सामाजिक मामलों के जानकार प्रो. आनंद कुमार का कहना है कि खुदकुशी सही मायने में समाज और सरकार के स्तर पर व्यवस्था की विफलता का परिचायक है।
ऐसा माना जाता है कि 20वीं और 21वीं शताब्दी में आत्मदाह के रूप में आत्महत्या विरोध का एक तरीका है और कामीकेज़ और आत्मघाती बम विस्फोट को फौजी या आतंकवादी युक्ति के रूप में उपयोग किया जाता है। प्राचीन एथेंस की बात करे तो जो व्यक्ति राज्य की अनुमति के बिना आत्महत्या करता था उसे दफ़न होने का हक नहीं मिलता था। उस व्यक्ति को शहर से बाहर अकेले दफ़न किया जाता था। प्राचीन रोम में, आरंभिक रूप से आत्महत्या को अनुमत माना जाता था, लेकिन बाद में इसे इसकी आर्थिक लागत के कारण राज्य के विरुद्ध अपराध माना जाने लगा।
दुनिया का दसवे नंबर का मानव मृत्यु का कारण आत्महत्या है, अनुमान है कि हर वर्ष 10 से 20 मिलियन युवाओं तथा महिलाओं में गैर-घातक आत्महत्या प्रयास आम बात हैं। भारत मे आत्महत्या और आत्महत्या की कोशिश, आईपीसी की धारा 309 द्वारा आपराधिक रूप से दंडनीय है। जिसके तहत आत्महत्या की कोशिश करने वाले व्यक्ति को एक साल की कैद या जुर्माना या दोनों सजा एक साथ हो सकती है।अधिकांश पश्चिमी देशों में अब आत्महत्या अपराध नहीं है। बहुत से मुस्लिम देशों में यह आज भी दंडनीय अपराध है।
जनहित याचिका के माध्यम से आईपीसी धारा 309 को खत्म करने की मांग की गई थी। गौरतलब बात यह है कि तत्कालीन केंद्र सरकार के इस प्रयास का विभिन्न दलों और गठबंधनों वाली 25 राज्य सरकारों ने भी समर्थन किया था। यानी लोगों के आत्महत्या की राह आसान बनाने के सवाल पर देश में राजनीतिक स्तर पर आम सहमति है।
सरकार ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट-2017 के तहत आत्महत्या के प्रयास को अपराध की सूची से अलग कर दिया गया है। पीड़ित को मानसिक चिकित्सा, रिहैबिलिटेशन सेंटर इत्यादि भेजने की व्यवस्था की गई है।
साल 1985 में, मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आर.ए. जहागीरदार द्वारा चार ऐसे कारण प्रस्तुत किये गए जिनकी वजह आईपीसी की धारा 309 के संबंध में असंवैधानिकता का प्रश्न खड़ा हो गया।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में बयान जारी किया, जिसमें न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि संविधान में हर व्यक्ति को जीवन का अधिकार दिया गया है। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी क्लीयर कर देना बहुत़ जरूरी है कि जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं होता है।
आत्महत्या के पीछे कई कारण है। स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक कारणों से उपजे अवसाद मुख्य हैं। 1997 से भारत में लगभग 2,00,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है जिनके पीछे कुछ हद तक ऋण सम्बन्धी कारण है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2012 में भारत में 258075 लोगों ने आत्महत्या की थी। हैरत की बात तो यह है कि इनमें 1.58 लाख से अधिक पुरुष और एक लाख के करीब महिलाएं थीं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के तुलनात्मक आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में आत्महत्या की दर दुनियाभर में आत्महत्या दर के मुकाबले बढ़ी है।
डब्ल्यूएचओ ने भी पिछ्ले दिनों दुनिया भर में होने वाली आत्महत्याओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। उस रिपोर्ट के मद्देनजर सालभर मे दुनिया भर में आत्महत्या के लगभग 8 लाख मामलों में 21 फीसदी अकेले भारत में ही होते हैं।जिसमे भारत मे 37.8 फीसद आत्महत्या करने वाले लोग 30 वर्ष से भी कम उम्र के है। वही 44 वर्ष तक के लोगों में आत्महत्या की दर 71 फीसद तक बढ़ी है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक यह भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि भारत में आत्महत्या करने वालों में बड़ी तादाद तादाद 15 से 29 साल की उम्र के लोगों की है, गौरतलब है कि इस मामले में भारत अव्वल है। लगातार बढ़ती इस तादाद को ध्यान में रखते हुए अब इस समस्या की गहराई में जाकर सोचने की ज़रुरत है.
एनसीआरबी के आंकडो के अनुसार दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु (15,777) के साथ ही पश्चिम बंगाल(14,602) जैसे राज्यों मे आत्महत्या की कुल घटनाओं का 56.2 फीसदी है। बाकी 43.8 फीसदी घटनाएं 23 राज्यों और सात केंद्र शासित राज्यों में दर्ज हुई। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा जम्मू कश्मीर मे एक लाख लोगों पर आत्महत्या की दर मात्र पांच फीसदी है। जिससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण के राज्यों में आत्महत्या की घटनाएं ज्यादा हुईं।
WHO के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने कहा कि सभी देशों से स्थायी रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य और शिक्षा कार्यक्रमों में आत्महत्या रोकथाम रणनीतियों को शामिल करने का आह्वान करते हैं। इस दिशा में मिल रही कामयाबी के बावजूद आज भी हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है। हर मृत्यु परिवार, दोस्तों और कॉलीग्स के लिए एक ट्रैजेडी होती है, आत्महत्याएं रोकी जा सकती हैं।
WHO के रिपोर्ट के अनुसार: रशिया 26.5, भारत 16.5, जापान 14.3, युनाइटिड स्टेट्स 13.7, साउथ अफ्रीका 12.8, फ्रांस 12.1, स्वीडन 11.7, कनाडा 10.4, जर्मनी 9.1, चीन 8.0, युनाइटिड किंग्डम 7.6, टर्की 7.2, ब्राजील 6.1, स्पैन 6.1, इट्ली 5.5, मैक्सिको 5.2, इंडोनेशिया 3.7, अरब अमिरात 2.7..
अखबारों, न्यूज चैनल के माध्यम से ऐसी खबरे जान पङी कि ज़हन मे एक ही सवाल उभरा कि इतने असंवेदनशील हो गये है हम कि फुर्सत ही नही हमारे अपनो के लिए। आजकल के सामाजिक रिश्ते मात्र जरूरत तक ही सीमित हो चुके। क्या कभी हमने सोचने की कोशिश की कि आजकल हमने हमारे अपनो को जितना तन्हा कर दिया है।
–नगीना निशा