ईद-उल-फ़ित्र के त्योहार का दर्शन
डॉ० हसन रज़ा
अध्यक्ष, इस्लामी अकादमी, नई दिल्ली
दुनिया की हर क़ौम किसी-न-किसी रूप में त्योहारों को मनाती है, क्योंकि यह इंसानी समाज की बहुत स्वाभाविक सी आवश्यकता है। इसके साथ ही, यह भी एक तथ्य है कि किसी क़ौम का कोई त्योहार केवल उसके सामूहिक मनोरंजन और किसी आयोजन के लिए नहीं होता है। बल्कि यह उसकी सभ्यता की जड़ों में जलापूर्ति का काम करता है। त्योहार किसी क़ौम की सामूहिक संस्कृति का हिस्सा होते हैं और उसके मूल्यों को ताज़ा रखने का साधन भी। यह याद रखना चाहिए कि त्योहारों में उस क़ौम की सफलता, प्रसन्नता और ख़ुशहाली का कोई बुनियादी रहस्य विद्यमान रहता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं इस्लाम प्राकृतिक धर्म है, इसलिए इसने मनुष्य की इस प्राकृतिक और सामूहिक आवश्यकता को पूरा करने का साधन किया है। इसी को देखते हुए इस्लाम में हमें दो त्योहार दिए गए हैं – एक ईद-उल-फ़ित्र और दूसरा ईद-उल-अज़हा।
एक का संबंध ईश्वरीय ग्रंथ अर्थात् क़ुरआन से है तथा दूसरे का संबंध अल्लाह के घर यानी ख़ाना-ए-काबा से है। ये दोनों प्रतीक अल्लाह के ज़मीनी प्रतीक हैं, जो समय और स्थान से परे हैं और जिनका अमानतदार मुस्लिम उम्मत को बनाया गया है। तौहीद यानि एकेश्वरवाद के ये दो जीवित तथ्य वास्तव में दो चमत्कार हैं जो विशेष रूप से मुस्लिम उम्मत को दिए गए हैं। इक़बाल ने ठीक ही कहा है कि यह उम्मत इन दोनों से जुड़े मिशन के लिए स्थापित की गई है, ‘हम उसके पासबां हैं, वो पासबां हमारा।’ ये दोनों उम्मत के लिए जीवन के मुख्य स्रोत हैं। ईश्वरीय इच्छा की दो दैवीय और ऐतिहासिक घटनाएं उनके साथ जुड़ी हुई हैं। एक रमज़ान के महीने में क़द्र की रात में क़ुरआन के अवतरण की महान् घटना है, जो मानव इतिहास की पराकाष्ठा है।
रमज़ान का महीना क़ुरआन के जश्न का महीना है और ईद-उल-फ़ित्र इस जश्न का चरमोत्कर्ष है। ईद, भौतिकवाद और आध्यात्मिकता का सबसे सुंदर संयोजन है। इस दिन उपवास करना मना है, बल्कि अच्छा भोजन करना सराहनीय है।
बहरहाल, मैं कह रहा था कि त्योहार केवल मनोरंजन प्रदान नहीं करता है, बल्कि यह उस क़ौम के जीवन और मृत्यु के दर्शन या अच्छे और बुरे की अवधारणा या सामूहिक सफलता और विफलता के रहस्य को त्योहार की शैली में निरंतरता देता है और इसे उस क़ौम की संस्कृति का हिस्सा बनाता है।
इसी तरह इस्लाम का यह त्योहार ईद-उल-फ़ित्र केवल सामूहिक मनोरंजन और पकवानों का अवसर नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से जीवन के उद्देश्य की सामूहिक चेतना इस्लामी के अनुयायियों के सामूहिक अचेतन में जागृत होती है। इसी के ज़रिए मुसलमानों के बीच क़ुरआन के मानवतावादी और सार्वभौमिक मिशन और इस मिशन की प्राप्ति के लिए धर्मनिष्ठा (परहेज़गारी/तक़वा) प्राप्त करने की शुद्ध भावना हर साल ताज़ा हो जाती है। तक़वा ही क़ुरआन से मार्गदर्शन प्राप्त करने की शर्त भी है और क़ुरआन के मिशन की यात्रा का मूल साधन भी। अगर तक़वा न हो तो क़ुरआन का नूर-अला-नूर भी दिल के अंधे इंसान को रौशनी नहीं दे सकती, तक़वा दिल को रोशनी देता है और तक़वा से भरे दिल पर क़ुरआन नाज़िल होता है। इसीलिए ईद-उल-फ़ित्र का त्योहार रमज़ान के पूरे रोज़े, रातों की इबादतों, लैलत-उल-क़द्र, एतिकाफ़, सदक़ा-ए-फ़ित्र के अंत में मनाया जाता है, ताकि उम्मत क़ुरआन का बोझ सहन कर सके और ‘क़ारी नज़र आता है हक़ीक़त में है क़ुरआन’ का जीवित उदाहरण बन सके।
जैसा कि सभी जानते हैं, रमज़ान का महीना क़ुरआन के अवतरण का जश्न मनाने और इसके मार्गदर्शन से धन्य होने के लिए तक़वा प्राप्त करने का महीना है। इस शिक्षा और प्रशिक्षण के एक महीने के बाद, ईद-उल-फ़ित्र मार्गदर्शन और अल्लाह द्वारा दिए गए इस अवसर के लिए कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।
ग़ौर कीजिए कि ईद के दिन कैसे इस्लाम की सत्य-चेतना अल्लाहु अकबर की तकबीर के साथ, बंदगी का जज़्बा व कृतज्ञता ईद की नमाज़ की दो रकअतों के साथ, सहायता और भलाई का विचार सदक़ा-ए-फ़ित्र के साथ, इसका सौन्दर्यबोध रोज़े और क़ुरआन की तिलावत के साथ, दिल और आँख की पवित्रता और तक़वा के लिबास व हलाल और पाक पकवानों के साथ, हर साल बसंत की तरह मुसलमानों के वजूद के रेशे-रेशे में ताज़ा हो जाता है।
“बर्ग-ए-गुल पर जिस तरह बाद-ए-सहरगाही का नम”
यह है ईद-उल-फ़ित्र का मतलब और यह है इसका दर्शन। हम अल्लाह त’आला से दुआ करते हैं कि इस त्योहार के ज़रिए इस्लामी दुनिया में इस जज़्बे को फिर से ताज़ा करे। इसकी बरकत से इस्लाम के अनुयायियों के दिल में उजाला कर दे और “हताश न हो, दुःखी न हो, तुम्हीं प्रभावी रहोगे यदि तुम ईमानवाले हो” के क़ुरआनी शुभ समाचार से मुसलमानों का दिल बाग़-बाग़ कर दे ताकि उन्हें ईद की सच्ची ख़ुशी नसीब हो सके।
(उर्दू से अनुवाद: उसामा हमीद)