स्वार्थ और साम्प्रदायिकता के पीछे छुपती हक़ीक़त..!!

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केरल की हादिया के धर्म परिवर्तन यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को लेकर कुछ हक परस्त लोग हक की आवाज बुलंद कर रहे हैं,लड़ रहे हैं जिन्हें दबाने की कोशिश भी की जा रही हैं।लेकिन कहते हैं ना कि हक़ की आवाज दबती नहीं है।

याद रहे केरल में कम्युनिस्ट सरकार सत्ता में है जो आजादी,आजादी के नारे लगाते रहती है और खुद को आजादी के ध्वजवाहक के तौर पर पेश करती है। लेकिन हादिया की आज़ादी के मामले में कहां है…? पता नहीं..?शायद वह मुसलमान हो गई है इसलिए..! यहां पर इस मसले को लेकर कम्युनिस्ट की सांप्रदायिकता स्पष्ट रूप से झलकती है..!

अगर एक मुस्लिम महिला अपनी स्वेच्छा से हिंदू धर्म अपना लेती तो भी वामपंथियों का यही रवैया होता..? या अगर केरल में ही बीजेपी या कांग्रेस की सरकार होती तो इसी मसले को लेकर उनकी आज़ादी कितने ऊंचे स्तर पर उबाल मारने लग जाती.. लेकिन कहते हैं ना कि अपने दही को खट्टा कोई नहीं बताता। वही हाल केरल की हादिया के मसले को लेकर वामपंथियों का नजर आ रहा है जो की हादिया का मौलिक अधिकार है।

इसी तरह महिला संगठन जो महिला आजादी और उसके सशक्तिकरण की बात करते हैं। अभी कुछ दिनों पहले तलाक के मामले पर टीवी डिबेट, धरना प्रदर्शन और कोर्ट-कचहरी हर जगह उनकी उपस्थिति नजर आ रही थी जिसे वह मुस्लिम महिलाओं के बुनियादी हुकूक और उनकी आज़ादी के खिलाफ बता रहे थे।, ठी..क है….! लेकिन इन संगठनों से मेरा सवाल यही है कि क्या धर्म की आज़ादी, संविधान के अनुसार हादिया का बुनियादी हक नहीं है..?अगर है,तो फिर तुम्हारी आवाज दुबक क्यों गई..? शायद तुम्हारी नज़रों में हादिया महिला नहीं है..? या फिर कहीं ना कहीं तुम्हें अपने दिमाग में बसी सांप्रदायिकता वाली सोच इस पर बोलने नहीं देती।

अभी हाल ही में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को रौंदते हुए कर्नाटक की मशहूर और वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। यह सिर्फ ऐसा पहला मामला नहीं है इससे पहले भी पत्रकारों, लेखकों और एक्टिविस्टों की हत्याएं होती रही है। जिनमें नरेंद्र अच्युत दाभोलकर, गोविंद पंसारे और एम एम कलबुर्गी के ताजा उदाहरण हमारे सामने हैं। इनका क़ुसूर सिर्फ यह था कि ये सत्ता और समाज की गलत नीतियों और बुराइयों का पर्दाफाश कलम के द्वारा करते थें..!! होना तो यह चाहिए था कि उनके विचारों से यदि आप सहमत नहीं है तो आप कलम से ही उनको रद्द करते। बंदूक की गोलियों से इनकी आवाज और लेखनी को रोकना कौनसी संस्कृति है..? शायद आप इनकी आवाज से डर गए.!! जो कि घोर सत्य है..!!

कर्नाटक में अभी कांग्रेस की सरकार है। हमें ज्ञात है कि इससे पहले भी कर्नाटक में एम एम कलबुर्गी कि इसी तरह हत्या हुई थी। लेकिन अभी तक अपराधी पकड़े नहीं गए हैं। यह सरकार की नाकामी है और इसी नाकामी का परिणाम है कि अपराधियों की हिम्मत बढ़ी। और दोबारा इस घटना को गौरी लंकेश की हत्या के रूप में अंजाम देने का हौसला मिला। अगर कलबुर्गी के हत्यारों को कड़ी सज़ा मिल जाती तो शायद आज गौरी लंकेश हमारे दरमियान जिंदा रहती..! लेकिन ऐसा नहीं हुआ जो कि दुखद है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की नाकामी पर कांग्रेस ने भी कोई खास एक्शन नहीं लिया। अगर वहां बीजेपी या कोई दूसरी पार्टी का मुख्यमंत्री होता, तो शायद अब तक इस्तीफा देने की आवाजें तेज़ हो जाती, लेकिन सही बात तो यह है की स्वार्थ और सांप्रदायिकता के रंग ने हमेशा हकीकत को छुपाने की कोशिश की है जो कि भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ है।

(दानिश लाहौरी)

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