‘तंत्र’ के सामने ‘गण’ को मज़बूत होना पड़ेगा

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‘हिंदुत्व ख़तरे में है’, का नारा लगाते हुए वो आपके पास आए और आपने उन्हें सत्ता सौंप दी। उन्होंने बताया कि आपके पड़ोस में रह रहे खुर्शीद चचा आपको मार डालेंगे।

आपको गोद में खिलाने वाली सलमा ख़ाला से आपको ख़तरा है। टेलीविज़न और अख़बारों में ख़बरें चलती रहीं और आप यक़ीन करते रहे। आप भूले कि जब आपको कोई तकलीफ़ हुई तो दूर-दराज़ के रिश्तेदार नहीं, आपके यही पड़ोसी आपके साथ थे। वही पड़ोसी जो बादशाह सलामत की सूची में ‘अराजक तत्व’ हैं।

सांप्रदायिकता से सींचा हुआ पौधा जब वृक्ष होकर संसद पहुंच जाता है तो आप कैसे मान लेते हैं कि वो अपना विष छोड़ आया है? ज़हर फैलाना उसका गुणधर्म है। उसकी बुनियाद उसी पर टिकी हुई है। वो एक यूटोपिया रचता है और हमें लगता है कि यही हमारी हक़ीक़त है। राजेश जोशी एक कविता में कहते हैं – ‘हम एक ऐसे समय के नागरिक हैं जिसमें न स्मृतियाँ बची हैं न स्वप्न।’

खेतों में खप जाने वाले किसानों ने जब अपनी माँग के लिए आंदोलन किया तो आपको बताया गया कि ये तो नकली किसान हैं, असली के पास फ़ुर्सत कहाँ! असली किसान एसी में थोड़ी सोता है। हम भूले कि हम भी किसान हैं और हमने अपने बाप-दादाओं को खेतों में देखा है। देखा है उन्हें फसल तबाह होने के बाद मायूस होते हुए, उचित दाम न मिलने पर आँखें नम होते हुए। लेकिन हमने आँखों देखी और भुगती हक़ीक़त के आगे पर्दे पर दिखाए झूठ को स्वीकारना चुना।

स्कूल में था तो इस सरकार के ख़िलाफ़ कुछ कह देता तो मेरे शिक्षक कहते कि जेएनयू चले जाओ, इसलिए नहीं कि वो बहुत अच्छा संस्थान है। क्योंकि वहाँ सरकार के दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद होती है और सर के हिसाब से जेएनयू देशद्रोहियों का अड्डा है।

उच्च शिक्षा की रीढ़ यानि विश्वविद्यालयों को कमज़ोर कर चुकी ये सरकार जेएनयू में घुसकर बच्चों को मारती है, जामिया की लाइब्रेरी में बच्चियां पिटती हैं, बीएचयू में प्रदर्शन कर रही लड़कियों को मारा जाता है, डीयू में कॉलेज खुलवाने के लिए आंदोलनरत् बच्चों को मारा जाता है तो हम सेलेक्टिव हो लेते हैं। अरे ये हैं ही ऐसे तभी तो इनको मारा जाता होगा। साले वामपंथियों की यही जगह है। मुल्लों को उनकी औक़ात बता दी जा रही है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि जो लाठी जेएनयू, जामिया, एएमयू और डीयू में चल सकती है वो इलाहाबाद, बनारस और बिहार में भेद नहीं करेगी। जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएँगे।

प्राइमरी के मास्टरों को देखता था तो ग़ज़ब का गुणगान करते फिरते थे। पिछले साल उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में जब इनकी ड्यूटी लगी और बहुत सारे शिक्षकों को अपनी जान कोविड के चलते गँवानी पड़ी तो इनकी नींद खुली।

हम दूसरों पर पड़ रही लाठी को इन्जॉय करते हैं। हमारे लिए सब कुछ नॉर्मल है जब तक कि हमारे घर तक नहीं पहुँचती। आग का कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। जो उसकी ज़द में आएगा, जल जाएगा। तंत्र के खिलाफ़ गण को मज़बूत होना पड़ेगा। तंत्र, गण से है यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए। गण मज़बूत होगा तभी गणतंत्र मज़बूत होगा। गणतंत्र दिवस मुबारक हो।

– आयुष्मान

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