जीवनशैली: प्रकृति की प्रकृति

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हमारे पैदा होने का एक खास तरीका तय है- माँ और पिता का मिलन, फिर रहम (गर्भाशय) में गर्भ का ठहराव, फिर उसकी परवरिश और एक मुकर्रर वक़्त में पैदाइश। लेकिन हमारे मरने का कोई तरीका तय नहीं है। हम बीमारी से मर सकते हैं, कत्ल हो सकते हैं, हमारा एक्सीडेंट हो सकता है… हज़ारों तरीके हैं लेकिन, कोई बता नहीं सकता कि वह कैसे मरेगा। यह रहस्यमय है इसीलिए जीवन आनंदमय है। मौत हर वक़्त नज़दीक आ रही है, यह दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई है। लेकिन मृत्युएँ अब अधिकांशत: पहले की तरह प्राकृतिक नहीं रही। अचानक अपनी गिरफ्त में लेती या पीड़ादायक बीमारियों की शक्ल में आती मौतें अब लोगों को ज़्यादा निगल रही हैं।
गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ ने कहा था कि, “जीवन वह नहीं जो हम जीते हैं, जीवन तो वह है जो हमें याद रहता है।” लेकिन आजकल बुढ़ापे या मृत्यु से पूर्व व्यक्ति को सिर्फ अपनी पीड़ा याद रहती है। वह अपने जीवन के बिताए हुए अच्छे पल, दिन, रात, महीने और सालों को याद ही नहीं कर पाता। उसका स्मृतिपटल बिल्कुल कोरा हो जाता है। वह अपनी ज़िंदगी की परेशानियों और समस्याओं से जूझते एक वीर योद्धा वाले दिन अब याद नहीं कर पाता। वह बीमारी और उसके खर्च में परेशान और बेहाल होकर मर जाता है। मृत्युएं अब ज्यादा क्रूर और महंगी हो गई हैं। 
कैंसर, किडनी फेलियर, बेकार होते फेफड़े, टयूमर्स, हृदय रोग, डायबिटीज… आदि ऐसे रोग हैं जिन्होंने रोगी के मृत्यु के दिन बहुत लंबे कर दिए हैं। वह रोज अपने जीवन को खत्म होते देखता है। दवाइयां बढ़ती जाती हैं, खर्च बढ़ते जाते हैं और साथ ही साथ बीमारियां भी। दवाओं में उसे अब सेहत नजर नहीं आती। दवाएं अब सेहत के लिए दी भी नहीं जा रही है, वे तो केवल मृत्यु को लंबा खींचने के लिए दी जा रही हैं। इन दवाओं से मृत्यु बेहद महंगी हो गई है। 
ऐसे लोग अब आप को कम ही मिलेंगे जो यह कहे कि, “जिंदगी बहुत शानदार जी ली, अब बस सुकून से मारना है।” जिंदगी के बिताए हुए हसीन पल उसे याद आते हो और वह उन्हें याद करते हुए अकेला ही मुस्कुराता हो, ऐसे लोग अब विलुप्त हो रहे हैं या विरले ही नजर आते हैं। अब जीवन दवाओं, रुपयों और रिश्तेदारों पर आश्रित हो गया है। सैकड़ों से लेकर हजार रुपए प्रतिदिन की दवाई हर किसी के बस की बात नहीं है और उनके लिए तो और भी मुश्किल जो लंबे समय से बीमार हैं, शरीर साथ नहीं दे रहा या जिनके पास कोई चल-अचल संपत्ति ही नहीं है। बीमारियां उन्हें और उनके बच्चों को जब आर्थिक रूप से बर्बाद करने लगती हैं तो वे मौत मांगने लगते हैं। ज़िंदगी उन्हें रोग लगने लगती है और मृत्यु उपचार।
हम क्या करें- 
● पर्यावरण को बचाएं क्योंकि हमें जीना इसी में है। यह अच्छा होगा तभी हम भी अच्छे से रह पाएंगे।
● हवा, पानी और मिट्टी में ज़हर ना घोलें ना घुलने दें।

● कीटनाशकों का इस्तेमाल ना करें।
● स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और सिस्टम को भी इसे प्राथमिकता देने पर मजबूर करें।
● एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।

-डॉ० अबरार मुल्तानी

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