मध्य प्रदेश हिंसा को सरकार का मौन समर्थन प्राप्त – APCR

इन घटनाओं के परिणामस्वरूप कई निर्दोष मुसलमान न सिर्फ़ घायल हुए हैं बल्कि उनपर गंभीर मानसिक प्रभाव भी पड़ा है। क़ानून और व्यवस्था के हितधारकों ने इन घटनाओं पर चुप्पी साध ली है। साफ़ है कि इस हिंसा को मध्य प्रदेश सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है।

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अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए धन जुटाने हेतु आयोजित एक रैली के दौरान पश्चिमी मध्य प्रदेश में दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा भड़काई गई हिंसा ने वहां के मुस्लिम समुदाय में भय का माहौल बना दिया है। समुदाय के सदस्यों का आरोप है कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह में इंदौर, उज्जैन और अन्य क्षेत्रों में भी उनके प्रार्थना स्थलों को निशाना बनाया गया और घरों में आग लगा दी गई और इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (एपीसीआर) की एक टीम ने मध्य प्रदेश में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और अपनी जांच में पाया कि:

यह स्पष्ट है कि पुलिस और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की अगुवाई वाली मध्य प्रदेश सरकार ने आरएसएस और भाजपा के सांप्रदायिक गुंडों को राज्य के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में राम मंदिर दान के नाम पर हंगामा खड़ा करने की अनुमति दी है।

कथित तौर पर राम मंदिर निर्माण के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से एक हिंदू भीड़ रैली कर रही थी। हालात तब बिगड़े जब इस भीड़ ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र में घुसकर अपमानजनक नारे लगाए। झड़प शुरू हुई जिसके परिणामस्वरूप एक महिला ने गालियां देती हुई भीड़ पर पत्थर फेंक दिया। हालात कुछ इस तरह बिगड़े कि वहां पत्थरबाज़ी शुरू हो गई। स्थिति का लाभ उठाते हुए उस भीड़ ने स्थानीय आबादी के मुस्लिम पुरुषों की पिटाई शुरू कर दी और आसपास के क्षेत्र में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। पुलिस ने इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मूकदर्शक की भूमिका निभाई।

परिणामस्वरूप, उस क्षेत्र के 40 से अधिक निवासियों पर एफ़आईआर दर्ज हुई जबकि हिंसक भीड़ जुलूस लेकर आगे बढ़ गई। एडवोकेट हाशमी ने कहा, “घटना के जवाब में पुलिस ने उस क्षेत्र के 40 स्थानीय लोगों के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की, जिन्हें उस बवाल में उकसाया गया था। उकसाने का काम उस हिंसक भीड़ ने किया और पुलिस की पूरी कारवाई में पीड़ितों को परेशान किया गया और उन्हीं को बवाल का ज़िम्मेदार बनाकर दोषी ठहराया गया।” उन्होंने कहा कि पुलिस की एकतरफ़ा कारवाई घोर अतार्किक और मनमानी है। इसी तरह के पैटर्न का इस्तेमाल चंदनखेड़ी (इंदौर) और दोसाना (मंदसौर) के गांवों में किया गया था। वहां भी राम मंदिर निर्माण के लिए धन जुटाने के लिए निकाली गई एक रैली के बाद हिंसा हुई।

एडवोकेट शोएब इनामदार ने अखबारों से बात करते हुए कहा कि रैलियों को जानबूझकर मुस्लिम क्षेत्रों में ले जाया गया, जहां भीड़ द्वारा बेहद अपमानजनक, सांप्रदायिक और भड़काऊ नारे लगाए गए। इसके बाद बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसमें भीड़ द्वारा विशेष रूप से मस्जिदों और मुसलमानों की संपत्तियों को निशाना बनाया गया। कई स्थानों पर उन्होंने मुसलमानों के घरों और वाहनों को भी नुक़सान पहुंचाया।

एडवोकेट इनामदार नें यह भी बताया कि यह जुलूस एक सुनियोजित मक़सद के साथ निकाला गया जिसमें भारी संख्या में लोग तेज़ धार वाले घातक हथियारों के साथ एकत्र हुए और स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय को उकसाने के लिए अपमानजनक तरीक़े से नारेबाज़ी की। जब स्थानीय लोगों नें इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो भीड़ नें नियोजित तरीक़े से उस गांव के आखिरी घर को निशान बनाया जो खुला हुआ था।

इन घटनाओं के परिणामस्वरूप कई निर्दोष मुसलमान न सिर्फ़ घायल हुए हैं बल्कि उनपर गंभीर मानसिक प्रभाव भी पड़ा है। क़ानून और व्यवस्था के हितधारकों ने इन घटनाओं पर चुप्पी साध ली है। साफ़ है कि इस हिंसा को मध्य प्रदेश सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है।

हिन्दी अनुवाद: हुदा नाज़

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