रमज़ान में आत्मा और सांत्वना की तलाश

क़ानून व्यवस्था और दंड व पुरस्कार का आधुनिक ढांचा मानव अनुभूति और आत्मा के गहरे स्तरों से जुड़ने में विफल रहा है। इसी गहरे स्तर पर मानव से न जुड़ पाने की वजह से हर प्रकार का भ्रष्टाचार व्याप्त है। अतः रमज़ान और रोज़ा मुख्य रूप से आत्म-शुद्धि करने के साथ-साथ शरीर पर आत्मा का और पशुवत प्रवृत्ति पर मानवीयता का प्रभुत्व विकसित करने के लिए आवश्यक है। यह एक स्वस्थ समाज के निर्माण का रोडमैप हो सकता है।

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रमज़ान में आत्मा और सांत्वना की तलाश

निहाल किडीयूर

रमज़ान को आमतौर पर खाने-पीने से ही जोड़ा जाता है। जामा मस्जिद, पुरानी दिल्ली या मुंबई में मुहम्मद अली रोड से लेकर बैंगलोर की गलियों तक को ले लें, या इसके विपरीत खाने के मामले में लोगों के संयम को देखें, जहां रोज़ा रखने वाले सुबह से शाम तक पानी की एक बूंद भी नहीं लेते हैं। आइए सीक कबाब, बिरयानी और फ़ालूदा के स्वाद से परे रमज़ान को गहराई से समझते हैं। क्या चीज़ है जो रमज़ान को मानवता के लिए मौलिक मानवीय भावना, पोषण, आत्मा और चरित्र के उद्धार के लिए वास्तव में एक अनूठा तंत्र बनाती है?

वर्तमान परिवेश में, जब समाज में नफ़रत, हिंसा और गुंडागर्दी लगातार बढ़ रही है, यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है। इसे एक विचारधारा द्वारा संचालित मिशन और परियोजना की सफलता के प्रभावों के रूप में वर्णित करना, कम से कम, कहने के लिए बहुत सरल है। घृणा, कटुता, हिंसा, सहानुभूति की कमी, शत्रुता, स्वस्थ समाज के लक्षण नहीं हैं, तो हम इसे और अंत में राष्ट्र-राज्य और नागरिकों के साथ जुड़ाव की अंतिम पहेली को कैसे समझ सकते हैं?

उपवास (रोज़ा) का सार धर्मपरायणता (तज़किया) प्राप्त करना है, जो इंसान को एक बेहतर इंसान बनने में मदद करता है। सभी प्रमुख धर्मों और दर्शनों में केंद्रीय सिद्धांत हमारे भीतर की अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष है। इस्लामी परंपरा में कहा गया है कि, “फ़िर सही और ग़लत के ज्ञान से उसे प्रेरित किया” – क़ुरआन (91:8) अर्थात् इंसान सही और ग़लत दोनों की क्षमता रखता है, और सफल वह है जिसने स्वयं को शुद्ध किया। हिंदू धर्म में, यह एक व्यक्ति के भीतर धर्म और अधर्म का संघर्ष है और इसी प्रकार इस तरह के पहलू ईसाई धर्म में भी मौजूद हैं, यहां तक कि अरस्तू से लेकर प्लेटो तक के दर्शनों में भी पाए जाते हैं। रोज़ा इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि यह शुद्धिकरण या अच्छाई कैसे क्रियान्वित होती है।

जब कोई व्यक्ति रोज़े से होता है, तो उसे अपनी प्यास बुझाने, या अपनी भूख मिटाने या अपने जीवनसाथी के साथ अपनी इच्छा को पूरा करने की अनुमति नहीं होती है, यह सभी कार्य धर्म की सीमाओं के भीतर वैध हैं, लेकिन उपवास के अंतराल के दौरान अवैध घोषित किए गए हैं। मानव जीवन में इसकी व्यापक और महान अभिव्यक्तियां हैं। मनुष्य, शरीर और आत्मा से मिलकर बना है। शरीर भौतिक इच्छाओं की मांग करता है जैसे; खाना, पीना आदि। जबकि आत्मा ऊपर की ओर बढ़ने की प्रवृति रखती है और इबादत, ज़िक्र आदि जैसी रूहानी गतिविधियों में व्यस्त होना चाहती है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि हमारे भीतर एक पशुवत वृत्ति है, जो आनंद की भूखी है और एक मानवीय वृत्ति है जो विनम्रता की ओर ले जाती है। यह आंतरिक संघर्ष अंततः हमें एक व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है और इसकी अभिव्यक्ति समाज का निर्माण है।

उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति खाने-पीने आदि से परहेज़ करता है, भले ही यह नैतिक दायरे में हो, तो उसमें अधिक लचीलापन विकसित होता है और उसे इच्छाओं से दूर रहने और संयम बरतने का प्रशिक्षण प्राप्त होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जीवन में कई बार एक पल की चूक का परिणाम विनाशकारी होता है। क़ानून व्यवस्था और दंड व पुरस्कार का आधुनिक ढांचा मानव अनुभूति और आत्मा के गहरे स्तरों से जुड़ने में विफल रहा है। इसी गहरे स्तर पर मानव से न जुड़ पाने की वजह से हर प्रकार का भ्रष्टाचार व्याप्त है। अतः रमज़ान और रोज़ा मुख्य रूप से आत्म-शुद्धि करने के साथ-साथ शरीर पर आत्मा का और पशुवत प्रवृत्ति पर मानवीयता का प्रभुत्व विकसित करने के लिए आवश्यक है। यह एक स्वस्थ समाज के निर्माण का रोडमैप हो सकता है।

दूसरी बात यह कि यह क़ुरआन का महीना है, जो मानवता के लिए मार्गदर्शन की किताब है। क़ुरआन खुद अपने रहस्य को खोलने की कुंजी तज़किया को बताता है। रमज़ान पवित्रता के नए स्तरों को खोलने के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल का महीना है और इंसान को उस स्तर तक पहुंचाता है जहां उसकी आत्मा, उसकी भावनाओं और ईश्वर की ओर यात्रा के साथ तालमेल बैठ सकता है।

मुझे लगता है कि उपरोक्त बिंदु पर विचार करना बहुत आवश्यक है। हमारे युग की मूलभूत समस्या यह है कि आधुनिकता ने हमारे जीवन को संकीर्ण बना दिया है। यह एक आध्यात्मिक और नैतिक संकट भी है। अंतर्मुखी, स्व-अवलोकन हमारे वर्तमान स्वभाव में अनुपस्थित है। आत्मा की अवधारणा और उसके पोषण को शून्य कर दिया गया है। धर्म का उपयोग आत्मा से रहित एक जातीय राष्ट्र-राज्य बनाने के लिए किया जा रहा है।

लोग अंदर से खोखले होते जा रहे हैं, क्योंकि आज के मनुष्य की अवधारणा में भीतर देखने का मौलिक प्रश्न ग़ायब है। अतः गहरे आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ मानव के चरित्र का निर्माण करना बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे एक अच्छे इंसान होने और अपने कर्तव्यों को पूरा करने की उम्मीद की जा सके। मुझे लगता है कि क़ुरआन का पवित्र पुस्तक के रूप में विचार और रमज़ान वर्तमान पतन को संबोधित करने में महत्वपूर्ण है।

अंत में, रमज़ान का संदेश सहानुभूति, देने की भावना, त्याग, दान और कई अन्य चीज़ों का भी आह्वान करता है। मुझे लगता है कि अपनी मानवीय प्रकृति की ओर लौटने और विशेष रूप से मुसलमानों के लिए क़ुरआन के इस त्योहार से पूरी तरह से लाभान्वित होने के लिए संयम, विचार, आंतरिक रूप से देखने की भावना पर चिंतन करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह हमारे साथी देशवासियों के लिए भी एक बेहतर और मानवीय समाज की कल्पना करते हुए एक समग्र जीवन के लिए हमारे व्यक्तिगत प्रयास का समय भी है। 

रमज़ान के संदेशों में से एक आत्मनिरीक्षण है और हम एक समाज के रूप में उथल-पुथल भरे समय से गुज़र रहे हैं। इस प्रकार हमें व्यक्ति से लेकर समाज तक, नैतिकता से लेकर धर्म तक, हर स्तर पर गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। मैं, हम में से प्रत्येक से चिंतन और मंथन करने का आग्रह करता हूं, और कामना करता हूं कि यह रमज़ान हमारे दिल-ओ-दिमाग़ में शांति और सुकून लाए।

अंग्रेज़ी से अनुवाद: उसामा हमीद

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