SIO के हस्तक्षेप के बाद तब्लीग़ी जमात की छवि धूमिल करने वाला बयान एमबीबीएस...

बीते रविवार 'एसेंशियल ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी' पुस्तक के लेखकों ने माफ़ी मांगते हुए अपनी पुस्तक में छपे कोरोना फैलने को ले कर तब्लीग़ी जमात...

अफ़ग़ानिस्तान को क्यों कहा जाता है साम्राज्यवादी महाशक्तियों का क़ब्रिस्तान?

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वर्तमान का जायज़ा यदि इतिहास के आईने से लिया जाये तो बहुत-सी हक़ीक़तें खुलकर सामने आती हैं। शायद यही कारण है कि इतिहास मानव...

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव बना आकर्षण का केंद्र

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जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनावों का बिगुल बज चुका है. कुछ छात्र संगठन छात्रसंघ के मुख्य पदों पर लड़ रहे हैं तो कुछ...

विश्व गौरैया दिवस विशेष: क्यों ज़रूरी है गौरैया संरक्षण?

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गौरेया को बचाने के लिए दिवसों के आयोजन, राज्य पक्षी बनाने और टिकट जारी करने भर से काम नहीं चलेगा। हमें स्वयं कुछ व्यवहारिक तरीक़े अपनाने होंगे जिससे हम इस ख़ूबसूरत पक्षी को बचा सकें। इस संबंध में अपने छतों पर दाने छिड़कना और बर्तनों में साफ़ पानी रखना कारगर साबित हो सकता है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे ताकि उन्हें गौरैया अपना आश्रय बना सके।

मालिक बिन नबी : एक आधुनिक इस्लामी सामाजिक विचारक

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मालिक बिन नबी का जन्म 1905 में कॉन्सटेंटाइन, अल्जीरिया में हुआ और 1973 में अल्जीरिया ही में उनके घर में उनकी मृत्यु हुई। वे...

[पुस्तक समीक्षा] यथार्थ से सामना कराता है “वैधानिक गल्प”

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पुस्तक का नाम – वैधानिक गल्प लेखक – चंदन पाण्डेय प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन प्रकाशन वर्ष – 2020 भाषा – हिन्दी पृष्ठ – 142 मूल्य – 144/- ‘गल्प’ शब्द के अर्थ...

[कविता] मेरे जूते को बचाकर रखना

मेरे जूते को बचाकर रखना,संभाल कर रखना इसे कल के लिए -मलबे के बीच दम तोड़ रहे कल के लिए। मेरे जूते को बचाकर रखना,ग़म...

क्या हमारा लालच हमारे अस्तित्व को ही ख़त्म कर देगा?

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जब हम समुद्रों, जलाशयों और नदियों को देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि पानी की कहानी इतनी सरल नहीं है। स्थिति इतनी खराब है कि नदियों में कचरा फेंकना अब आम बात हो गई है। वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार गंगा का जल नहाने के लिए भी असुरक्षित है। यह सिर्फ़ गंगा की कहानी नहीं है, यह सभी नदियों और जलाशयों की कहानी है। प्रदूषित जल से होने वाली बीमारियों से मरने वालों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है।

जलवायु परिवर्तन: ख़तरा या अवसर?

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जलवायु परिवर्तन मानव इतिहास का सबसे गंभीर संकट है क्योंकि इसके कारण अनेक संकट जन्म लेते हैं। यह केवल पर्यावरणीय चिंता का विषय नहीं है बल्कि यह पृथ्वी के लिए विकास के रास्ते में सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। विशेषकर ग़रीब बहुत अधिक प्रभावित हैं तो साथ-साथ सरकार के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती भी बन गई है।

पर्यावरण सुधारों के लिए बड़े पैमाने पर भागीदारी की आवश्यकता है

पारिस्थितिकीय तंत्र को नुक़्सान पहुंचाने वाली जीवन-पद्धति की वजह से हमें आज कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पर्यावरण सुधार शायद ही हमारी राजनीतिक बहसों का हिस्सा बनता हो। हमारे पास जाति और पंथ, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक पहचान आदि के बारे में राजनीति करने का समय है लेकिन पर्यावरणीय सुधारों के संबंध में हमारी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है।