मेरठ में CAA के खिलाफ हुये प्रदर्शन में हुई हिंसा की विस्तृत रिपोर्ट!

सलाहुद्दीन की पत्नी भी अपंग हैं और अलीम अपने भाई, भाई की पत्नी और उनके 12, 10 और 7 साल के तीन छोटे बच्चों वाले घर के अकेले सदस्य थे. सलाउद्दीन अब कठिनाई का सामना कर रहे है. व्यावहारिक रूप से अपना परिवार चलाने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि परिवार को अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है...

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5 जनवरी को एपीसीआर की डेलिगेशन उत्तर प्रदेश के ही एक शहर मेरठ भी गयी। मेरठ अपना अलग ऐतिहासिक महत्व रखता है देश की आज़ादी और सांप्रदायिक टकराव का भी विचित्र इतिहास रहा है, अब पुलिस और सीएए के विरोध में खड़े प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष का केंद्र भी बना। उस शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद, शहर के बीचों-बीच बसे सभी मुस्लिम इलाकों, फिरोज नगर, ट्यूबवेल तिराहा और कोतवाली में सीएए के विरोध में मार्च शुरू हुआ। मार्च करने वाले भुमिया का पुल क्षेत्र से प्रह्लाद नगर की ओर जा रहे थे। ये क्षेत्र दो किलोमीटर के दायरे में हैं। प्रह्लाद नगर के लिसाड़ी गेट पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, लगभग बारह सौ प्रदर्शनकारियों की भीड़, “सीएए के खिलाफ नारेबाजी कर रही थी, अपमानजनक व्यवहार कर रही थी” साथ हिंसा की धमकी दे रही थी। इस पर कोई एक राय नहीं है कि किसने या क्यों झड़प शुरू हुई। लेकिन करीब 2.30 बजे पुलिस ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए क्रूर कार्रवाई की जो दो घंटे तक चली।
इन दो घंटों में पांच लोग मारे गए और एक अन्य व्यक्ति की गोली लगने के बाद 26 दिसंबर को मौत हो गई। छठा व्यक्ति पश्चिमी बंगाल का बताया जा रहा है।
हम मारे गए पांच लोगों के परिवारों, दोस्तों और पड़ोसियों से मिले। मारे गए सभी लोग बेहद गरीब परिवारों से थे और परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे। वे विरोध प्रदर्शनों में शामिल नहीं थे।
*मृतक के परिवारो से मुलाक़ात*
1. जहीर (46)का घर लिसाड़ी गेट की जाली वाली गली में है। वह दुधारु प​शुओं का चारा बेचते थे। उस दिन, उन्होंने किसी शादी में जाने की तैयारी में थे। उनकी पत्नी और बेटी पहले से ही शादी वाली जगह पहुंच गईं थीं। जबकि उनके कुछ पड़ोसियों ने बताया कि चारों तरफ झड़पों की खबरों के बाद जहीर अपनी दुकान बंद कर घर जाने लगे। कुछ लोगों ने कहा कि काम से कुछ देर छुट्टी लेकर वह बाहर गए थे। उन्होंने कहा कि शाम 4.30 बजे, जब जहीर एक प्रोविजन स्टोर के बाहर खड़े होकर बीड़ी पी रहे थे, पुलिस ने सरेआम उन्हें गोली मार दी।
हमने जहीर के भाई मोहम्मद शाहिद से बात की, उन्होंने बताया कि पुलिस का कोई भी आदमी सामने नहीं आया है, कोई भी यहां जांच करने नहीं आया है।”
मोहसिन (26) गुलजार-ए-इब्राहिम नामक इलाके में रहते थे, जो जहीर के घर से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर है। 20 दिसंबर को उनकी भी मौत हो गई थी। उन लोगों ने हमें बताया कि पुलिस इस इलाके में व्यापक रूप से दबिश दे रही थी और अपने साथ लाई सीढ़ियों के जरिए बालकनी के रास्ते घरों में घुसकर युवकों को उठा रही थी। इसके जवाब में, इन क्षेत्रों के पुरुषों ने घरों, गली-मोहल्लों और क्रॉसिंग के बाहर छोटे समूहों में इकट्ठा होना शुरू कर दिया था। झड़प वाले दिन के बाद से वे हर रात ऐसा कर रहे थे। उनमें से एक ने हमें बताया कि उन सभी को अपनी दिहाड़ी गंवानी पड़ रही है क्योंकि उनकी रातें अपने इलाकों की रखवाली में बीत रही हैं।
मोहसिन चार भाइयों में सबसे छोटे थे। उनकी दो बहनें भी हैं। वह अपनी बीमार मां, पत्नी और अपने दो छोटे बच्चों के साथ रहते थे। उनका एक चार साल का और एक छह महीने का बच्चा है। घर का सारा खर्च उन्हीं के जिम्मे था। मोहसिन दूध बेचने और कबाड़ी का काम करते थे और मौसमी तौर पर हाथ ठेले पर छोटा-मोटा सामान बेचा करते थे। “जिस समय उसे गोली मारी गई, वह गायों के लिए चारा लेने गया था। दुकान पर पहुंचने से पहले ही, पुलिस ने उस पर गोलियां चला दी”
हमने मोहसिन के भाई मोहम्मद इमरान से भी बात की। इमरान ने यह भी कहा कि लगभग 3 बजे मोहसिन चारा लाने के लिए जा रहे थे। शाम 4 बजे, इमरान को फोन आया कि उसके भाई का शव उसके घर के पास एक गली में रिक्शे पर पड़ा है। समुदाय के ही किसी लड़के ने इस उम्मीद में कि शव को उसके परिवार तक पहुंचा सके मोहसिन के शव को सड़क से उठाया था। इमरान गली में पहुंचे, उन्होंने अपने भाई को पाया और अपने घर से लगभग चार किलोमीटर दूर हापुड़ रोड पर स्थित संतोष अस्पताल ले गए। इमरान ने कहा कि अस्पताल ने उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया। शाम 5 बजे इमरान मोहसिन को सरकारी अस्पताल लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में ले जा सके। यह अस्पताल लिसाड़ी गेट से लगभग पांच किलोमीटर दूर है। वहां पहुंचने पर डॉक्टरों ने मोहसिन को मृत घोषित कर दिया गया।
तभी उनका पड़ोसी हमारी बात बीच मे काटते हुये कहता है कि “मोहसिन के सीने के बीचों बीच गोली मारी गयी थी ऐसा क्यों? क्या वो आतंकवादी था?”
3. मौहम्मद आसिफ (33), पेशे से मैकेनिक थे , मौहम्मद आसिफ के परिवार में पांच लोग हैं, उनकी पत्नी, दस और तीन साल की दो बेटियां और छह साल का एक बेटा. वह परिवार में अकेले कमाने वाले थे। घंटे वाली गली में अपने घर के पास बैठे थे। उनके साथ उनके चचेरे भाई मोहम्मद राशिद और उनके बहनोई मोहम्मद इमरान भी थे। राशिद ने हमे बताया कि उन्होंने अचानक पचास से साठ पुलिस कर्मियों को घबराए हुए लोगों का पीछा करते हुए देखा। भीड़ में से कई लोग आसिफ की गली में भी पहुंचे। तभी अचानक पुलिस कर्मियों ने भाग रहे लोगों पर अंधाधुंध तरीके से गोली चलाना शुरू कर दिया।

तीनों जान बचाने के लिए वहां से भागे। राशिद और इमरान को तो सुरक्षित ठिकाना मिल गया, लेकिन आसिफ गोली की चपेट में आ गए। पांच मिनट बाद, जैसे ही पुलिस की टुकड़ी आगे बढ़ी, आसिफ के परिजन वापस लौटे, उन्हें उठाया, रिक्शा पर बिठाया और पास के फलाह-ए-आम अस्पताल ले गए। अस्पताल ने उन्हें इस आधार पर भर्ती करने से इनकार कर दिया कि उसके पास ऐसे गंभीर मामालों में देखभाल की बेहतर सुविधाएं नहीं थीं। अगले आधे घंटे में, राशिद और मोहम्मद इमरान ने आसिफ को लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज ले जाने की कोशिश की। अस्पताल पहुंचने पर उन्हें मालूम पड़ा कि आसिफ को खून की जरूरत है। राशिद और इमरान रक्तदान करने के लिए फिरोज नगर वापस आ गए। वह आधा रास्ता भी नहीं पहुंचे होंगे कि उन्हें आसिफ की मौत की खबर मिली।
4. 20 वर्षीय ई-रिक्शा चालक मोहम्मद आसिफ घर के एकमात्र कामकाजी सदस्य थे पांच लोगों के परिवार में उनके पिता ईद उल हसन, उनकी मां और दो छोटे भाई-बहन हैं. पिता हसन फेफड़े के संक्रमण से पीड़ित हैं और अब काम नहीं कर सकते। उस दिन, आसिफ अपना रिक्शा चला रहे थे कि उनके परिवार ने रैली के हिंसक हो जाने के बारे में खबर सुनी। हसन बेहद चिंतित थे, उन्होंने आसिफ को फोन किया। आसिफ ने जवाब दिया कि वह घर आ रहे हैं। एक घंटे बाद भी जब आसिफ नहीं आए तो हसन ने याद किया कि उन्होंने बदहवास होकर अपने बेटे को फोन करना शुरू कर दिया था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

कुछ घंटों बाद, हसन ने एक अफवाह सुनी कि इलाके के दो लड़के मर गए थे। हसन को बताया गया कि लड़कों में से एक के पास दिल्ली का पहचान पत्र था। पहले से ही परेशान हसन अब और घबरा गए। आसिफ कुछ साल पहले दिल्ली के शाहदरा इलाके में रहते थे जहाँ वह चाय का टपली चलाया करते थे और 6 वर्ष पूर्व ही वह मेरठ में वापिस आये थे इसलिए उनके पहचान पत्र में दिल्ली का पता था। इस बीच, मौहल्ले के ही एक किशोर से उन्हें आसिफ के बारे में मालूम हुआ और उसी रात लगभग 10 बजे आसिफ के परिवार को इसके बारे में बताया।
पोस्टमार्टम करवाने के बाद शाम को 5.30 बजे परिजनों को शव सौंप दिया गया। शाम 7.30 बजे तक आसिफ को स्थानीय अंसार ​कब्रिस्तान में दफनाया दिया गया क्योंकि पुलिस ने आसिफ के परिवार को जल्द से जल्द कफन-दफन करने का निर्देश दिया था। इतनी जल्दबाजी में कफन-दफन करना, जनाजे के जुलूस को रोकना और पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने में देरी करना, ये सभी पुलिस निर्देशों में एक सामान्य सूत्र था।
5. उस रात अहमद नगर में मरने वाले दूसरे व्यक्ति अलीम था। वह गली नंबर 9 में रहते था और पास के कोतवाली के एक रेस्तरां में रसोइया था अलीम के भाई सलाउद्दीन अंसारी ने हमें बताया कि दोपहर 2 बजे, जब झड़पें हुईं, तो दुकानें बंद करने के लिए एक संदेश भेजा। इसके बाद, अलीम जिस रेस्तरां में काम करते थे उसे भी बंद कर दिया गया। कुछ स्थानीय लोगों ने सलाहुद्दीन को बताया कि उन्होंने अलीम को दुकान बंद करते और घर के लिए निकलते देखा था। हालांकि, वह कभी घर नहीं पहुंचे। लगभग 4 बजे सलाउद्दीन की एक चाची ने उन्हें फोन किया और कहा कि हो सकता है कि अलीम की मौत हो गई हो, लेकिन इस बात की तस्दीक करने का कोई तरीका नहीं था। सलाउद्दीन अलीम को फोन करने की कोशिश में वापस चले गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इस बीच, पुलिस की बर्बरता की खबर से शहर भर में दहशत फैल गई थी। सलाउद्दीन और एक अन्य रिश्तेदार अलीम या उसके शरीर की खोज करने के बजाये घर पर रहने के लिए मजबूर थे। रात करीब 10.30 बजे अहमद नगर निवासी ने उन्हें एक वीडियो दिखाया। वीडियो में अलीम का शव जमीन पर पड़ा था, सिर पर गोली लगने से कनपटी का मांस फट गया था। हालांकि, परिवार के लोग अभी भी अपने घर में रहे क्योंकि उनके भीतर खौफ इस कदर बैठ गया था कि लगा कि अगर वह घर से बाहर निकले तो उन्हें भी गोली मार दी जाएगी।

आधी रात के कुछ बाद, सलाउद्दीन, जो अपंग हैं, अब और सहन नहीं कर सके और अस्पताल जाने के लिए निकल गए। अस्पताल में सलाहुद्दीन और एक रिश्तेदार को शवगृह जाने को कहा गया। मुर्दाघर प्रशासन ने उन्हें अलीम की जगह आसिफ की लाश दिखाई और कहा कि मुर्दाघर में कोई और लाश नहीं है। हालांकि, यह बात झूठ निकली। अगले छह से आठ घंटे तक, अस्पताल प्रशासन और स्थानीय पुलिस ने सलाहुद्दीन की मदद करने से इनकार कर दिया।

सलाहुद्दीन और उनके रिश्तेदार शवगृह से वापस अस्पताल गए और तब उन्हें आपातकालीन वार्ड में जाने के लिए कहा गया। वहां भी किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की। सलाउद्दीन अस्पताल के रिसेप्शन पर वापस आ गए और सभी कर्मचारियों और पुलिस कर्मियों से मदद की गुहार करने लगे। आखिरकार, उन्हें बताया गया कि अलीम के शव को अस्पताल लाया गया था, लेकिन लिसाड़ी गेट पुलिस स्टेशन के आगे भेज दिया गया। सलाउद्दीन ने कहा, “उन्होंने हमें बताया कि लिसाड़ी गेट एसएचओ से तय कर लो कि क्या शव को मुजफ्फरनगर या दिल्ली भेजा गया है.” उन्होंने कहा, “इसके बाद मैंने अपने घर फोन किया और अपने रिश्तेदारों से कहा कि लिसाड़ी गेट एसएचओ से पूछो कि हमें अपने भाई की लाश नहीं मिल पा रही है, क्या उन्होंने इसे किसी दूसरी जगह तो नहीं भेज दिया है,” उन्होंने बताया. उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस ने परिवार को स्टेशन से बाहर धकेल दिया और ”वे हमारे ऊपर अपनी लाठियां लहरा रहे थे. क्या कानून ऐसे हमारी मदद करता है? ”

परेशान और घबराए हुए सलाहुद्दीन ने आखिरकार समाजवादी पार्टी के स्थानीय विधायक रफीक अंसारी को फोन किया। विधायक के हस्तक्षेप के बाद, शवगृह ने स्वीकार किया कि उनके पास अलीम का शरीर है। “मेरे भाई का पोस्टमार्टम रात में ही हो गया था और उसके शरीर को लावारिस के रूप में चिह्नित किया गया था लेकिन उन्होंने हमें नहीं बताया,
हम वहीं बैठे रहे … कभी पंचनामा भरते, कभी ये फॉर्म भरते, कभी वो।” सलाहुद्दीन को यकीन हो गया कि पुलिस शव को सौंपना नहीं चाहती। “जिस तरह से मेरे भाई को गोली मारी गई थी, उसे देखो। उसके सिर पर निशाना लगा कर गोली मारी गई थी। उसके दिमाग पर गोली मारी गई थी। वे उसे छिपाना चाहते थे,” उन्होंने कहा।

उस दिन शाम 5 बजे तक अलीम का शव परिवार को सौंप दिया गया और उसे भी अंसार कब्रिस्तान में शाम 7.30 बजे तक जल्दबाजी में दफना दिया गया। लेकिन इससे पहले स्थानीय पुलिस ने परिवार से तय करवा लिया था कि अलीम को उस कब्रिस्तान में नहीं दफनाया जाएगा जहां आमतौर पर दफनाया जाता है। अगर परिवार यह व्यवस्था नहीं कर पाता, तो पुलिस ने आश्वासन लिया कि शव घर ले जाते या अंतिम संस्कार के लिए बाहर जाते वक्त उनके इलाके में कोई गड़बड़ी नहीं होगी। सलाहुद्दीन ने हमे बताया कि वह पुलिस की शर्तों से सहमत हो गए और यहां तक ​​कि उन्होंने अलीम के अंतिम संस्कार के दौरान क्षेत्र में किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी की स्थिति में पूरी जिम्मेदारी लेने वाले दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए। उसके पास दस्तावेज की कोई प्रति नहीं थी।

सलाहुद्दीन की पत्नी भी अपंग हैं और अलीम अपने भाई, भाई की पत्नी और उनके 12, 10 और 7 साल के तीन छोटे बच्चों वाले घर के अकेले सदस्य थे. सलाउद्दीन अब कठिनाई का सामना कर रहे है. व्यावहारिक रूप से अपना परिवार चलाने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि परिवार को अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है.

मैंने जिन स्थानीय लोगों से बात की, उनमें से कइयों के मुताबिक, पुलिस की कार्रवाई से घायल हुए कई नौजवानों और लड़कों ने पुलिस द्वारा बदला लिए जाने, प्रताड़ित किए जाने या जेल भेज दिए जाने के डर से मेडिकल सहायता लेने या मीडिया से बात करने से परहेज किया. 20 दिसंबर की झड़पों के बाद से चल रही स्थानीय पुलिस की शातिर कार्रवाई ने चिकित्सा या कानूनी मदद लेने की उनकी क्षमता पर बहुत हद तक अंकुश लगा दिया है. मेरठ के मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे लिसाड़ी गेट, हापुड़ रोड, कोतवाली, सदर बाजार, राशिद नगर और किदवई नगर में पुलिस की छापेमारी, निवारक निरोधों और अवैध बंदियों की बात ने निवासियों को चुप करा दिया है।
रात के कुछ बाद, सलाउद्दीन, जो अपंग हैं, अब और सहन नहीं कर सके और अस्पताल जाने के लिए निकल गए। अस्पताल में सलाहुद्दीन और एक रिश्तेदार को शवगृह जाने को कहा गया। मुर्दाघर प्रशासन ने उन्हें अलीम की जगह आसिफ की लाश दिखाई और कहा कि मुर्दाघर में कोई और लाश नहीं है। हालांकि, यह बात झूठ निकली। अगले छह से आठ घंटे तक, अस्पताल प्रशासन और स्थानीय पुलिस ने सलाहुद्दीन की मदद करने से इनकार कर दिया।
6. छठः व्यक्ति आसिफ जिसकी भी पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी वो एक दिन पहले ही अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ आया था गोली लगने के बाद उसे मेडिकल ले गए बाद में उसे दिल्ली रेफर कर दिया गया जहां उसकी 26 दिसम्बर को मौत हो गयी।
*कुर्की का नोटिस, FIR व गिरफ्तारी*
148 लोग है जिन को चिन्हित कर नोटिस जारी किया गया है। इन लोगो से निजी व सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई की जायेगी। अभी तक जिला प्रशासन की तरफ से 40 लाख के नुकसान का आकलन कर के नोटिस भेजा गया है।
मेरठ जिले में 13 FIR हुई है जिसमे 148 नामजद और 900 से अधिक अज्ञात को भा. द. सं. 1860 की धारा 147, 148, 149, 307, 186, 188 323, 333, 336, 337, 341, 353, 427, 436, 504, 120-B आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1932 की धारा 7 सार्वजनिक संपत्ति नुकसान अधिनियम 1984 की धारा 3 व 4 के तहत पंजीकृत किया गया है।
मेरठ में हिंसा भड़काने के आरोप में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के 2 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने SDPI के प्रदेश अध्यक्ष नूर हसन और मुईद हाशमी को व पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के 2 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया।
लगभग 27 से लोगो की गिरफ्तारी हो चुकी है जबकि 12 व्यक्तियों को रासुका के तहत गिरफ्तार किया गया है।
*पुलिस की भूमिका*
हालाँकि पुलिस का दावा है कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर एक भी गोली नहीं चलाई गई” और “प्रदर्शनकारी आपस की गोलीबारी में मारे गए।” फुटेज इस बात को सही साबित करने के लिए अपलोड की गई थी कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग करने की पुलिसिया कार्रवाई न्यायसंगत थी।
लेकिन वकील, कार्यकर्ता, मानवाधिकार समूह, फैक्ट फाइडिंग टीमें, नागरिक समूह और जमीनी रिपोर्टें इन बातों को धता बताती हैं। इन रिपोर्ट्स ने सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों में पुलिस द्वारा अत्यधिक और अंधाधुंध बल प्रयोग और मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को खास तौर पर निशाना बनाए जाने पर रोशनी डाली हैं।
एसपी मेरठ के “पाकिस्तान चले जाओ” का एक वाइरल वीडियो उनकी पुलिसिया कार्यवाही का सिर्फ अंश मात्र है एक स्थानीय निवासी ने हमे बताया कि एसएचओ ने एक बूढ़े आदमी पर हमला करना शुरू किया तो लड़के इसे और बर्दाश्त नहीं कर सके फिर उनके रोकने की कोशिश के बाद उन्होंने झगड़ा शुरू कर दिया।” उन्होंने जोर देकर कहा कि वे जो बोल रहे हैं वह सच है। उन्होंने कहा, “आखिर कितनी देर तक हम पिटते रहेंगे?”
मृतक मोहसिन के भाई ने हमे बताया कि “जब हम अपने भाई की हत्या के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने गए तो पुलिस ने हमे लाठी मार कर भगा दिया,” साथ ही धमकी दी कि “अगर गोली खानी हो तो फिर आ जाना!”
एक अन्य स्थानीय निवासी गुलफाम के अनुसार “मारने वालो के सरकारी आंकड़े भले ही 6 हो लेकिन पुलिस द्वारा हत्याएं इससे कही ज्यादा है..” “आखिर जो लापता उनका हुआ क्या है?”
मृतक जहीर के भाई का कहना है “आखिर क्या कारण है कि पुलिस सिर्फ सर पर या सीने पर ही गोली मार रही थी?” एक अन्य के मुताबिक “पुलिस जानबूझ कर सिर्फ मुसलमान को ही निशाना बनाती है”
इस सबके अलावा पुलिस ने जिस प्रकार घरों पर पत्थरबाजी की तथा कुछ स्थानीय गुंडों (विशेषकर एबीवीपी) के साथ मे मिल कर घरों में लूटपाट व तोड़फोड़ की वह भी पुलिसिया नियत पर संदेह करती है।
एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि ” पुलिस एक स्टील कारखाने की छत पर चढ़ गई थी और वहाँ से भी लोगो पर गोलियां चलानी शुरू कर दी।
*मीडिया की भूमिका*
इस पूरे विरोध प्रदर्शन के दौरान सबसे खराब भूमिका अगर किसी की रही तो वो मेरठ के पत्रकारों की है जिन्होंने तथ्यों को पूरी तरह छुपा कर एक नई ही कहानी गढ़ दी बल्कि ये कहना ज्यादा सही रहेगा कि उन्होंने सच्चाई को पूरी तरह नज़र अंदाज़ कर के सिर्फ मेरठ प्रशासन के प्रवक्ता की ही भूमिका निभाई है!
आसिफ के पोस्टमार्टम व दफन होने के बाद अगले ही दिन हिंदी राष्ट्रीय समाचार पत्र अमर उजाला के स्थानीय परिशिष्ट- माई सिटी- ने पुलिस के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के झिलमिल कॉलोनी के रहने वाले आसिफ ने दिल्ली से लगभग पच्चीस लोगों को इ​कट्ठा किया और क्षेत्र में दंगे भड़काने के लिए उन्हें मेरठ लाया। अखबार से कोई भी रिपोर्टर आसिफ के परिवार या हसन से मिला तक नहीं।
सबसे निराशाजनक बात तब हुई जब इसी अखबार ने पुनः अपने प्रकाशन में प्रदर्शनकारियों में कश्मीरियों व बांग्लादेशी के शामिल होने का बात भी की लेकिन अभी तक कोई सबूत इस संदर्भ में नही दिया गया।
समाचार पत्रों ने पुलिस की भूमिका की गंभीर जांच करने के बजाए उसके बचाव में उसे उद्धारक, ‘बलवाइयों और उपद्रवियों’ से स्थानीय लोगों की रक्षा करने वाली के रूप में पेश किया। स्थानीय हिंदी अखबारों की मानें तो हिंसक ठगों की भीड़ ने कई पुलिसकर्मियों को घायल किया जबकि प्रदर्शनकारियों ने खुद को मारा। किसी भी अखबार ने पीड़ितों या उनके परिवारों की बात पर ध्यान नहीं दिया।

टीम राईटर
मौहम्मद शिबली

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