक प्रशासन को मॉनिटरिंग की प्रक्रिया में भागीदार होना होगा। कक्षाओं के पहले किया जाने वाला सर्वेक्षण उचित रणनीति बनाने में सहायक है। कितने विद्यार्थियों के पास मोबाइल है, कितने विद्यार्थियों के पास एंड्रॉयड मोबाइल है, कितने घरों में टी वी  और कितनों के पास इन्टरनेट कनेक्शन उपलब्ध है? यह आंकड़े शिक्षा प्रशासन के पास उपलब्ध हों तो बेहतर रणनीति बन पाती है।

एक और सुझाव इस सिलसिले में यह भी हो सकता है कि ऑनलाइन क्लास रूम के लिए पाठ्यक्रम से संबंधित पाठयोजनाओं का निर्माण उच्च स्तर पर ज़मीनी कार्यकर्ताओं के सुझाव पर किया जाए। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण यह कि शैक्षणिक उपलब्धियों के आकलन के लिए उचित टूल का निर्माण किया जाए। ऑनलाइन शिक्षा के संबंध में हमारे सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने हेतु ये कुछ सुझाव हैं जिन्हें व्यवहारिक रूप देकर स्थिति को और बेहतर बनाया जा सकता है।

(लेखक मध्य प्रदेश के एक कॉलेज में प्राचार्य हैं।)

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