बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था का ज़िम्मेदार कौन?

0
एक ओर जहाँ शिक्षकों की घोर कमी है वहीं शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी/एसटीईटी) उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की एक बड़ी संख्या सड़कों पर बेरोज़गार घूम रही है और लगातार संघर्ष करते हुए पुलिस की लाठियां खा रही है। पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है परन्तु इस पर कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई है। ऐसी ही कई समस्याएं हैं जो बिहार की शिक्षा व्यवस्था की राह में रोड़े अटका रही हैं।

महिलाओं की शादी में उम्र और अधिकार का सवाल

0
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लड़कियों के लिए विवाह की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है, लड़कों के...

गीता प्रेस ने प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी और सांप्रदायिक ‘हिन्दू’ का निर्माण किया है

हिंदी भाषी क्षेत्र में आरएसएस-भाजपा की सफलता में गीता प्रेस का योगदान हम भले न पहचानें, आरएसएस-भाजपा अवश्य पहचानती है और इसी अतुलनीय योगदान के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस को दिया जा रहा है। गांधी शांति पुरस्कार इसलिए कि गांधी के नाम के आवरण में गीता प्रेस की प्रतिगामी भूमिका को ढका जा सके और गीता प्रेस को गांधी से जोड़कर एक बार फिर से गांधी को सनातनी हिंदू सिद्ध किया जा सके।

अन्याय से लड़ने के लिए ‘सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है’

ऐसे लाखों केस आज भी न्यायालय की तिजोरियों में बंद होंगे जिन पर तारीख़ें तो आती हैं, लेकिन फ़ैसले नहीं आते। मुजरिम खुले आम घूम रहे हैं और पीड़ित अपना मुंह छुपाते फिर रहे हैं कि कोई उन पर लांछन न लगाए। यह फ़िल्म कहती है कि अब समय बदलना चाहिए। पीड़ित अगर हर हाल में अडिग रहे तो फ़ैसले भी उनके पक्ष में होंगे।

मुझे बात नहीं करना है, मैं ज़िंदा हूँ! – ग्राउंड रिपोर्ट

0
"नहीं, मुझे बात करना नहीं आता, ना ही मुझे चेहरा दिखाना है। कुछ नहीं हुआ मुझे। मैं ज़िंदा हूं।" ये प्रतिक्रिया है मुहम्मद...

पुलिस रिफ़ॉर्म की बहस को आगे बढ़ाती है “पुलिसनामा”

इस किताब में बयान हुई कहानियां हमारे आस-पास की कहानियां हैं। इनमें कुछ भी नया नहीं है। कोई शॉक वैल्यू नहीं। यह कोई कल्पना नहीं है बल्कि ये हमारे ख़ुद के साथ घटी हुई या झेली हुई कहानियां हैं। हम इनके साथ रिलेट कर सकते हैं। हर एक क़िस्से को पढ़ कर आपको उसी जैसे तीन और क़िस्से याद आ जायेंगे, और यही इस किताब की कामयाबी है।

गणतंत्र दिवस पर एक ज़रूरी संकल्प

0
सरज़मीन-ए-हिंदुस्तान इंसानी समाज की सबसे बड़ी, सबसे पुरानी, सबसे व्यापक और विभिन्न विचारधाराओं की प्रयोगशाला है। सदियों से ये सरज़मीन सारी दुनिया के इंसानों...

धार्मिक स्वतंत्रता, धर्मांतरण और राज्य

0
राज्य का कोई धर्म न होना और प्रशासनिक कार्यों में धर्म का प्रत्यक्ष रूप से दख़ल न होना भी धार्मिक स्वतंत्रता क़ायम रखने के लिए ज़रूरी है। यदि राज्य ने बहुलतावादी समाज में किसी एक धर्म को सरकारी धर्म का दर्जा दिया और यदि विधि निर्माण और प्रशासनिक फ़ैसले किसी विशेष धर्म के आधार पर होने लगे या सरकारों को किसी विशेष धर्म की रक्षा अथवा प्रचार की चिंता होने लगे, तो अन्य धर्मों व दर्शनों की आज़ादी का दायरा तंग होने लगेगा और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता ख़तरे में पड़ जाएगी।

एनआरसी : शिकारी खुद अपने जाल में!

0
1985 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के अनुसार, 25 मार्च, 1971 के बाद राज्य में आए लोगों...

मुंबई यूनिवर्सिटी के डिस्टेंस लर्निंग संस्थान का छात्रों के प्रति ग़ैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार

महाराष्ट्र स्थित मुंबई यूनिवर्सिटी के डिस्टेंस लर्निंग संस्थान के छात्र काफ़ी समय से समस्याओं का सामना कर रहे हैं। छात्रों का कहना है कि पढ़ाई के मामले में संस्थान द्वारा उनका कोई मार्गदर्शन नहीं किया जा रहा है। चाहे परीक्षा के समय का मामला हो या फिर स्टडी मैटेरियल उपलब्ध करवाने की बात हो, संस्थान की तरफ़ से लगातार अनियमितताएँ की जा रही हैं।