केंद्र ने मलयालम समाचार चैनल मीडिया वन के प्रसारण को फिर रोका

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केंद्र सरकार ने मलयालम भाषा के लोकप्रिय समाचार चैनल मीडिया वन के प्रसारण पर एक बार फिर रोक लगा दी है। मीडिया वन के संपादक...

क्या हमारा लालच हमारे अस्तित्व को ही ख़त्म कर देगा?

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जब हम समुद्रों, जलाशयों और नदियों को देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि पानी की कहानी इतनी सरल नहीं है। स्थिति इतनी खराब है कि नदियों में कचरा फेंकना अब आम बात हो गई है। वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार गंगा का जल नहाने के लिए भी असुरक्षित है। यह सिर्फ़ गंगा की कहानी नहीं है, यह सभी नदियों और जलाशयों की कहानी है। प्रदूषित जल से होने वाली बीमारियों से मरने वालों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है।

मासूमियत भरी उम्मीद जगाती: फ़िल्म हामिद

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कश्मीर, कश्मीर की स्थिति, वहाँ के लोगों आदि को लेकर विभिन्न माध्यमों ने आपकी सोच को विभिन्न नजरिये से प्रभावित किया होगा। इसके बारे में...

राजनीतिक प्रतिरोध और कविता : कल और आज के संदर्भ में

हिंदी साहित्य में ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ की एक लंबी परंपरा रही है। यह प्रतिरोध कभी प्रत्यक्ष रहा तो कभी परोक्ष। लेखकों ने हमेशा से...

मध्य प्रदेश हिंसा को सरकार का मौन समर्थन प्राप्त – APCR

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अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए धन जुटाने हेतु आयोजित एक रैली के दौरान पश्चिमी मध्य प्रदेश में दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा भड़काई...

[पुस्तक समीक्षा] बाइज़्ज़त बरी: साज़िश के शिकार बेकुसूरों की दास्ताँ

पुस्तक का नाम: बाइज़्ज़त बरी? - साज़िश के शिकार बेकुसूरों की दास्ताँ लेखक: मनीषा भल्ला, डॉ. अलीमउल्लाह ख़ान प्रकाशक: भारत पुस्तक भंडार प्रकाशन वर्ष: 2021 भाषा: हिन्दी पृष्ठ: 296 समीक्षक:...

[व्यंग्य] हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं!

देश फिर से 2014 में आज़ाद हो गया है मगर हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं! शर्म आनी चाहिए हमें कि हम आज तक इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं, जबकि पिछले नौ साल से प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि मेरी और मत देखो, आत्मनिर्भर बनो! हम शर्म तक के मामले में उनकी ओर देख रहे हैं कि पहले उन्हें किसी एक बात पर तो शर्म आए, तब हमें भी आने लगेगी!

महामारी के दौर में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल

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हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) की जब भी बात आती है तो अक्सर अन्य परेशानियों, झिझक और जागरूकता की कमी...

फ़ेक न्यूज़ : सियासत और साम्प्रदायिकता की ‘नई’ तकनीक – १

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मानव इतिहास के विभिन्न युगों में लोकतंत्र अथवा जनतंत्र की भिन्न-भिन्न व्याख्याएं की गई हैं। इसको सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही दृष्टिकोणों से परखा...

रमज़ान में आत्मा और सांत्वना की तलाश

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क़ानून व्यवस्था और दंड व पुरस्कार का आधुनिक ढांचा मानव अनुभूति और आत्मा के गहरे स्तरों से जुड़ने में विफल रहा है। इसी गहरे स्तर पर मानव से न जुड़ पाने की वजह से हर प्रकार का भ्रष्टाचार व्याप्त है। अतः रमज़ान और रोज़ा मुख्य रूप से आत्म-शुद्धि करने के साथ-साथ शरीर पर आत्मा का और पशुवत प्रवृत्ति पर मानवीयता का प्रभुत्व विकसित करने के लिए आवश्यक है। यह एक स्वस्थ समाज के निर्माण का रोडमैप हो सकता है।