आतंक और तंत्र के साज़िशी गठजोड़ से शहीद हुवे करकरे के बारे में प्रज्ञा ठाकुर का बयान देश के वीरों और लोकतंत्र की आत्मा को अपमानित करता है!

एक सच्चे देशभक्त के लिए जो एक कथित आतंकी हमले, आतंक और तंत्र के गठजोड़ की साजिश से शहीद हो गया उसके बारे में प्रज्ञा ठाकुर का यह बयान किस हद तक देश के वीरों और लोकतंत्र की आत्मा को अपमानित करता है जनता को सोचना चाहिए.

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हम सुनते आए है महराष्ट्र का एक शहर मालेगांव जो अपने किले के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन 2008 के बाद इसकी सुर्खियो में बदलाओ आया, क्या बदलाओ आया?? क्यों बदलाओ आया?? आइए एक नज़र इन बदलावों पर डालते है, जानकारी के मुताबिक 29 सितम्बर 2008 को खौफनाक बम ब्लास्ट हुआ था. उस धमाके में 7 बेगुनाह लोगों की जान चली गई थी, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. ये धमाका रमजान के माह में उस वक्त किया गया था, जब मुस्लिम समुदाय के बहुत सारे लोग नमाज पढ़ने जा रहे थे. इस धमाके के पीछे कट्टरपंथी हिंदू संगठनों का हाथ होने की बात सामने आई थी. तमाम तरीके के जांच और अटकलों के बाद इस हमलें के पीछे छिपे 3 मुख्य आरोपी सामने आए. उन्हीं आरोपियों में से एक महिला चेहरा भी सामने आया ये कोई और महिला नहीं है, बल्कि हाल ही में भाजपा में शामिल हुई साध्वी प्रज्ञा ठाकुर है, जो मध्यप्रदेश की भोपाल के भाजपा सीट से अपना चुनाव लड़ने जा रही है. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर है जिसके ख़िलाफ़ देश के जाबाज़ ऑफिसर मुंबई एन्टी टेररिस्ट स्कुआरड के प्रमुख हेमंत करकरे ने मालेगांव में है हुए आतंकी हमले से जुड़े सारे पुख्ता दस्तावेज और ठोस सुबूत जुटा लिए थे और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के साथ साथ तीन और लोग आरोपी साबित हुए. लेकिन हेमंत करकरे 26/11 को मुम्बई के आतंकी हमले में शहीद कर दिए जाते हैं.  सवाल अब यहाँ फिर से खड़ा होता है, क्या करकरे की मौत वाकई में आतंकी हमले में हुई थी या फिर एक सोची समझी हत्या थी??

हेमंत करकरे जब अपने घर से निकले थे तब वो बुलेट प्रूफ जैकेट के साथ गए थे, मगर ये कैसा बचाओ था कि एक बुलेट प्रूफ जैकेट आतंकी की गोलियों का सामना न कर सकी या फिर कुछ और ही मसला है. भारत के कई पब्लिक इंटेलेक्चुअल के मुताबिक हेमंत करकरे की मौत एक साजिश थी ये वो साजिश थी जिसमे 7 लोगों की मौत का इंसाफ नहीं बल्कि साध्वी जैसे देश के तीन आतंकी को बचाने का मकसद था, इस बीच शिव सेना से लेकर भाजपा तक सभी साध्वी को बचाने में लगे थे, खैर अब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जेल से बाहर चुनावी मैदान में है, मैं एक सवाल देश के लोगों से करना चाहूंगा क्या आप हेमंत करकरे के साथ देंगे या एक आतंकवादी का।

अब प्रज्ञा ठाकुर, शहीद हेमंत करकरे के बारे में कह रही है कि उन्होंने करकरे को श्राप दिया था कि “तुम्हारा सर्वनाश होगा, मैंने उन्हें बताया था कि तुम्हारा पूरा वंश खत्म हो जाएगा वो आगे कहती है कि हेमंत करकरे ने कहा कि मैं कुछ भी करूंगा लेकिन सबूत लाउंगा और साध्वी को नहीं छोड़ूंगा ये उसकी कुटिलता थी, ये देशद्रोह था धर्म का विरोध था”

बहुत कम लोगो को जानकारी होगी कि हेमंत करकरे 1982 बैच के आईपीएस अधिकारी थे उन्होंने रॉ के लिए ऑस्ट्रिया में सात साल तक अपनी सेवाएँ दी थी इसके बाद वह महाराष्ट्र में एटीएस प्रमुख बने. जब मुंबई के हमले में उनकी हत्या हुई तब वह मालेगांव में हुए बम विस्फोट की गुत्थी सुलझाने में जुटे हुए थे जिसमे प्रज्ञा ठाकुर मुख्य आरोपी थीं. स्वभाव से बेहद शांत और संयमी करकरे पुलिस महकमे में अपनी ईमानदारी और निष्ठा के लिए जाने जाते थे यह पहली बार था कि किसी आतंकी हमले में इतने बड़े अधिकारी की हत्या हुई हो इस बहादुरी के लिए हेमंत करकरे को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. लोगो के मन मे भी हेमंत करकरे के प्रति बहुत सम्मान का भाव रहा, मुंबई के गोरेगांव में ओर पुणे में भी करकरे के नाम पर एक पार्क बनाया गया, 2010 में मालेगांव ओर पटना में एक सड़क का नाम भी हेमंत करकरे के ऊपर रखा गया है। चेन्नई की एक संस्था भी हेमंत करकरे के नाम पर पुरस्कार देती है। हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने भी अपनी मौत के बाद शरीर के सारे अंग दान दे दिये थे.

एक सच्चे देशभक्त के लिए जो एक कथित आतंकी हमले, आतंक और तंत्र के गठजोड़ की साजिश से शहीद हो गया उसके बारे में प्रज्ञा ठाकुर का यह बयान किस हद तक देश के वीरों और लोकतंत्र की आत्मा को अपमानित करता है जनता को सोचना चाहिए.

लेखक: बिलाल नदीम (छात्र, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली)

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