मोदी का चक्रव्यूह?

2014 का चुनाव अभियान ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ उसी सिलसिले की एक कड़ी था। उस समय राम मंदिर सहित सारे विवादित विषयों को ताक पर रखकर देश को गुजरात जैसा खुशहाल और विकसित राज्य बनाने का झूठा ख्वाब दिखाया गया। भ्रष्टाचार के साथ-साथ बेरोजगारी का अंत और महिलाओं को अत्याचार से बचाने जैसे लुभावने नारे लगाए गए। लेकिन नोटबंदी की मूर्खता ने सारी बिसात उलट दी।

0
1419

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से भाजपा का उम्मीदवार बनाकर नरेंद्र मोदी ने अपना राजनीतिक दायरा पूरा कर लिया है। इस दायरे के केंद्र में मोदी है। इसके परिधि पर खून की पहली बूंद गोधरा में गिरी। इसके बाद वह पूरे गुजरात राज्य में फैलता चला गया। 2002 से 2007 तक गुजरात में हिंसा और अत्याचार का एक सिलसिला रहा जिसमें मुस्लिम विरोधी दंगो के बाद हिरेन पांड्या की हत्या हुई। उसके बाद इशरत जहां और सोहराबुद्दीन का इनकाउंटर और फिर प्रजापति का एनकाउंटर। 2007 के बाद मोदी  ने अपने आप को सुरक्षित महसूस किया और अब राज्य के विकास की ओर ध्यान दिया। 2012 के चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि बदलने के इरादे से राज्य में शांति भाईचारा के लिए 3 दिन का सद्भावना व्रत भी रखा। उसके बाद आदर्श गुजरात का हव्वा खड़ा करके राज्य चुनाव जीता गया। इस बीच मीडिया का इस्तेमाल बड़ी सुंदरता के साथ किया गया। यहीं से मोदी को प्रधानमंत्री बनने का विचार आया और 2013 में वे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बन गए।

2014 का चुनाव अभियान ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ उसी सिलसिले की एक कड़ी था। उस समय राम मंदिर सहित सारे विवादित विषयों को ताक पर रखकर देश को गुजरात जैसा खुशहाल और विकसित राज्य बनाने का झूठा ख्वाब दिखाया गया। भ्रष्टाचार के साथ-साथ बेरोजगारी का अंत और महिलाओं को अत्याचार से बचाने जैसे लुभावने नारे लगाए गए। लेकिन नोटबंदी की मूर्खता ने सारी बिसात उलट दी। जनता में भारी निराशा और बेचैनी फैल गई। उत्तर प्रदेश का राज्य चुनाव जीतने के लिए मोदी जी को फिर से अपनी पुरानी सांप्रदायिकता का सहारा लेना पड़ा। इस तरह अर्थव्यवस्था के बाद राजनीति के मैदान में भी उनका पतन शुरू हो गया।

उत्तर प्रदेश चुनाव में जबरदस्त कामयाबी हासिल करने के बाद उनसे दूसरी मूर्खता यह हुई कि इस महत्वपूर्ण राज्य की बागडोर किसी योग्य मुख्यमंत्री के हाथों में सौंपने के बजाय योगी के हवाले कर दी गई। उस व्यक्ति के खिलाफ हाई कोर्ट में दंगा भड़काने का मुकदमा है। उसको बड़बोले पन के सिवा कुछ नहीं आता। उसके राज्य में बलात्कार और हत्या का आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर  जेल की चक्की पीस रहा है। हत्या के आरोपी दूसरे विधायक अशोक सिंह चंदेल को उम्र कैद की सजा सुनाई जाती है और वह अदालत से फरार हो जाता है। पूर्व मंत्री स्वामी चिन्मयानंद के विरुद्ध बलात्कार के आरोप वापस लेने की कोशिश की जाती है। ऐसे में मोदी जी की तीसरी और सबसे बड़ी गलती यह है कि उन्होंने सध्वी प्रज्ञा ठाकुर को लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बना लिया है। इस तरह 17 साल बाद मोदी वहीं पहुंच गए जहां से चले थे।

भाजपा ने साध्वी को उम्मीदवार बनाने का फैसला बड़े उहापोह के बाद किया है। कमलनाथ ने जिस दिन यह कहा कि दिग्विजय सिंह को राघव गढ़ की सुरक्षित सीट के बजाय भोपाल जैसे मुश्किल चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहिए। उसी दिन दिग्विजय सिंह ने इसकी हामी भर दी। मीडिया में साध्वी के नाम पर चर्चा होने लगी लेकिन भाजपा ने न तो उसका समर्थन किया और ना ही उसको अपनी पार्टी की सदस्यता दी। कई सप्ताह तक विचार मंथन के बाद अंततः भा ज पा ने साध्वी को टिकट देने का फैसला किया तो उसे बाकायदा पार्टी में शामिल किया। साध्वी के बारे में यह अफवाह फैलाई गई कि उसे अदालत ने बरी कर दिया है, जो सरासर झूठ है। केंद्र सरकार के दबाव में एनआईए ने अदालत से यह जरूर कहा कि इसके पास साध्वी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है इसके बाद अदालत ने उस पर से मकोका हटाया लेकिन अभी भी उस पर यू ए पी ए के तहत धमाकों का आरोप मौजूद है और वह बीमारी का बहाना बनाकर जमानत पर घूम रही है।

देश की राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की मौजूदगी एक आम बात हो गई है। मौजूदा संसद सदस्यों में से 33 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की स्वीकृति हलफनामा में की है। उनमें से 106 के खिलाफ गंभीर अपराध: जैसे हत्या की कोशिश, सांप्रदायिक दंगे भड़काना, अपहरण और महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे मामले दर्ज हैं। जिन 10 संसद सदस्यों ने हत्या से जुड़े मामले की घोषणा की है उनमें से चार का संबंध भाजपा से है। ये सब संसद सदस्यों को प्राप्त सुविधाओं पर ऐश कर रहे हैं। हत्या की कोशिश करने वाले 14 संसद सदस्यों में से 8 भाजपा के हैं। सांप्रदायिक दंगा फैलाने के आरोप 14 के खिलाफ हैं। इनमें से भाजपा का एक संसद सदस्य है।

भाजपा हर मामले में सबसे ऊपर है इसलिए है कि इसके सदस्यों की संख्या ज्यादा है साथ ही इसका एक और कारण यह है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ दो आपराधिक मुकदमे विचाराधीन हैं। उनमें से एक बिहार और दूसरा पश्चिम बंगाल की अदालत में दर्ज है। दोनों ही मामले भड़काऊ भाषण देने से संबंधित हैं। अमित को कलकत्त हाई कोर्ट से सजा देने पर रोक का आदेश मिला हुआ है, लेकिन अगर भाजपा अगला राष्ट्रीय चुनाव हार जाती है तो यह रुकावट आसानी से दूर हो सकती। अमित शाह पर पहली बार आरोप लगा जब वे गुजरात में मंत्री थे। उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें तुरंत मंत्रालय से अलग कर दिया, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने ही उन्हें पार्टी की अध्यक्षता पर बिठा दिया। यह समय समय की बात है, लेकिन इससे पहले मामला हत्या और दंगे तक सीमित था अब बात आतंकवाद तक पहुंच गई है। मोदी अपने हर विदेश दौरे पर आतंकवाद की समाप्ति का राग अलापते हैं । अब अगर कोई उनसे पूछ ले कि आतंकवाद के आरोपियों को संसद में सदस्यता देने से वह फलता फूलता है या उसका अंत होता है, तो वे क्या जवाब देंगे।

भोपाल लोकसभा चुनाव क्षेत्र से साध्वी को टिकट क्या मिला कि मानो स्वर्ग का परवाना मिल गया और उसने खुशी में आपे से बाहर हो कर घोषणा कर दी कि महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे की मौत उसके श्राप से हुई। प्रज्ञा के अनुसार उससे पूछताछ करके करकरे ने देशद्रोह किया था और धर्म के खिलाफ काम था इसलिए उसे श्राप दिया गया था कि हेमंत करकरे की नस्ल बर्बाद हो जाए। उसके ठीक सवा महीने बाद उन्हें आतंकियों को मार गिराया। अब सवाल यह पैदा होता है कि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हेमंत करकरे के घर श्राप के प्रभाव देखने के लिए गए थे या संवेदना जताने। शायद यही कारण था कि हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने मोदी की एक करोड़ की मदद को ठुकरा दिया था बल्कि अपने दरवाजे से उन्हें बैरंग लौटा दिया था। कविता करकरे की दूरदर्शिता ने उस समय अंदाजा लगा लिया कि आगे चलकर उनके पति से नफरत करने वाली और उन्हें श्राप देने वाली साध्वी को संसद सदस्य बनाने की कोशिश करेगा।

आतंकवाद में लिप्त उस पाखंडी साध्वी ने 1 दिन पहले अपने बयान से मुकर कर बता दिया कि वह कितनी कायर है। साध्वी ने जब देखा कि उसकी माई बाप भाजपा ने उस से पल्ला झाड़ लिया है तो वह खुद भी पलट गई और अपना बयान वापस ले लिया। उसने कहा कि यह अपने घर की लड़ाई है और अगर अपने घर की लड़ाई में मैंने कहा कि मेरा शोषण किया गया तो इसका अर्थ गलत हो ही नहीं सकता। अगर दुश्मनों को मेरे बयान से संतुष्टि मिलती है तो मैं यह क्यों कहूं कि हम दुश्मनों को मजबूत नहीं होने देंगे। इस में न तो शर्मिंदगी है और पलटने की वजह दुश्मनों का लाभ उठाना बताया गया है, लेकिन जिसके श्राप से आतंकवादी आकर दुश्मनों का अंत कर देते हैं उसको किस बात का डर। वह दिग्विजय को श्राप देकर उनको भी आतंकवादियों के हाथों ख़्त्म करवा सकती है। पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू सही कहते हैं, इस भाजपा सरकार ने भारत को सारी दुनिया में हास्यास्पद देश बना कर रख दिया है, इसमें ताजा इजाफा साध्वी प्रज्ञा का यह मूर्खतापूर्ण और नफरत पर आधारित बयान है।

लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में जब मंडल के सामने कमंडल संभालकर सोमनाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू की थी  तो उनका एक सारथी नरेंद्र मोदी भी था। इसके बावजूद 2002 तक उस सारथी को राजनीतिक बनवास झेलना पड़ा क्योंकि केशवभाई पटेल ने संजय जोशी को दिया हुआ वचन निभाते हुए मोदी को गुजरात से बाहर किया था। मोदी जी ने एक लंबे समय तक दिल्ली के केंद्रीय कार्यालय और अन्य राज्यों और की खाक छानने में गुजारी। 12 वर्ष बाद जब केशव भाई पूरी तरह नाकाम हो गए तो आडवाणी जी को अपने सारथी की याद आई और उन्होंने मोदी को मुख्यमंत्री बना कर अहमदाबाद भेज दिया। यह मोदी युग का आरंभ था। नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा को दोबारा चुनाव में सफलता दिलाने की थी। उस अवसर पर गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के अंदर आग लगी और 6 राम भक्त मारे गए। उसका लाभ उठाकर मुख्यमंत्री ने पूरे गुजरात में दंगे करवा दिए।

अटल जी उस समय प्रधानमंत्री थे उन्होंने महसूस किया कि राजधर्म का पालन नहीं हो रहा है लेकिन जब मोदी को हटाने की कोशिश की तो आडवाणी जी सारथी बन कर मैदान में कूद पड़े और नरेंद्र मोदी को चक्रव्यूह से निकाल लिया। फिलहाल यह हालत है कि मोदी जी ने अपने सारथी को हटाकर उसकी जगह चेले को गांधीनगर के रथ पर सवार कर दिया है। देखना यह है कि आगे चलकर नरेंद्र मोदी के साथ अमित शाह का क्या सुलूक होता है। वही जो मोदी ने आडवाणी के साथ किया या उससे अलग। महाभारत में अर्जुन का रथ कृष्ण के उतरते ही जलकर भस्म हो जाता है। अर्जुन के सवाल करने पर जवाब मिलता है यह तो ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से कब का ध्वस्त हो चुका था। कृष्ण की इसमें उपस्थिति के कारण टिका हुआ था और अगर अर्जुन पहले नहीं उतरता तो रथ के साथ वह भी जलकर राख हो जाता। भाजपा का यह रथ कब तक चलेगा और कब तबाह होगा यह तो समय ही बताएगा।

लेखक: डॉ॰ सलीम खान

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here