[कविता] पानी पर लिखा जाता है इतिहास

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“और हमने पानी से जीवन को पैदा किया”1

बहती नदियां सभ्यताओं की जननी हुईं,

और पानी में दफ़्न पुराने शहर,

आदमी के अस्तित्व के रहस्यों के संग्रह बने।

पानी पर नक़्श है अनंत की आत्मकथा

धरती का आंसू और आसमान का पसीना,

सुबह-शाम पानी पर बहता है सूरज का रक्त

और रात उतर आते हैं पानी पर लाखों सितारे।

नदियों के तट पर बनती बिगड़ती रही हैं

अमर प्रेम कथाएं, और महान युद्ध

नदियों किनारे बहाते रहे हैं ख़ून के समंदर,

पानी की कोख में जमा हैं फेंकी हुई किताबों के बाक़ियात।

पानी को ही चीर कर निकला था मूसा का गिरोह

और पानी में ही मिट गया था एक फ़िरऔन,

दजला और फ़ुरात के दो-आबे में उठा था पहला आदमी

और इसी पानी पर बहती जा रही है आदमी की देह।

लेकिन फिर इसी पानी से उगेगा एक वृक्ष

फिर इसी पानी से उठेगा एक मेघ

फिर इसी पानी पर तैरेगी एक नांव

फिर इसी पानी में डूबेगा तुम्हारा अहंकार।

1 • क़ुरआन, 21:30

कवि – उसामा हमीद

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