यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, मुस्लिम आबादी और चार शादियों का प्रॉपगैंडा

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‘नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे’ की रिपोर्ट यह बताती है कि एक से ज़्यादा शादियां करने का रिवाज सब से ज़्यादा ईसाईयों में (2.1%) है। मुसलमानों में 1.9%, हिंदुओं में 1.3% और अन्य कम्युनिटीज़ में 1.6% है। इसमें नोट करने की बात यह है कि मुसलमानों में यह प्रतिशत उस स्थिति में है जब उनके यहां एक से ज़्यादा शादियों की क़ानूनी रूप से अनुमति है, जबकि दूसरी कम्युनिटीज़ में क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित है।

मणिपुर हमारी मानवीय संवेदना पर सवाल है

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क्या आज के इस आधुनिक समाज में, जहां महिला अधिकारों की बात की जाती है, जहां सरकार ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा देती है, वहां महिलाओं का कोई मोल नहीं कि इस भयप्रद स्थिति में उनका साथ दिया जाए और आरोपियों को गिरफ़्तार कर के सज़ा दी जाए?

‘भगवा लव ट्रैप’ की हक़ीक़त क्या है?

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भगवा लव ट्रैप कई सालों से बार-बार चर्चा में रहा है और मुसलमानों में असंतोष पैदा करता रहा है, लेकिन इस बार इसका सहारा लेकर बड़े पैमाने पर असंतोषजनक स्थिति पैदा की गई‌। हिंदुस्तान के मिले-जुले समाज में पहले भी इस तरह की शादियां होती रही हैं, लेकिन इस बार ऐसा प्रतीत हुआ (या कराया गया) कि संघ परिवार साज़िश के तहत इस तरह की शादियां करवा रहा है।

गीता प्रेस ने प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी और सांप्रदायिक ‘हिन्दू’ का निर्माण किया है

हिंदी भाषी क्षेत्र में आरएसएस-भाजपा की सफलता में गीता प्रेस का योगदान हम भले न पहचानें, आरएसएस-भाजपा अवश्य पहचानती है और इसी अतुलनीय योगदान के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस को दिया जा रहा है। गांधी शांति पुरस्कार इसलिए कि गांधी के नाम के आवरण में गीता प्रेस की प्रतिगामी भूमिका को ढका जा सके और गीता प्रेस को गांधी से जोड़कर एक बार फिर से गांधी को सनातनी हिंदू सिद्ध किया जा सके।

गीता प्रेस को ‘शांति’ पुरस्कार और ‘आल्ट-राईख’ की याद

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2018 में कारवाँ पत्रिका ने यह लेख प्रकाशित किया था। कैरोल शैफ़र ने लिखा था और इसके प्रकाशन तथा लिखे जाने की तैयारी में दसियों वर्ष की मेहनत है। यह आलेख मूलतः ‘आर्कटोस’ नामक प्रकाशन गृह पर है। इस प्रकाशन के संस्थापक ‘डेनियल फ़्रायबर्ग’ और अन्य सदस्यों की विचारधारा ने दक़ियानूसी और नफ़रत फैलाने वाली किताबों का जो कारोबार खड़ा किया है उसे पढ़ते हुए आप सकते में आ जाएँगे।

हिंदुस्तानी समाज में एक आदर्श गांव की कल्पना

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हिंदुस्तानी समाज में एक आदर्श गांव की कल्पना सैय्यद अज़हरुद्दीन इंसान एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला जीवन नहीं गुज़ार सकता और न ही यह...

नफ़रत के ख़िलाफ़ हिंदू समाज को भी आना होगा मुसलमानों के साथ

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हिंसा करने वाले तत्व जिस चीज़ को अपने लिए ताक़त बना रहे हैं और अपराध करके जहां जा कर छुप रहे हैं, वह धार्मिक और सामाजिक आश्रय ही है। ऐसे में उस धर्म और समाज के सम्मानित, शांतिप्रिय और सौहार्द में विश्वास रखने वाले लोगों का कर्त्तव्य है कि वे अपनी चुप्पी तोड़ते हुए धार्मिक और सामाजिक मंचों पर इस तरह की घटनाओं और इन घटनाओं को अंजाम देने वालों की न सिर्फ़ निंदा करें बल्कि जो पीड़ित हैं उन्हें न्याय दिलाने का आह्वान भी करें।

ईरान, हिजाब और चुनने की आजादी- II

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इस्लाम, हिजाब और आधुनिकता के साथ इसका टकरावबुर्का या हिजाब शब्द कुरान या पैगंबर की बातों (हदीस) में अंकित नहीं है। मदीना में एक...

पर्यावरण क्षरण और आधुनिकता का संकट

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लेखक : अब्दुल सुहैब कुद्दुसअंग्रेज़ी से अनुवाद : उसामा हमीद "जूरी एक फैसले पर पहुंच गई है - और यह भयावह है। IPCC की यह...

हिंसा और अहिंसा पर पुनर्विचार

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गुप्त हिंसा का एक उदाहरण आधुनिक शहरी क्षेत्रों का है, जिसमें झुग्गी-झोपड़ियों और अस्थायी बस्तियों के साथ-साथ ऊँची-ऊँची इमारतें और गेटेड हाउसिंग सोसाइटी मौजूद...