कविता-मजदूर

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जो बनाते हैं सबका आशियाना
जो बीनते हैं रंग बिरंगे कपड़े
तैयार करते हैं फसल
आज मजबूर हैं
कोरोना महामारी ने
कर दिया है बेबस, लाचार
कि पैदल ही चल पड़े घरों की ओर
जेब मे कुछ सिक्के
गमछे में कुछ रोटियां
रेल बन्द हैं तो
उसी पटरियों को बना लिया है रास्ता
आज सरकारें हो गयी है
इतनी लाचार
बेबस, और संवेदनहीन
कि इनको घर भी पहुंचा नहीं पा रही
घर पहुंचाती हैं तो उनकी लाशें
जो रेल के चक्कों से कट चुके हैं
और रोटियां पड़ी हुई हैं
पटरियों पर
वे मजदूर जहां गए हैं
वहां इन रोटियों की जरूरत नहीं
सरकारें मुआवजा की घोषणा कर
अपना पल्ला झाड़ लेती है
लेकिन सवाल है कि
रेल की पटरियों पर
ये मजदूर,
क्यों चलने को हुए मजबूर
इनकी मौत का जिम्मेदार कौन?

ज़फर अहमद
मधेपुरा, बिहार

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