
कुछ दिनों पहले बिहार विधान सभा चुनाव में सीमांचल से चयनित ए o आई o एम o आई o एम के चार विधायकों का राजद में शामिल होने की ख़बर ने राजनीतिक पंडितों को चर्चा का एक नया विषय दे दिया है अर्थात हर तरफ इस ख़बर पर विश्लेषण का बाज़ार गर्म है। इससे यहां के लोगों में राजनीतिक जागरूकता आनी चाहिए.
भले ही महाराष्ट्र के शोर-शराबे से इसे दबा दिया गया होगा, लेकिन मुस्लिम समुदाय और अल्पसंख्यकों की राजनीति से जुड़े होने के कारण अख्तर-उल-इमान केवल हाय दिल हाय चमन हाय सीमांचल करते रहेंगे. दरअसल, आजादी के बाद मुस्लिम पार्टी के नाम पर अचानक उनके नेतृत्व में वहां के 5 विधायक जीत कर आए, इसलिए उन्होंने इसका बड़े उत्साह के साथ जश्न मनाया.
वे इसे बिहार की जीत मान रहे थे. अचानक मिल्लत के नाम पर अवसरवाद की राजनीति ने एक नया मोड़ ले लिया. सभी इसके अभ्यस्त हैं. मिल्लत के दानिश्वर और मजहबी हल्के के बुद्धिजीवी वक्त आने पर इस तरह पाला बदलने में माहिर हैं. जिस जोश के साथ जीत हासिल हुई थी उसी जोश के साथ अब होश उड़ रहे हैं. अख्तर-उल-ईमान साहब मिल्ली जज़्बे, जुनून और दर्द के आदमी हैं, लेकिन वे बहुत ही जोशीले, जज्बाती एवं शोला बयान वक्ता भी हैं, इसलिए इस हादसे का शोक ईद से मुहर्रम और कर्बला तक मनाते रहेंगे. वे ठंडे दिल और दिमाग से खुद का विश्लेषण नहीं करेंगे. वे अपने केंद्रीय नेतृत्व को तन्हाई में जमीनी हकीकत की वास्तविकता को नहीं सुनाएंगे. एआईएमआईएम इस दिशा में लगातार गलतियाँ कर रहा है. वे constractive बयान भी नहीं दे पा रहे हैं. वे जहाँ भी जाते हैं, कौमी कश्मकश की नई राजनीतिक इबारत कर युवाओं को भाषण में पिलाते हैं.
जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. राजनीति में अवसर की दृष्टि से मुनासिब और उपयुक्त बात की जाती है. उनकी राजनीतिक मुहावरे उपयुक्तता के पैमाने पर खरे नहीं उतरते है. इसी को कुरान साफ साफ कहता है कि ‘सच्ची बात कहो’, लेकिन सच बात कहने का अंदाज व तरीका दानिशमंदाना हो. सच्ची बातें बहुत कड़वी होती हैं, और अपने प्रभावों के एतबार से यह व्यर्थ होती है. बहरहाल मेरे कहने का मतलब यह है कि सीमांचल के इस हादसे के बाद भी कैडर के बीच जोशीली भाषण देकर 5 के बजाय 25 विधायकों को जिताने का नारा देना एक बेकार की बात है इससे फायदा नहीं होगा लोगों को चाहिए कि उनके सामने आईने दिखाएं.
मैं उन सभी को महत्व देता हूं जो जाति से ऊपर उठते हैं और सामान्य मानव हित या सामान्य मुद्दों के लिए दौड़- भाग करते हैं, फिर भी मैं आँख बंद करके नकल नहीं करता.
अत: दूसरी ओर श्री बैरिस्टर ओवैसी अपनी पार्टी को अखिल भारतीय स्तर पर फ़ैलाव के लिए देश की राजनीति में आधी-अधूरी तैयारी के साथ भाग ले रहे हैं तथा राजनीति में मुस्लिम राजनीति का झण्डा उठाये हुए हैं इसमें फायदा कम नुकसान ज्यादा हैं. देश के अन्य हिस्सों में तो पता नहीं, लेकिन झारखंड चुनाव में पहले की तरह कच्चे- पक्के लोगों से हाथ मिला कर जैसे तैसे लोगों को टिकट देकर देश में नई मुस्लिम राजनीतिक नेतृत्व पैदा करने का नया सस्ता खेल शुरू कर दिया है. वह कई मायनों में एक सबक है. सीमांचल में जो कुछ हुआ उसमें उनके लिए बहुत बड़ी नसीहत है.
वहां जो कुछ भी हुआ वह अवसरवादी राजनीति की एक आम प्रथा है, और यह बहुत पहले भी हो चुका है. बंगाल व यूपी की मुस्लिम केंद्रित राजनीति को पलटकर देखें. ऐसा ही एक घटना स्वर्गीय डॉ जलील फरीदी साहब की पार्टी मुस्लिम मजलिस में हु बहु हुई थी बल्कि इससे और भी अधिक गंभीर था. बहरहाल बात दूसरी तरफ चली जाएगी. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तीनों देश की सामान्य मुस्लिम आबादी एक ही थान के तीन हिस्से हैं. तीनों मुल्क में अपने देश के बदले हुए हालत में अवाम, खास धार्मिक विद्वान और सेकुलर बुद्धिजीवी सबका रवैया और राजनितिक सफर देख लीजिये निगाह खुल जाएगी. मजहबी मठ, मौलानाओं की जमातें, मसलकी और गिरोही बड़बोलेपन इसी के साथ मीर ज़फर और मीर सादिक़ के क़ाबिले के लोग किस तरह के खेल खेलते रहे हैं और खेल रहे हैं. आप अल्पसंख्यक में हैं और हिन्दुत्वा का उभार है इसलिए मुस्लिम मिल्लत के नौजवानों को बगैर उनकी राजनितिक शिक्षा -दीक्षा के जोश और नार ए तकबीर के साथ चुनावी मैदान में उतार दे रहे हैं और टिकट बाँटने का वही अंदाज और तरीका का इस्तेमाल करते हैं जो देश की सभी राजनितिक पार्टियाँ कर रही हैं.
आप भी जहां मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा है वहां चुनाव से पहले हिन्दू- मुस्लिम की नफरत की राजनीति के वर्तमान स्वरूप में मुसलमानो के कौमी सियासत के रूप को बढ़ावा देते हैं. ताकि जोशीले नौजवानों का एक ग्रुप आपका भक्त बनकर जय जयकार करे. इसके आलावा आप भी उस भीड़ भाड़ में से एक साहब को जिसका किरदार उसके राजनितिक सूझ -बूझ और वहां पर उसके रवैये पर कोई सेहतमंद तरीका का इस्तेमाल नहीं किया है फिर भी उसको गलत बुनियाद पर टिकट दे दें।
अभी रांची के माण्डर विधानसभा उप चुनाव में आपका रवैया काफी अफसोसनाक है. दिक्कत सिर्फ एक दो जगह का नहीं है उससे आगे भी है. काश सीमांचल का यह हादसा आपको ऑल इण्डिया चुनावी सूझ-बुझ के सिलसिले में विश्लेषण का मौका मिल जाये. जी तो यही कहता है की यह नाहोता तो अच्छा था. वफादारी ईमान का हिस्सा है लेकिन पॉवर पॉलिटिक्स में राजनीतिक मौसम के नयी करवटों का इंतज़ार भी करना चाहिए. इन सब पहलुओं के बावजूद मुझे यह खबर सुनकर अफ़सोस हुआ अगर जाना था तो बावक़ार सियासी तरीका भी हो सकता था.
-डॉ हसन रजा
बढ़िया लेख है। सीमांचल एक राजनीति की प्रयोगशाला बनते जा रही है। राजद मुसलमानों को यह बताना चाहता है कि देखो मैं ही तुम्हारा मसीहा हूँ। लेकिन राजद की इस सोंच को भी अब बदलने की आवश्यकता है।