छात्र अधिकारों के लिए देशभर के हजारों छात्र जंतर मंतर पर हुए इकट्ठा
रिपोर्ट : उवैस सिद्दीकी़
शिक्षा बचाओ, एनईपी हटाओभारत बचाओ, भाजपा हटाओ
नई दिल्ली : यूनाइटेड स्टूडेंट्स ऑफ़ इंडिया के बैनर के तले, 16 छात्र संगठन मिलकर...
प्रतिरोध- दावत का एक अनोखा तरीका
सैयद अज़हरुद्दीन
फिलिस्तीन मुद्दे पर पिछले सात दशकों से दुनिया भर में लोग चर्चा करते रहे हैं, आए दिन ये मुद्दा मुख्यधारा मीडिया की सुर्खियां...
स्वतंत्रता आंदोलन और मौलाना आज़ाद का अल-हिलाल
आज की पत्रकारिता को मौलाना के विचारों के अनुसार ख़ुद का आंकलन करने की ज़रूरत है जोकि सत्ताधारी और पूंजीवादियों की ग़ुलामी में अपना सब कुछ ख़त्म करने में लगे हैं। मौलाना पत्रकारिता और पत्रकार को बहुत इज़्ज़त की नज़रों से देखते थे। उनका मानना था कि अख़बार और पत्रकार किसी भी समाज या देश का सच्चा तर्जुमान होते हैं और उसी की तर्जुमानी का हक़ अदा करते हैं।
बिहार में मुस्लिम नहीं इस जाति की आबादी सबसे ज्यादा बढ़ी
बिहार की जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला पहलू अनुसूचित जातियों की गणना को लेकर है –(जो की निस्संदेह रूप से सभी सामाजिक...
नफ़रत के ख़िलाफ़ असहयोग आंदोलन
मीडिया की एजेंडा सेट करने की ताक़त की वजह से समाज में मीडिया की भूमिका बहुत अहम है। तब ऐसे में से नफ़रत की फ़सल बोने वाली मीडिया के साथ असहयोग करना मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला तो क़तई नहीं है। आख़िरकार यह भी जनता के बीच से उठी आवाज़ है।
हिंदी में परोसी जा रही नफ़रत का सामना हिंदी में ही संभव है
अगर नफ़रत संगठित रूप से किसी भाषा के कंधे पर सवार होकर पांव फैला रही है तो प्रेम और सौहार्द की बातें करने वालों को और अधिक संगठित होकर उसी भाषा में मेल-मिलाप की बातें करनी होंगी।
देश चांद तक पहुंचा और नफ़रत क्लासरूम तक
मीडिया द्वारा फैलाई गई इस नफ़रत का ही नतीजा है जो अब मुज़फ्फरनगर और दिल्ली के स्कूलों में हाल ही में घटित हुई घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है। देश तो चांद तक पहुंच गया है लेकिन नफ़रत भी स्कूल के क्लासरूम तक पहुंच गई है
कोटा में बढ़ती हुई आत्महत्याओं का ज़िम्मेदार कौन?
आंकड़े देखें तो इस वर्ष जनवरी से लेकर अगस्त तक 24 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है। केवल अगस्त के महीने में ही 6 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। जबकि पिछले वर्ष इस तरह की 15 घटनाएं सामने आईं थीं।
‘बेटी बचाओ’ के नारे का पोल खोलती है एनसीआरबी की रिपोर्ट
‘बेटी बचाओ’ के नारे का पोल खोलती है एनसीआरबी की रिपोर्ट
उम्मे वरक़ा
“किसी भी समाज की तरक़्क़ी का मापदंड उस समाज की महिलाओं के विकास...
जब मुहाफ़िज़ ही लुटेरे बन जाएं!
पिछले दस सालों में इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी नफ़रत फैलाई गई है और जितना उत्पीड़न हुआ है, उतना आज़ादी के बाद के 75 सालों में नहीं देखा गया। मॉब लिंचिंग के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न और हत्या आम होती जा रही है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी भाजपा शासित राज्यों में ही हो रही है।