रमज़ान: उच्च मानवीय गुणों को निखारने का महीना

रमज़ान में “सदक़ा-ए-फ़ित्र” और “ज़कात” की अदायगी की जाती है। इसके द्वारा इस्लाम सामाजिक व आर्थिक न्याय का व्यवहारिक उदाहरण प्रस्तुत करता है। रमज़ान के बाद ईद की नमाज़ से पहले ग़रीबों व असहायों के बीच सदक़ा-ए-फ़ित्र अदा करना अनिवार्य है ताकि वे भी अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें और प्रसन्नतापूर्वक ईदगाह जाकर ईश्वर का शुक्र अदा कर सकें।

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रमज़ान: उच्च मानवीय गुणों को निखारने का महीना

मंज़र आलम

रमज़ान वह पवित्र महीना है जिसमें ईश्वर ने सम्पूर्ण मानवता के मार्गदर्शन हेतु पवित्र क़ुरआन अवतरित किया। रमज़ान के रोज़े (उपवास) अनिवार्य हैं। यह महीना हमें ईशपरायणता, आत्मनियंत्रण, आज्ञापालन, धैर्य और संयम जैसे गुण पैदा करने का प्रशिक्षण देता है। मानव प्रेम, दयालुता, अनुशासन, क्षमाशीलता, सहानुभूति, सदाचार, परोपकार, त्याग, निर्धनों और दरिद्र जनों की सहायता, भातृत्व व प्रेम व्यवहार जैसे उच्च मानवीय मूल्यों की जो सामान्य शिक्षा इस्लाम अपने अनुयायियों को जीवन में बरतने के लिए देता है, उसे व्यवहार में लाने हेतु रमज़ान में विशेष बल दिया जाता है। रमज़ान के महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है और स्वर्ग के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं।

आख़िरी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने फ़रमाया कि‌ “जो व्यक्ति रमज़ान के रोज़े ईमान और चेतना के साथ रखे, उसके पिछले सब गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” कहा गया है कि उपवास की हालत में भी जो व्यक्ति बुराई में लिप्त रहे तो उसे भूख और प्यास के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा।

रमज़ान में सहरी और इफ़्तार का अलग ही महत्व है। भोर से पहले रोज़े की नीयत करने से पहले कुछ खाने को “सहरी” कहते हैं और पूरे दिन के बाद शाम के आख़िरी पहर में रोज़ा खोलने के लिए कुछ खाने को “इफ़्तार” कहा जाता है। अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने फ़रमाया कि “सहरी खा लिया करो, सहरी खाने में बरकत है।” वहीं इफ़्तार की महत्ता बताते हुए फ़रमाया कि “जो आदमी रमज़ान में किसी का रोज़ा खुलवाए तो उसके बदले ख़ुदा उसके गुनाहों को माफ़ कर देगा और उसको जहन्नम की आग से बचा लेगा। इफ़्तार कराने वाले को रोज़ेदार के बराबर पुण्य मिलेगा और रोज़ेदार के पुण्य में कोई कमी न होगी।” आप (सल्ल०) के साथियों ने पूछा कि “ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल०) हम सबके पास इतना कहां है कि रोज़ेदार को इफ़्तार कराएं और उसको खाना खिलाएं?” आप (सल्ल०) ने कहा, “सिर्फ़ एक खजूर या दूध या पानी के एक घूंट से भी इफ़्तार करा देना काफ़ी है।”

रमज़ान की प्रत्येक रात “तरावीह” की नमाज़ का आयोजन होता है जिसमें क़ुरआन सुनाया जाता है। रमज़ान के पूरे महीने को तीन भागों में बांटा गया है। पहले, दूसरे और तीसरे दस दिन क्रमशः रहमत, मग़फ़िरत और जहन्नम से निजात का है। आख़िरी दस दिनों की 21, 23, 25, 27 और 29वीं तारीख़ में से एक रात “शब-ए-क़द्र” है, जिसके बारे में कहा गया है कि यह हज़ार महीनों से बेहतर है।

रमज़ान में “सदक़ा-ए-फ़ित्र” और “ज़कात” की अदायगी की जाती है। इसके द्वारा इस्लाम सामाजिक व आर्थिक न्याय का व्यवहारिक उदाहरण प्रस्तुत करता है। रमज़ान के बाद ईद की नमाज़ से पहले ग़रीबों व असहायों के बीच सदक़ा-ए-फ़ित्र अदा करना अनिवार्य है ताकि वे भी अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें और प्रसन्नतापूर्वक ईदगाह जाकर ईश्वर का शुक्र अदा कर सकें। निःसंदेह रोज़ा इंसान की समस्त ज्ञानेन्द्रियों को बुराइयों से रोक कर सत्य की ओर अग्रसर करता है तथा अध्यात्मिक विकास, जनकल्याण, उच्च मानवीय गुणों को निखारने के साथ ही सामाजिक व आर्थिक दायित्व के निर्वहन की समझ विकसित करता है।

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