[दर्पण] कितना अच्छा होता
कितना अच्छा होता,
निकाल लेते सारा पोटेशियम नाइट्रेट बारूद से,
और ज़्यादा बना सकते थे उर्वरक,
पिघला देते हथियारों का सारा लोहा,
और अधिक बना सकते थे हल,
निकाल...
[कविता] तब क़लम उठानी पड़ती है
मानवता जब दम तोड़ रही हो, सांसें साथ छोड़ रही हों,
तब क़लम उठानी पड़ती है, क्रांति की मशाल जलानी पड़ती है।
देश के सारे मुद्दे...
कविता-मजदूर
जो बनाते हैं सबका आशियाना
जो बीनते हैं रंग बिरंगे कपड़े
तैयार करते हैं फसल
आज मजबूर हैं
कोरोना महामारी ने
कर दिया है बेबस, लाचार
कि पैदल ही चल...
दर्पण
टीवी ऑन करने पर
बहुत सा शोर टकराता है
कानों से ।
कोई एक खेल खेला जा रहा है ।
इधर एक एंकर सीटी बजाता है
उधर आरोप प्रत्यारोप...
[कविता] मेरे जूते को बचाकर रखना
मेरे जूते को बचाकर रखना,संभाल कर रखना इसे कल के लिए -मलबे के बीच दम तोड़ रहे कल के लिए।
मेरे जूते को बचाकर रखना,ग़म...
Covid19- “टूटेंगे बंधन और हम फिर आज़ाद होंगे” कविता
टप-टप गिर रहा था आज बूंदों के रूप में जो आसमां से
आज इन बूंदों में वो पहले सा सुकून कहाँ है?
आज वो बच्चे कहाँ...
चंद उम्मीद की रोटियां थी थैले में लेकिन भूख लगने से पहले ही मौत...
रोटी से भूख मिटाएंगे
हाँ सही सुना आप ने,रोटी से भूख मिटाएंगे
सोचा था कि रोटी से भूख मिट जाएगी तो
ज़िन्दगी के सफर को आगे बढ़ाएगे
स्वार्थ...
[कविता] पानी पर लिखा जाता है इतिहास
“और हमने पानी से जीवन को पैदा किया”1
बहती नदियां सभ्यताओं की जननी हुईं,
और पानी में दफ़्न पुराने शहर,
आदमी के अस्तित्व के रहस्यों के संग्रह...
कविता-इंसान…
जिसमें होता है विवेक
बुद्धि, बोलने की क्षमता
सोचने की शक्ति।
क्या वाकई वह अलग है
जानवर से?
नहीं,
विवेक मर गया है
उसका!
बुद्धि का ज्यादा और
गलत इस्तेमाल करने लगा है...
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती रंगवा में भंगवा परल हो बटोहिया !
Dhruv Gupt
लोकभाषा भोजपुरी की साहित्य-संपदा की जब चर्चा होती है तो सबसे पहले जो नाम सामने आता है, वह है स्व भिखारी ठाकुर का।...