यह अभिव्यक्ति की आज़ादी को बचाने का चुनाव है

मुहम्मद स्वालेह अंसारी 2024 का लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व है। जहां एक तरफ़ यह पर्व लोकतंत्र को सुरक्षित बचाए रखने का...

न्याय, रोज़गार और विकास के वादों के बीच मुस्लिम मुद्दों पर ख़ामोश है कांग्रेस...

- मुहम्मद स्वालेह अंसारी 5 अप्रैल 2024 को कांग्रेस पार्टी की ओर से दिल्ली स्थित मुख्यालय पर 2024 लोकसभा चुनावों के लिए घोषणा-पत्र जारी किया...

2024 की राजनीतिक चुनौती किशन पटनायक के लेख के संदर्भ में

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डॉक्टर हसन रज़ा भाजपा के बढ़ते इरादों और क़दमों को देखकर मुझे किशन पटनायक की बात याद आ रही है। उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति पुस्तक...

इलेक्टोरल बॉन्ड पर “सुप्रीम” प्रतिबंध

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अल्तमश भारतीय राजनीततक परिदृश्य में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने‌ ऐतिहासिक फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक क़रार दे दिया है। 15 फरर्वरी, 2024 को...

देश मे चलता उत्तेजनात्मक राजनीतिक खेल और मुसलमान

लेख: मिर्ज़ा हमज़ा बैगअंग्रेजी से अनुवाद: बुशरा रहमान भारत में मुस्लिम समुदाय हिंसा, भेदभाव, अथवा न्यूज़ चैनलों की पक्षपात चर्चाओं जैसी अनेक चुनौतियों से घिरा...

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना ओबीसी वोटों के लिए भाजपा की बेचैनी को...

-समी अहमद पटना | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार शाम को घोषणा की है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़ी जाति के प्रतीक कर्पूरी...

जब मुहाफ़िज़ ही लुटेरे बन जाएं!

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पिछले दस सालों में इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी नफ़रत फैलाई गई है और जितना उत्पीड़न हुआ है, उतना आज़ादी के बाद के 75 सालों में नहीं देखा गया। मॉब लिंचिंग के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न और हत्या आम होती जा रही है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी भाजपा शासित राज्यों में ही हो रही है।

बजरंग दल की जलाभिषेक यात्रा बनी नूह में हिंसा की वजह

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राजधानी दिल्ली से सटा हरियाणा राज्य हिंसा की चपेट में है। हरियाणा के विभिन्न इलाक़ों से आने वाले कई वीडियोज़ सोशल मीडिया पर गर्दिश कर रहे हैं जिनमें यह साफ़ देखा जा सकता है कि हिंसा जान-बूझकर भड़काई जा रही है। फ़िलहाल कुछ इलाक़ों में धारा 144 लागू है और कुछ जगहों पर पूरी तरह कर्फ़्यू लगा दिया गया है। साथ ही भारी मात्रा में पुलिस बल भी तैनात किया गया है।

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, मुस्लिम आबादी और चार शादियों का प्रॉपगैंडा

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‘नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे’ की रिपोर्ट यह बताती है कि एक से ज़्यादा शादियां करने का रिवाज सब से ज़्यादा ईसाईयों में (2.1%) है। मुसलमानों में 1.9%, हिंदुओं में 1.3% और अन्य कम्युनिटीज़ में 1.6% है। इसमें नोट करने की बात यह है कि मुसलमानों में यह प्रतिशत उस स्थिति में है जब उनके यहां एक से ज़्यादा शादियों की क़ानूनी रूप से अनुमति है, जबकि दूसरी कम्युनिटीज़ में क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित है।

मणिपुर हमारी मानवीय संवेदना पर सवाल है

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क्या आज के इस आधुनिक समाज में, जहां महिला अधिकारों की बात की जाती है, जहां सरकार ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा देती है, वहां महिलाओं का कोई मोल नहीं कि इस भयप्रद स्थिति में उनका साथ दिया जाए और आरोपियों को गिरफ़्तार कर के सज़ा दी जाए?