तुग़लकाबाद में अतिक्रमण हटाने के नाम पर चला बुल्डोज़र, हज़ारों लोग बेघर
रिपोर्ट: उवैस सिद्दीक़ी
दिल्ली के तुग़लकाबाद इलाक़े में 30 अप्रैल 2023 को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) और दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) द्वारा अतिक्रमण हटाओ मुहिम चलाई गई जिसमें लगभग 1000 घरों पर बुल्डोज़र चलाकर गिरा दिया गया जिससे हज़ारों लोग बेघर हो गए।
हमने वहां पहुंचकर स्थानीय लोगों से बात करने की कोशिश की। लोगों ने हमें बताया कि उन्होंने स्थानीय डीलरों से अच्छी ख़ासी रक़म देकर जगह ख़रीदी थी और अब कई डीलर लापता हैं या जो मौजूद भी हैं तो वे अब भी यह आश्वासन दे रहे हैं कि आप जगह ना छोड़ें घर फिर बन जाएगा।
तुग़लकाबाद में काफ़ी अरसे से रह रहे परितोष बताते हैं कि उनके परिवार में 4 लोग हैं और वे अकेले कमाने वाले हैं। परितोष के अनुसार फ़िलहाल वह क़रीब में किराए के कमरे में रह रहे हैं जिसका किराया 6000 है जो कि असल में 2000 था लेकिन अब अचानक से किराया आसमान छूने लगा है। परितोष ने हमें अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड दिखाए जिन पर उसी जगह का पता लिखा हुआ था। परितोष कहते हैं कि जब हमारे सरकारी दस्तावेज़ पर इसी जगह का पता है तो यह जगह अचानक से अवैध कैसे हो गई? जब उनसे सवाल किया गया कि अब वह कैसे रहेंगे तो जवाब में उन्होंने कहा कि अगर सरकार या प्रशासन हमें कोई जगह देती है तो रह लेंगे वरना मर जाएंगे। हमारे पास अब कुछ नहीं है। हम आख़िर कहां जाएं?
वहीं चार बच्चों की मां सविता बताती हैं कि उनके पति इस दुनिया में नहीं हैं। वे अकेले 4 बच्चों की परवरिश कर रही हैं। बच्चे अभी पढ़ाई करते हैं और वे घरों में बर्तन धोकर अपने परिवार का पेट पालती हैं। सविता वहां साढ़े चार साल से रह रही हैं और उन्होंने वह जगह 10,000 गज़ के हिसाब से ली थी लेकिन अब उनका घर भी तोड़ दिया गया है। सविता के अनुसार 30 अप्रैल को जब यह कार्रवाई की गई तो वह अपने काम पर थीं। घर से बच्चों का फ़ोन आया कि उनका घर तोड़ा जा रहा है। वह भागी-भागी घर आईं तो देखा कि कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। बुल्डोज़र से घरों को तोड़ा जा रहा था। सविता कहती हैं कि उन्हें घर का सामान निकालने तक की मोहलत नहीं दी गई और इसी बीच दिल्ली में बारिश भी शुरू हो गई। दो-तीन दिनों तक तो वे खुले आसमान के नीचे बस्ती के पीछे जंगल में रहने पर मजबूर हो गईं।
मुकेश कुमार उस जगह पर 5 सालों से रह रहे थे। वे कहते हैं कि उनका बिजली का बिल, गैस की लाइन की पावती, सब उसी पते पर है। हर महीने बिजली का बिल आता था और गैस का बिल भी वह हमेशा समय पर भरते थे। मुकेश पूछते हैं कि जब यह जगह अवैध थी तो प्रशासन बिजली, पानी, गैस यह सब इसी पते पर क्यों प्रदान कर रहा था? और उनसे बिल क्यों ले रहा था? मुकेश का आरोप है कि घर बनाते वक़्त हज़ार रुपए गज़ के हिसाब से स्थानीय पुलिस ने भी उनसे पैसे भी लिए थे और डीलर ने कहा था कि उन्हें हर महीने 10,000 रूपए दें और यहां रहें। डीलर यह कहते थे कि यह जगह उनकी है और वे यहां आराम से रह सकते हैं, लेकिन अब जब उनके घर तोड़ दिए गए तो कोई डीलर भी आकर नहीं भटकता और जब वे डीलर से मिलने या बात करने का प्रयास करते हैं तो उन्हें यही आश्वासन दिया जाता है कि घर दोबारा बन जाएगा।
परितेश, मुकेश और सविता जैसे सैकड़ों लोग हैं जो इसी तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं। कुछ लोग वहीं पर छत डालकर रहने पर मजबूर हैं तो कुछ को किराए के मकान नहीं मिल पा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि उनके पास जो कुछ था, वह घर बनाने में लगा दिया। अब उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे किराए का मकान ले सकें।
बता दे कि 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने ASI से अवैध अतिक्रमण को रोकने के लिए कहा था, जिसका हवाला देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस साल फ़रवरी में ASI से इन मामलों में जल्द कार्रवाई करने को कहा। हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा था कि वहां रह रहे लोगों के लिए पहले कोई व्यवस्था की जाए, लेकिन लोगों का कहना है कि प्रशासन की तरफ़ से कोई व्यवस्था नहीं की गई। यहां तक कि उन्हें सामान तक निकालने की मोहलत नहीं दी गई। कुछ लोगों ने भावुक होकर कहा कि अगर यह जगह अवैध भी है तो हमें कम से कम अपना सामान ले जाने और अपने परिवार के लिए कोई इंतज़ाम करने की मोहलत तो दी जाती!