विकास ढूंढ़ता हूँ मैं…..

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मैं अखबार पढ़ते ना जाने क्यों अपने देश
का विकास ढूंढता हूँ
विकास हमारे मोहल्ले का खोया हुआ
कोई नन्हा बालक नहीं है,
विकास हमारी प्रगति का है,
विकास हमारे मानव होने का है
विकास हमारे संसाधन उपलब्धि का है।
भूखमरी, बेरोजगारी, समानता और आवास का है।

मैं अखबार पढ़ते समय यही देखता हूं
मेरे देश ने कितना विकास किया है
कल भूख से 60 मरे, चमकी बुखार से 125,
बेरोजगारी से 70, बेघर होने से 25 और कर्ज से 15 किसान ।

मैं सोचता हूँ यह आंकड़ा बदला होगा
एक आध कम मरे होंगे।
लेकिन अखबार के प्रथम पृष्ठ पर सरकार के विज्ञापन मिलते हैं
दूसरे पर उद्योग के परचम और तीसरे पर सरकार के बड़े बड़े वादे।
क्रमशः चुनाव प्रचार, नेताओं का आगमन, फलां नेता होटल में खाना खाने पहुंचे आदि आदि लिखे मिलते हैं।

अखबार में बलात्कार, भुखमरी, आत्महत्या,
बेरोजगारी, बेघर होने जैसी कोई खबर नहीं है।

तब मैं अखबार का अंतिम पृष्ठ पलटता हूँ
मैं देखता हूँ हमारे देश का विकास
किसी कोने में छपा है।

मैं बहुत कुछ पूछना चाहता हूँ –
पर किससे पूछूँ –
इन अख़बार वालों से, सरकार से,
या मर रहे लोगों से , किस से ..

✍️मनकेश्वर कुमार

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